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जिंदा रहने से लेकर मरने तक क्या है जीने की कला, पढ़िये… Exclusive Interview

जिंदा रहना एक कला है. अन्य जीवित प्राणियों से मनुष्य इसलिए सबसे अलग है कि वह अपने होने को प्रासंगिक बनाना चाहता है. कैसे जीवित रहने से लेकर मरने तक की योजना बनाकर इसे साकार किया जा सकता है, बता रहे हैं प्रो. देबज्योति मुखर्जी, जो जाने-माने लाइफ स्किल ट्रेनर हैं. पढ़िये प्रभात खबर डाट काम के संपादक गीतेश्वर प्रसाद सिंह से इनकी बातचीत के अंश:

प्रो. देबज्योति मुखर्जी जाने-माने इंस्टीट्यूट एक्सएलआरआई से पढ़े हैं. आप मोटिवेटर हैं. देश-दुनिया भर में घूमकर लाइफ स्किल की ट्रेनिंग देते हैं. आपका विजन है – मेक इन न्यू इंडिया. प्रभात खबर डिजिटल के संपादक गीतेश्वर प्रसाद सिंह से उनके Exclusive Interview के अंश…

आपको मैं मोटिवेटर के रूप में जानता था. बाद में पता चला कि आप लाइफ स्किल ट्रेनर हैं. आपने सेना के जवानों को भी ट्रेनिंग दी. कई संस्थाओं ने कई अवसरों पर आपको एंगेज किया. इतनी सारी चीजों में एक साथ विशेषज्ञता कैसे कर पाते हैं?

उत्तर: कोई भी काम हम करते हैं तो उसे 5-डब्ल्यू फ्रेम वर्क कहते हैं. क्या करने जा रहे हैं, किनके साथ, कब, कहां और क्यों कर रहे हैं. ये पांचों डब्ल्यू सेट हो जाएं तो कोई काम असंभव नहीं.. फिर आप किसी भी फील्ड में जाएं, या तो आप उसमें घुसेंगे नहीं या फिर टाप कर जाएंगे.

तो क्या आपकी सफलता का राज 5 डब्ल्यू है, कि इसमें और भी बातें हैं?

उत्तर: देखिये बहुत सारी चीजें है. ड्रीम को हमने गोल में बदला है. ड्रीम -डेट -डिक्लेरेशन एंड डेडीकेशन (फोर डी) के साथ आपको सपने देखने पड़ेंगे. मैंने 1999 में सपना देखा कि नये भारत का निर्माण करेंगे. यह नवभारतीयों के द्वारा होगा, जो हमारी संस्कृति को परिभाषित करेगा. हम अपने मनीषियों के चरण धो कर पानी नहीं पीएंगे, बल्कि उनको अपने भीरत जागृत करेंगे. यह सपना देखा और इसके लिए 1999 से 2032 तक का समय लिया. आपके भीतर वो साहस लाना होगा, तब आप तप कर निकलेंगे… या तो मरेंगे या करेंगे.

आपने सफलता पाने के लिए एक समय तय कर लिया? अभी तक की उपलब्धियों को देखकर क्या लगता है, जो सोचा था उसमें कुछ कमी है, कुछ विश्लेषण करने की जरूरत है, या सब कुछ सही दिशा में चल रहा है.

उत्तर: 1999 में जब यह तय किया उसी समय से लाइफ स्किल के बारे में सोचना शरू किया. तब उसको एक विषय के रूप में लोग नहीं मानते थे. हमारी योजना है कि लोगों के बीच एक मूल्य की स्थापना करनी है. पहले लोग यह नहीं सोचते थे कि मेरे द्वारा विश्व का भला हो, आज लाइफ स्किल न्यू एजुकेशन पालिसी का हिस्सा है. यूनिवर्सिटी के वीसी (उप कुलपति) सर्कुलर कर रहे हैं कि लाइफ स्किल पढ़ाना है. यहां तक आ गया. साढ़े तीन लाख लोगों को मैंने ट्रेनिंग दी, इसमें सभी वर्गों के लोग शामिल हैं. आर्मीमैन, पुलिस से लेकर क्रिमिनल तक. यह संख्या अभी नाकाफी है. हालांकि, परिवर्तन दिखने लगा है. हजार से अधिक ट्रेनर तैयार हो गए हैं.

आप मेक-इन-इंडिया का अभियान चलाए हुए हैं, क्या यह उसी का हिस्सा है. या उससे अलग है?

