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पिछले महीने लोकप्रिय मैट्रिमोनियल वेबसाइट ‘भारत मैट्रिमोनी’ द्वारा सोशल मीडिया के माध्यम से एक सर्वे कराया गया. सर्वे को ‘एक्सयूजेज नॉट टू मैरी’ कैंपेन नाम दिया गया था. इसमें 4,000 युवाओं की प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं. यह सर्वे रिपोर्ट 10 प्रमुख प्रश्नों पर आधारित थी, जैसे- क्या शादी करने में उम्र की कोई भूमिका है? क्या […]

पिछले महीने लोकप्रिय मैट्रिमोनियल वेबसाइट ‘भारत मैट्रिमोनी’ द्वारा सोशल मीडिया के माध्यम से एक सर्वे कराया गया. सर्वे को ‘एक्सयूजेज नॉट टू मैरी’ कैंपेन नाम दिया गया था. इसमें 4,000 युवाओं की प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं. यह सर्वे रिपोर्ट 10 प्रमुख प्रश्नों पर आधारित थी, जैसे- क्या शादी करने में उम्र की कोई भूमिका है? क्या मानसिक रूप से तैयार न होना देर से शादी करने का प्रमुख कारण है?

सर्वे में लड़कों व लड़कियों द्वारा शादी नहीं करने और या फिर देरी से करने के कई मजेदार कारण बताये गये. कुछ लड़कों ने कहा कि वे खुद को मानसिक रूप से इसके लिए तैयार नहीं पाते. कुछ का कहना था कि अभी तक उनके दोस्तों ने शादी नहीं की है, इसलिए उन्होंने भी कुछ सोचा नहीं. वहीं कुछ ने ऐसे मजेदार कारण भी जाहिर किये- हर सप्ताह शॉपिंग पर नहीं जाना चाहते या उन्हें ढंग का खाना पकाना नहीं आता. दूसरी ओर लड़कियों द्वारा शादी न करने या फिर देरी से करने के तर्क लड़कों की तुलना में कहीं अधिक वैलिड और मीनिंगफुल लगे. ज्यादातर लड़कियां माता-पिता या परिवार से जुड़ी जिम्मेदारियों को निभाने की वजह से शादी नहीं करना चाहतीं. कुछ शादी के बाद होनेवाले सास-बहू ड्रामे से बचने के लिए शादी नहीं करना चाहतीं. कुछ लड़कियां ऐसी भी हैं, जो शादी करना तो चाहती हैं, लेकिन जबकि वे घर के कामकाज अच्छी तरह सीख लें या फिर उन्हें मनलायक कोई प्रिंस चार्मिंग मिल जाये.

अहमदाबाद में रहनेवाली (44) स्वतंत्र मीडिया प्रोफेशनल विनिता पारिख का मानना है कि शादी करना कोई जरूरी नहीं है. सिंगल होने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि आप अपनी जिंदगी से जुड़े सभी निर्णय खुद ले सकते हैं. आपको किसी से समझौता करने की जरूरत नहीं. हां, कभी-कभार इमोशनल वैक्यूम की स्थिति से दो-चार जरूर होना पड़ता है, लेकिन शादी करने पर ऐसी स्थिति नहीं आयेगी, इसकी भी कोई गारंटी नहीं है.

क्या कहते हैं आंकड़े

भारत के जनसंख्या आंकड़ों के अनुसार वर्ष 1990 में जहां लड़कियों की शादी की औसत आयु 19.3 वर्ष थी, वहीं 2011 में यह बढ़ कर 21.2 वर्ष हुई है. वर्ष 2001 से 2011 के बीच 25 से 29 वर्ष के आयु वर्ग में अकेली रहनेवाली महिलाओं की संख्या में सबसे अधिक वृद्धि (68 फीसदी) देखी गयी है, वहीं 20 से 24 आयु वर्ग में अकेली रहनेवाली महिलाओं की संख्या 60 फीसदी दर्ज की गयी है. यह आंकड़े निश्चित तौर पर विवाह व्यवस्था में विकार का संकेत प्रस्तुत करते हैं. क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट बरखा चुलानी का कहना है कि उम्र और मैच्योरिटी दो भिन्न पहलू हैं. जरूरी नहीं कि हर इनसान उम्र बढ़ने के साथ उसी लेवल पर मैच्योर भी हो जाये. यह उसके सामाजिक व मानसिक विकास पर निर्भर करता हैं. इसलिए उम्र को शादी का एक अहम निर्धारक मानना सही नहीं है.

दिल्ली की कंसल्टिंग साइकोलॉजिस्ट रचना कोठारी के अनुसार जो लोग जिंदगी में किसी का साथ पाने, किसी के साथ इमोशलनी व सेक्सुअली जुड़ने और शादी से जुड़ी जिम्मेदारियों को खुशी-खुशी निभाने की सोच कर यह निर्णय लेते हैं, उनके लिए तो शादी करना ठीक है, लेकिन जो किसी सोशल या इमोशनल प्रेशर में आकर शादी का निर्णय लेते हैं, उनके लिए कहीं से सही नहीं. ऐसा करके वे खुद तो फ्रस्ट्रेट होंगे ही, इस रिश्ते की खूबसूरती भी कम हो जायेगी. मेरे ख्याल से उन्हें इस बारे में दुबारा सोचने की जरूरत है.

मुझे प्यारी है अपनी आजादी

शादी बहुत बड़ी जिम्मेदारी है. मुझे लगता है कि यह जिम्मेदारी औरतों को ज्यादा निभानी पड़ती है. मैंने बचपन से ही अपने आसपास देखा है. मां ने खुद बहुत-सी कुर्बानियां दी हैं. अपनी खुशी के बजाय दूसरे की खुशी को ज्यादा महत्व दिया है. शादी की वजह से ही वह अपने सपनों को कभी जी नहीं पायीं. शायद शादी नहीं की होती तो मेरी मां भी आज अपना एक अलग मुकाम बना चुकी होतीं. शादी की नींव ही कॉम्प्रोमाइज पर टिकी है.

