गरमी इन दिनों अपने चरम पर है. भागदौड़ भरी जिंदगी के बीच गरमी से राहत पाने के लिए हमलोग किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं. गरमी से बचने के लिए लोग कोल्ड ड्रिंक्स, जूस, गोला चुस्की सहित अन्य बर्फ युक्त चीजें बिना किसी जांच व परख के इस्तेमाल रहे हैं. इन सब पेय पदार्थों में यूज किया जाने वाला बर्फ किस स्तर का है, इसके बारे हम जानने की कोशिश भी नहीं करते हैं. अधिकतर पेय पदार्थों के काउंटर में कच्ची बर्फ का इस्तेमाल होता है. चिकित्सकों की मानें, तो इन जगहों पर इस्तेमाल होने वाली बर्फ गुणवत्ता पूर्ण नहीं होती है. ऐसे में बिना गुणवत्ता की जांच किये इसके इस्तेमाल से स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है. स्वास्थ्य एक्सपर्ट इसे सफेद जहर भी कहते हैं.
गुणवत्ता का मानक नहीं, जांच जरूरी
एक्सपर्ट बताते हैं कि जिस पानी का इस्तेमाल बर्फ जमाने में किया जाता है, उसकी जांच होनी चाहिए. उसमें यह पता लगाने की आवश्यकता है कि उस पानी का टीडीएस, क्लोराइड, मैग्निशियम आदि रासायनिक तत्व, डीओर ओबीडी कितना है. आमतौर पर शहर में जो बर्फ की सिल्लियां उपलब्ध होती हैं, उसकी जांच के लिए कोई इंतजाम नहीं है. फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड ऑथोरिटी ऑफ इंडिया की ओर से हाल ही में सभी राज्यों को लिखे गये पत्र में बाजारों में मिलने वाली बर्फ की सिल्लियों की जांच के लिए सिस्टम बनाने को कहा गया है. न केवल झारखंड, बल्कि देश में कई राज्यों में इस तरह का मैकेनिज्म काम नहीं करता है. यही वजह है कि लोग बर्फ के नाम पर कुछ भी बेच रहे हैं और हम कुछ भी खाने को विवश हैं. चिकित्सकों की मानें, तो खुली बर्फ का सेवन करना शरीर के लिए हानिकारक है. इसे यूज करने से पहले इसकी गुणवत्ता की जांच होना आवश्यक है.
शीतल पेय में होता है सर्वाधिक इस्तेमाल
कच्ची बर्फ का इस्तेमाल सबसे ज्यादा शीतल पेय पदार्थों में किया जाता है. इसके अलावा शादी-विवाह समारोह में शीत पेय पदार्थों को बनाने में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है. बाजार में गरमी के दिनों में बड़ी संख्या में बर्फ की सिल्लियां बिकती हैं. इसके अलावा शहर के चौक-चौराहों में मौजूद ठेलों पर धड़ल्ले से इसका इस्तेमाल किया जा रहा है.
इसका सेवन न करना ही एकमात्र उपाय : डॉ विद्यापति
इन दिनों धड़ल्ले से तमाम तरह के पेय पदार्थों में बर्फ का इस्तेमाल किया जा रहा है, इससे शरीर को कुछ देर के लिए राहत तो मिलती है, लेकिन इसके सेवन से कई तरह की बीमारियों को भी हम दावत देते हैं. इस संबंध में डॉ विद्यापति बताते हैं कि लस्सी हो, शरबत हो, गोला-चुस्की हो या कुछ और इसी तरह के पेय पदार्थ, उसमें किस तरह की बर्फ का इस्तेमाल किया जाता है, पता नहीं चल पाता है. हम भी बिना सोचे समझे गरमी से राहत पाने के लिए इसका इस्तेमाल कर लेते हैं. कई बार अपने घर के किसी आयोजन प्रयोजन में भी कच्ची बर्फ की सिल्ली लाकर इस्तेमाल करते हैं. इसके इस्तेमाल से सबसे पहले गला पर सीधा असर पड़ता है.गला का इंफेक्शन सबसे पहले हो जाता है. इसके बाद वायरल अटैक का खतरा भी उतना ही होता है. फीवर भी आने की संभावना बनी रहती है. वे बताते हैं कि कच्ची बर्फ के इस्तेमाल से होने वाली बीमारियों से बचने का सीधा उपाय इसका इस्तेमाल नहीं करना ही है.
पेट की बीमारियों का खतरा
हेल्थ एक्सपर्ट बताते हैं कि आमतौर पर बोरा आदि में भर कर जो बर्फ बाजारों में बिकती है, वह किस तरह के पानी से जमायी गयी है, कहां जमायी गयी है व उसके हाइजिन का कितना ध्यान रखा गया है. इन सब बातों की जानकारी आम ग्राहकों को नहीं हो पाती है. अनहाइजेनिक बर्फ जब सीधे पेट में जाती है, तो लीवर पर असर डालती है. ऐसे में डायरिया, दस्त और उल्टी की संभावना बनी रहती है. इसका लगातार उपयोग करने से पेट में कई और समस्या उत्पन्न हो सकती है.
क्या होती है कच्ची बर्फ : कच्ची बर्फ बनाने में न तो पूरी तरह साफ पानी का उपयोग किया जाता है, न ही इसको बनाते समय सफाई का ध्यान रखा जाता है. इसे पूरा समय भी नहीं दिया जाता है, जिससे यह कच्ची ही रह जाती है. अमूमन कच्ची बर्फ का उपयोग औद्योगिक संस्थानों में फ्रिजिंग या तापमान कम करने के लिए किया जाता है.
यहां होता है इस्तेमाल
जूस काउंटर
शीतल पेय के ठेलों पर
गोला चुस्की काउंटर में
लस्सी स्टॉल में
शादी समारोह में पानी ठंडा करने के लिए