उत्तर: साध्य मेक इन न्यू इंडिया है, साधन यह है.

आपने अलग-अलग वर्गों तो ट्रेनिंग दी. पुलिस से लेकर कैदियों तक को सिखाया. एंटरप्रन्योर से लेकर मीडिया को भी बताया. सभी में कामन बातें क्या नजर आईं.

उत्तर: ये “न्यू यू इन यू” लाइफ स्किल का उद्देश्य है कि आपके भीतर एक नया आप है. वो नया आप कभी गलत नहीं है. उस नये आप को सुला दिया गया है. हम उसे जगाते हैं. हर एक के भीतर एक नया कांसेंस है, उसे जगाने का काम करते हैं.

आपका केजी टू पीजी का कांसेप्ट क्या है.

उत्तर: देखिये, केजी टू पीजी इसलिए कहते हैं कि लाइफ स्किल बहुत बड़ा जोनरा है. तो सेट आफ लाइफ स्किल होते हैं. दो साल के बच्चे के लिए अपने से खाना खा लेना, चलना भी लाइफ स्किल है. जब थोड़ा बड़ा हुआ तो कैसे दोस्त बनाएंगे, कैसे स्टडी पर ध्यान देंगे, यह उसके लिए लाइफ स्किल है. जैसे और थोड़ा बड़ा हुआ, लाइक और लव में अंतर समझना, दुनिया के आडंबर को समझना लाइफ स्किल है. जब और बड़ा हुआ तो नौकरी करना, टीम लीड करना लाइफ स्किल है. और बड़ा हुआ तो घर खरीदना लाइफ स्किल है. शादी करना है, तो उसके लिए निगोसिसशन स्किल ही लाइफ स्किल है. अब आपके पास संतान आ गए तो पेरेटिंग लाइफ स्किल है. जब और बड़े हुए तो पैसा बर्बादी का कारण न बने, इसे किस तरह छोड़ें कि सृजनात्मक काम में आए, यह भी लाइफ स्किल है. फिर अंत में अपनी जिंदगी के अंतिम दिन कैसे बिताएं, ये भी लाइफ स्किल है. कुछ सेट्स आफ लाइफ स्किल बदलते हैं, कुछ सेट्स आफ लाइफ स्किल कामन हैं.

हम गांव में रहते थे तो ये सब बातें बड़े बुजुर्गों से सीखते थे. उसमें मूल्य अधिक थे, मगर व्यावहारिकता कुछ कम होती थी. आपकी बात से लगा कि पूरी जिंदगी की प्लानिंग करनी पड़ेगी. तो क्या आदमी जीने से लेकर मरने तक की प्लानिंग करेगा?

उत्तर: पहले इसकी जरूरत थी नहीं. न्यूक्लियर फेमिली बढ़ने के साथ बच्चे को दादा-दादी का संस्कार नहीं मिल पा रहा है. बाप-मां दोनों नौकरी कर रहे हैं. अब तक उसने जो सीखा नहीं, तो गैप क्रिएट हो गया. उस गैप को तो भरना पडे़गा. पहले एक बचपन को सिखाने के लिए पांच-पांच बुआ-चाचा रहते थे. दादा-दादी रखते थे। आज बच्चों को वो संस्कार मिल नहीं रहा है. लेकिन अगर हम इस तरह का माहौल तैयार कर देंगे तो वह माहौल भी उनको सिखाएगा. ऐसा नहीं कि हर बार किसी शिक्षक से ही सीखना पड़ेगा. आने वाले समय में होगा जो काम दादा-दादी करते थे, वो आपके पड़ोसी कर दें.

नोवेल लोरियट प्रो. युनूस से आप काफी प्रभावित हैं. और उनके सिद्धांतों पर आपने काफी काम भी किया है. बहुत सारी जगहों पर आप उन्हें कोट करते हैं. भारतीय संदर्भ में वो कितना सामयिक और प्रासंगिक हैं?

उत्तर: पुअर एज ए कस्टमर, का सिद्धांत उन्होंने दिया. गरीब सबसे इमानदार कस्टमर होता है, बशर्ते उनके ऊपर मानीटरिंग हो. मो. युनूस साहब का ज्वाइंट लाइबिलिटी ग्रुप जेएलजी को फालो कर हमने 550 रिक्शा चालकों को मालिक बनाया. वो भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के लिए प्रासंगिक हैं. उन्होंने थ्री-जीरो का सिद्धांत दिया- यानी जीरो फीसदी गरीबी, जीरो फीसदी बेरोजगारी और जीरो प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन. ये तीन जीरो पर वो काम कर रहे हैं और पूरी दुनिया उनको फालो कर रही है. विश्व कप फुटबाल होता है तो उनको समर्पित हो जाता है.

