बिहारीगंज.
सार्वजनिक दुर्गा मंदिर बिहारीगंज में धूमधाम से मां दुर्गा की पूजा की जा रही है. इससे क्षेत्र का माहौल भक्तिमय हो गया है. बुजुर्गों का कहना है कि कई पुश्तों से यहां के स्थानीय लोग पूजा-अर्चना करते आ रहे हैं. आजादी से पूर्व झोपड़ी में माता की पूजा होती थी. आजादी के बाद ग्रामीणों के सहयोग से पक्की मंदिर निर्माण कराया गया था. मंदिर का भवन जर्जर होने की स्थिति में वर्ष 2008-2009 में नये मंदिर भवन का निर्माण कराया गया. बिट्रिश गर्वनर की अगुवाई में होती थी दुर्गा पूजा चर्चा है कि आजादी से पूर्व बिट्रिश राज्य के लेफ्टिनेंटेंट गर्वनर की अगुवाई में यहां धूमधाम से दुर्गा पूजा की जाती थी. उसी जमाने से बंगाल के मूर्तिकार द्वारा दशहरा से पूर्व एक माह रहकर माता की प्रतिमा बनायी जा रही है. प्रतिमा निर्माण के दौरान मूर्तिकार उपवास में रहकर संध्या काल में फलहार करते हैं.सार्वजनिक दुर्गा मंदिर परिसर में भैंसा की बलि पर वर्ष 1957 से लगा प्रतिबंधमंदिर में वर्ष 1957 से पूर्व भैंसा व पाठा (छागर) की बलि प्रदान करने की प्रथा चल रही थी. मान्यता था कि माता के दरबार में जो श्रद्धालु स्वच्छ भावना से पूजा-अर्चना करते थे. माता उसकी झोली भर देती थी. मनोकामना पूर्ण होने पर भैसा या पाठा चढ़ाकर बलि देते थे. पशु वध को देखते हुए पूजा कमेटी द्वारा वर्ष 1957 में सार्वजनिक बैठक कर भैंसा की बलि पर रोक लगा दी. इसके बाद वर्ष 1999 में सार्वजनिक बैठक में पाठा की बलि पर रोक लगायी गयी. मुख्य बाजार में सार्वजनिक दुर्गा मंदिर रहने के कारण अष्टमी पूजा से श्रद्धालुओं की भीड़ शुरू हो जाती है.
सार्वजनिक दुर्गा मंदिर समिति बिहारीगंज के अध्यक्ष राजेश साह ने बताया कि माता का दरबार शक्तिशाली हैं. यद्यपि श्रद्धालुओं की सुविधाओं को लेकर विशेष व्यवस्था रहती है. पंडित मुरारी झा ने बताया कि माता के दरबार में मनोकामना पूरी होने के लिए श्रद्धालुओं पान कराते हैं. इसके लिए अष्टमी के दिन विशेष पूजा करते हैं. इस दिन जो श्रद्धालु माता के दरबार में अपनी मनोकामना रखते हैं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

