नयी दिल्ली : ग्रीनपीस और एयरविजुअल ने मिलकर ‘2018 वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट’ नाम से वायु प्रदूषण पर एक नयी रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट में साल 2018 में पीएम 2.5 के प्रदूषण स्तर के डाटा को सामने लाया गया है. इस रिपोर्ट में यह सामने आया है कि दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में 15 शहर भारत में हैं.
दूसरी तरफ़ एक ज़माने में दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर रहा बीजिंग इस बार 2018 के पीएम 2.5 डाटा के आधार पर 122वें स्थान पर चला गया है. हालांकि अभी भी यह विश्व स्वास्थ्य संगठन के वायु गुणवत्ता मानक से पांच गुना अधिक प्रदूषित है.
ग्रीनपीस साउथ ईस्ट एशिया के कार्यकारी निदेशक एब साना कहते हैं, “वायु प्रदूषण हमारे भविष्य और जीविका को गंभीर ख़तरे में डाल रहा है. लेकिन हम इसे बदल सकते हैं. मानव मृत्यु के साथ-साथ 225 खरब डॉलर का घाटा मजदूरी के क्षेत्र में हो रहा है और उससे भी ज़्यादा स्वास्थ्य पर ख़र्च करना पड़ रहा है. वायु प्रदूषण का हमारे स्वास्थ्य और जेब दोनों पर प्रभाव पड़ रहा है. हम इस रिपोर्ट से चाहते हैं कि लोग वायु प्रदूषण के प्रभाव को जाने क्योंकि एकबार लोगों को प्रदूषण के कुप्रभाव का ज्ञान हो गया, तभी वे इसे रोकने के लिए आगे आयेंगे.”
आइक्यूएयर के सीईओ फ़्रेंक हम्मस कहते हैं, “यह रिपोर्ट दुनिया भर में लगे हजारों वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन से ली गयी डाटा की समीक्षा के बाद तैयार की गयी है. अब लोग अपने सेलफ़ोन से एयरविजुअल प्लेटफ़ॉर्म से इस डाटा को देख सकते हैं. इस रिपोर्ट से यह भी ज़ाहिर होता है कि और भी बहुत सारे शहरों की वायु गुणवत्ता की निगरानी के लिए बड़े स्तर पर निगरानी स्टेशन लगाने की ज़रूरत है.”
इससे पहले इसी साल आयी ग्रीनपीस इंडिया की रिपोर्ट ‘एयरोपोक्लिप्स 3’ में यह बात सामने आ चुकी है कि सबसे प्रदूषित शहरों की संख्या भारत में 241 हो चुकी है. जबकि शुरुआत में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और पर्यावरण मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्ययोजना (एनसीएपी) के अंतर्गत सिर्फ़ 102 शहरों को ही चिन्हित किया गया था.
ग्रीनपीस इंडिया की पुजारिनी सेन कहती है, “इस रिपोर्ट ने एकबार फिर साबित किया है कि वायु प्रदूषण से निपटने के हमारे प्रयास दुरुस्त नहीं हैं और हमें पहले से ज़्यादा प्रभावी क़दम उठाने की जरूरत है. अगर हम भारतीयों को साफ़ हवा में सांस लेते देखना चाहते हैं तो हमें एनसीएपी, जीआरएपी जैसी योजनाओं को और भी प्रभावी, व्यापक और क़ानूनी सीमाओं के अंदर ज़मीनी स्तर पर लागू करना होगा.”
पुज़ारिनी कहती हैं, “साफ़ हवा मुमकिन है. बीजिंग का उदाहरण हमारे सामने है. हमारे पास वायु प्रदूषण से होने वाले संभावित ख़तरे को पुख्ता करने के लिए पर्याप्त शोध और तथ्य मौजूद हैं. असली सवाल है कि क्या इस समस्या से निपटने के लिए पर्याप्त राजनीतिक इच्छाशक्ति है? क्या हम प्रदूषित ईंधन और क्षय ऊर्जा स्त्रोतों से दूर जाने को तैयार हैं ?”