मैं इस मामले में स्वार्थी हूं. मेरा सिंपल फंडा है कि अगर मैं खुश नहीं हूं, तो मैं दूसरों को कैसे खुश रख सकती हूं. हम पैदा आजाद होते हैं, तो ऐसे में हमें रिश्तों की डोर में ऐसे क्यों बांधा जाता है. हमें एक-दूसरे को हमेशा आजाद ही रखना चाहिए. आप किसी को प्यार करते हैं, तो उसके लिए शादी नाम के लाइसेंस की क्या जरूरत है. मुझे अपने कैरियर से, अपनी आजादी से प्यार है, इसलिए मैं शादी जैसे शब्द में यकीन नहीं रखती हूं.

अच्छा लगता है अधूरापन

प्यार और शादी इनका दूर-दूर तक मेरी जिंदगी में कोई स्थान नहीं. जिंदगी ही मेरी प्रेयसी है और फिल्म मेकिंग से मेरी शादी हो चुकी है. मुझे अकेला रहना पसंद है. खास कर जब मैं किसी फिल्म से जुड़ता हूं, तो मैं किसी की दखलअंदाजी पसंद नहीं करता. मैं अकेले कमरे में बैठ कर कहानी लिखता हूं.

मुझे आस-पास कोई भी नहीं चाहिए. ऐसा शख्स कैसे शादी को निभा सकता है. अगर आपके पास किसी दूसरे के लिए समय ही नहीं है, तो आप अपनी जिंदगी में क्यों किसी को लाना चाहते हैं. मेरी फिल्मों की तरह निजी जिंदगी में प्यार का अधूरापन मुझे अच्छा लगता है. मैं इस बात से भी इनकार नहीं करता कि जिंदगी में कई बार अधूरेपन को महसूस करता हूं, लेकिन यही शायद मेरी किस्मत है. मैंने उसे चुना, अब यही मेरी जिंदगी है. मां और बहन मुझ पर शादी करने के लिए अकसर दबाव डालती हैं, लेकिन अपने क्राफ्ट को अपनी जिंदगी, अपना प्यार सब कुछ समर्पित कर चुका हूं.

शादी से दूर भागने की और भी वजहें

हो सकता है बहुत से लोग खुशनुमा जिंदगी जीने के लिए शादी को जरूरी मानते हों, पर मैंने आज तक इस विषय पर कभी सोचा ही नहीं. मेरे नजरिये में जीवन में खुश रहने के लिए शादी एकमात्र उपाय नहीं है. हां, अपनी लाइफ में अगर जीने का कोई मकसद हो, तो उसे पूरा करने में जो ख़ुशी मिलती है, वह शायद अन्य किसी चीज से नहीं मिलती.

उषा कुमारी, अध्यक्ष, कुमुदिनी एजुकेशनल ट्रस्ट

सिंगल होने का मतलब यह नहीं कि आप दुनिया से अलग हो जाएं या खुद को अधूरा समझें. एक सामाजिक प्राणी होने के नाते कंपेनियनशिप इनसान की जरूरत है. आप अपने घर-परिवार और दोस्तों के बीच रह कर भी इस कमी को पूरा कर सकते हैं.

भक्ति (35 वर्ष), सॉफ्टवेयर कंसल्टेंट, अहमदाबाद

मेरे ख्याल से शादी की जरूरत उसी इनसान को होती है, जो खुद को अकेला या असुरक्षित महसूस करता है. मैं अपने अकेलेपन को खूब एन्जॉय करती हूं. मुझे अपनी इस आजादी पर किसी तरह का नियंत्रण मंजूर नहीं.

प्रियंका सेठी (33 वर्ष), इंजीनियरिंग टीचर, राजस्थान

आज की पीढ़ी तुलनात्मक रूप से अधिक कैरियर कॉन्शस है. वह शादी-ब्याह जैसी सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाने से पूर्व अपनी जिंदगी जी लेना चाहती है. यही कारण है कि लिव-इन जैसी अवधारणा को बल मिला है. हालांकि, शादी न करने की टेंडेसी अभी भी एक निश्चित तबके तक ही सीमित है. देर से ही सही, लेकिन युवा शादी कर जरूर रहे हैं, अन्यथा कब का हमारे सामाजिक ढांचे का पतन हो चुका होता.

धर्मशीला प्रसाद, प्रिंसिपल, पटना यूनिवर्सिटी

मेरे विचार युवाओं में शादी न करने की प्रवृति उनके आत्म-विश्वास की कमी को दरसाती है. वे स्वयं को इतना सक्षम नहीं मानते कि घर-परिवार की जिम्मेदारियों को एक साथ सफलतापूर्वक निभा सकें. इसके अलावा प्रेम में असफलता, रॉन्ग फेमिनिस्ट टेंडेंसी या शादी के प्रति सोसाइटी की सोच भी शादी से दूर भागने या फिर देर से शादी करने की प्रमुख वजहें हैं.

रंजन कुमार सिन्हा, लेक्चरर, मगध यूनिवर्सिटी

आज के युवा कैरियर कॉन्शस हैं. शादी के लिए तो पूरी उम्र पड़ी है, पर कैरियर में पीछे रह गये, तो कोई नहीं पूछेगा. देरी से शादी करने में हर्ज क्या है.

अभिजीत सिन्हा (30 वर्ष), डि. मैनेजर, हुवई टेलीकॉम, बेंग्लुरु

Prabhat Khabar Digital Desk
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