गुमला. कुड़ुख भाषा व सांस्कृतिक पुनरुत्थान केंद्र बम्हनी गुमला के तत्वावधान में करम पखवारा का समापन एवं पूर्व संध्या समारोह आयोजित किया गया. सहायक प्राध्यापक व साहित्यकार डॉ तेतरू उरांव ने करम पेड़ के महत्व व विशेषता बताते हुए कहा कि करम पेड़ दिन-रात ऑक्सीजन वायु प्रदान करते हैं, जो मनुष्य के लिए बहुत जरूरी है. यह पर्व पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देता है. इसलिए हमारे पूर्वजों ने इस पेड़ के संरक्षण के उद्देश्य से करम की पूजा करना शुरू किया होगा. करम पेड़ के नीचे बैठने पर ओस की बूंदें गिरने जैसे महसूस होती है, जो अपने शरीर को ठंडक एहसास प्रदान करता है तथा करम आगमन का ही प्रतीक है. जितेश मिंज ने कहा कि इस तरह का पखवारा से हम आने वाले नौजवान पीढ़ी जो अपनी संस्कृति को, अपनी धरोहर दूर होते जा रहे हैं. उन्हें हम अवगत करा सके. शिवनंदन उरांव ने कहा कि करम पर्व में कई प्रकार के राज गीत लाल नृत्य हैं, जिसे हमें बचा कर रखना और आगे बढ़ाने की जरूरत है. पूर्व मुखिया बुद्धू टोप्पो ने कहा कि हमें अपनी भाषा, संस्कृति व सभ्यता को नहीं भूलना चाहिए. क्योंकि यह हमारी पहचान है. मौके पर पखवारा में शामिल लोगों ने नृत्य प्रस्तुत किया. मौके पर अमृता मिंज, अनिमा लकड़ा, सुनीता उरांव, राजमैत उरांव, सीता उरांव, उर्मिला उरांव, विनोद उरांव, बुधराम उरांव, जयश्री लकड़ा, बसंती उरांव, ममता मिंज, अनामिका मिंज, राजमुनी मिंज, प्रभा बारला, शांति मिंज, चंद्रमुनी उरांव, साम्य देवी, सुगी देवी, हुमंती कुजूर, बुद्धिमानी देवी, नीलिमा देवी, बसंती उरांव, प्रमिला उरांव, मंजू देवी, कमली उरांव, देवमती कुमारी, आशिम भगत, महेंद्र भगत आदि मौजूद थे.
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