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शक की नजरों से देखी जा रही पत्रकारिता के दौर में सुप्रीत कौर के साहस को सलाम

!!रजनीश उपाध्याय!! ऐसे वक्त में जब पत्रकारिता कुलीन वर्ग की आंखों की किरकिरी बनी हुई है और हर पत्रकार को शक की नजरों से जांचा-परखा जा रहा है, न्यूज एंकर सुप्रीत कौर की पेशेवर ईमानदारी, इस पवित्र पेशे के प्रति उनकी निष्ठा और पत्रकारीय धर्म का निर्वाह राह दिखानेवाली है. आइए पहले जान लें कि […]

!!रजनीश उपाध्याय!!

ऐसे वक्त में जब पत्रकारिता कुलीन वर्ग की आंखों की किरकिरी बनी हुई है और हर पत्रकार को शक की नजरों से जांचा-परखा जा रहा है, न्यूज एंकर सुप्रीत कौर की पेशेवर ईमानदारी, इस पवित्र पेशे के प्रति उनकी निष्ठा और पत्रकारीय धर्म का निर्वाह राह दिखानेवाली है. आइए पहले जान लें कि सुप्रीत कौर हैं कौन और उनके बारे में क्यों बात करना जरूरी है.
सुप्रीत कौर छत्तीसगढ़ के क्षेत्रीय न्यूज चैनल आइबीसी-24 में न्यूज एंकर हैं. शनिवार की सुबह बाकी दिनों की तरह उनकी ड्यूटी न्यूज पढ़ने की थी. न्यूज चल रहा था कि एक ब्रेकिंग खबर आयी. उन्होंने रिपोर्टर से लाइव किया. खबर यह थी कि एनएच 353 पर लहरौद के समीप एक कार व एक ट्रक की टक्कर में तीन लोगों की मौत हो गयी. दो लोग घायल हुए. टीवी चैनल देख रहे दर्शकों के लिए यह सड़क हादसे की एक खबर भर थी, जिस पर वे सिर्फ अफसोस प्रकट कर रहे होंगे. लेकिन, 28 साल की युवा सुप्रीत के लिए यह भयंकर विपदा थी- जीवन में हाहाकार मचा देनेवाली विपदा. जिस खबर को वह पढ़ रही थीं, वह उनके पति हर्षद कावड़े की सड़क हादसे में मौत की थी. लेकिन, न्यूज एंकर की अपने पेशे के प्रति निष्ठा देखिए कि वह रत्ती भर विचलित नहीं हुईं. पूरी खबर पढ़ी. बुलेटिन खत्म किया.
अपनी ड्यूटी पूरी की और जब स्टूडियो से बाहर आयीं, तो रिश्तेदारों को फोन मिला कर खबर की पुष्टि की. फिर फूट-फूट कर रोने लगीं. सहकर्मी हतप्रभ थे. कौर की शादी साल भर पहले ही हुई थी. सहकर्मी बता रहे हैं कि सुप्रीत को न्यूज पढ़ते वक्त ही आभास हो गया था कि हादसे में जिन लोगों की मौत हुई है, उनमें उनके पति भी हैं. वह न्यूज पढ़ती रहीं.
पत्रकारिता के पेशे में ऐसा उदाहरण विरला है. जो युवा पत्रकारिता (प्रिंट या इलेक्ट्रॉ़निक) के पेशे में सिर्फ इस वजह से आते हैं कि इसमें ग्लैमर है, उनके लिए यह वाकया आंख खोलनेवाला है. पत्रकारिता का डगर कठिन और चुनौतीपूर्ण है, यह बात फिर सच साबित हुई. पत्रकारीय धर्म निभाने को रोजमर्रे की परेशानियां तो छोड़िए, कभी-कभार दिल को कड़ा कर खुद के लिए निष्ठुर भी बनना पड़ता है, यह सीख सुप्रीत कौर ने दिया है.
शनिवार की देर रात इस खबर का संपादन करते वक्त मुझे बिहार के चर्चित फोटोग्राफर कृष्ण मुरारी किशन की याद आ गयी. किशन जी अब इस दुनिया में नहीं हैं. कुछ साल पहले उनकी पत्नी का निधन हुआ था. खबर मिली तो हम कई पत्रकार शोक संवेदना जाहिर करने उनके घर पहुंचे थे. कमरे में पत्नी का शव पड़ा था. उस दिन पटना में कई राजनीतिक गतिविधियां थीं. अगले दिन कुछ और बड़ा इवेंट था. किशन जी ने अपने बेटे को निर्देश दिया- आज का फोटो भेज दिया न! कुछ पत्रकारों ने उन्हें टोका- अरे छोड़िए फोटो. कहीं से मिल जायेगा. उनका जवाब था- नहीं, जब हमने कमिटमेंट किया है, तो भेजना तो पड़ेगा ही. कल भी दाह संस्कार के बाद फोटो कर लूंगा. मौजूद पत्रकार अवाक थे. यह भी पत्रकारिता के पेशे के प्रति निष्ठा का अनुपम उदाहरण था. निष्ठा इस बात की कि पाठक-दर्शक तक न्यूज-फोटो पहुंच जाये.
ऐसे पत्रकारों (जिनमें फोटो जर्नलिस्ट, न्यूज एंकर से लेकर रिपोर्टर व छायाकार तक हैं) की बदौलत ही तो तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच पत्रकारिता के पवित्र पेशे की साख अब भी कायम है.सुप्रीत कौर ने पति के मौत की ब्रेकिंग न्यूज पढ़ उन पत्रकारों के अंदर साहस भरा है, जो अपने पेशे के प्रति ईमानदार हैं और मानते हैं कि सूचनाएं पहुंचाना उनका पहला धर्म है. जब कभी उन पर सवाल खड़े होंगे, वे गर्व से जवाब दे सकने की स्थिति में होंगे कि हमारे पेशे में निष्ठा का ऐसा उदाहरण भी मौजूद है. क्या सुप्रीत का साहस उनलोगों के लिए जवाब नहीं है, जिनके मन में पत्रकारिता को लेकर कई तरह के पूर्वाग्रह हैं.

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