एक आम आदमी जीरो कार्बन उत्सर्जन में अपना योगदान कैसे दे सकता है.

उत्तरः एक आम आदमी जीरो कार्बन उत्सर्जन में अपना सहयोग दे सकता है. आम आदमी सबसे पहले प्लास्टिक जलाना बंद कर दे. उसे री-साइकिल कीजिए. हम थ्री- आर की बातें करते हैं. पहला आर है री-यूज..  दूसरा- रिड्यूस और तीसरा- री प्रोसेसिंग. आम आदमी यूज एंड थ्रो वाली वस्तु न खरीदे. आप बाजार जाते हैं तो घर से थैला लेकर जाएं. प्लास्टिक के थैले का इस्तेमाल बंद कर दें. प्रदूषण को कम करने के लिए प्लास्टिक की वस्तुओं का कम इस्तेमाल करें.

प्रो. देबज्योति मुखर्जी को हम किस रूप में पहचाने, एक अर्थशास्त्र के जानकार के रूप में, मोटिवेटर या लाइफ स्किल ट्रेनर के रूप में… आपको अपनी एक पहचान बनानी हो तो किस रूप में बनाना चाहेंगे?

उत्तरः मेरे जीवन का पहला मिशन है कि मैं दूसरे इंसान के मुख पर हंसी ला सकूं. दूसरा है वैल्यू एडेड रिलेशनशिप. आपके साथ जो रिश्ता है, उसे वैल्यू दें, तवज्जो दें. आज तक हमारा जिसके साथ भी संबंध बना है, बिगड़ा नहीं हैं. संबंध बनाना बहुत आसान है लेकिन उसे निभाना काफी मुश्किल. मनी इज द गुड सर्वेंट बट बैड मास्टर… मैंने पैसे को कभी मालिक नहीं बनाया, उतना ही चाहा जितनी जरूरत हो. मैं इस रूप में अपनी पहचान बनाना चाहता हूं.

कॉर्पोरेट की दुनिया में मूल्यों का ह्रास हो रहा है..  ऐसे में मूल्यों के साथ तरक्की कैसे संभव है. कई बार ऐसा होता है कि आदमी मुनाफा के आगे मूल्यों को गौण कर देता है.

उत्तरः  हम आपको हराना चाहते हैं और हम आपको जीतना चाहते हैं. दोनों में हमारी जीत है. आज सारा कॉर्पोरेट हराने में लगा है. दो कॉर्पोरेट मैनेजर जा रहे थे. सामने एक शेर दिख गया. उनमें से एक कॉर्पोरेट मैनेजर अपने जूते का फीता बांधने लगे. इसपर दूसरे ने कहा कि क्या लगता है… आप शेर से ज्यादा तेज भाग पाओगे. इसपर पहले कॉर्पोरेट मैनेजर ने कहा कि मुझे तो बस आपसे तेज भागना है. ताकी मैं बच जाऊं. काम है तो कंपटीशन होगा ही, लेकिन कंपीटिशन में दुश्मनी न आने दें. जब हम किसी को जीतते हैं तो हमारा वो सहयोगी बन जाता है और जब किसी को हराते हैं तो हमारा एक विरोधी खड़ा हो जाता है. कॉर्पोरेट में जीतने के लिए कंपटीशन हो, हराने के लिए न हो.

अगर बिहार और झारखंड के लिए आपको कुछ करने का मौका मिले तो आप तीन काम क्या करना चाहेंगे?

उत्तरः सबसे पहला काम तो यह करूंगा कि जितने भी स्कूल हैं, उनकी कक्षा आठ, नौ और दस के लिए लाइफ स्किल को एक सब्जेक्ट के रूप में पेश करूंगा. पुलिस प्रशासन में लाइफ स्किल ट्रेनिंग का काम शुरू करूंगा, ताकि उनके मामले में बिहार-झारखंड पूरे भारत को रास्ता दिखा सके. तीसरा महिलाओं के लिए हम काम करने की कोशिश करेंगे, क्योंकि मातृशक्ति आगे आएंगी तो ही देश आगे बढ़ पाएगा.




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