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International Tea Day 2023: अंतर्राष्ट्रीय चाय दिवस आज, हमारी जिंदगी में रची-बसी है चाय की प्याली

बहुत पुरानी कहावत है,‘अंग्रेज चले गये, अंग्रेजी छोड़ गये.’ उसी प्रकार गांवों में आज भी यह कहावत प्रचलित है- ‘अंग्रेज आये और चाय की लत लगा गये.’ चाय यानी मिलने-जुलने का बहाना. कोई टेंशन है, तो एक कप चाय. जरूरी बात करनी है, तो एक कप चाय.

सोनम लववंशी

बहुत पुरानी कहावत है,‘अंग्रेज चले गये, अंग्रेजी छोड़ गये.’ उसी प्रकार गांवों में आज भी यह कहावत प्रचलित है- ‘अंग्रेज आये और चाय की लत लगा गये.’ चाय यानी मिलने-जुलने का बहाना. कोई टेंशन है, तो एक कप चाय. जरूरी बात करनी है, तो एक कप चाय. थकान हो रही है, तो एक कप चाय. कोई मेहमान आ गये, तो एक कप चाय. दोस्तों के साथ गपशप करनी हो, तो नुक्कड़ वाली एक कप चाय. पति-पत्नी के झगड़े मिटाना हो, तो एक कप चाय. रात को देर तक जागना हो या सुबह की नींद भगानी हो, एक कप चाय जरूरी हो जाती है. ऑफिस के काम की थकान हो या घर का तनाव एक कप चाय सारी परेशानियों का हल होता है. विश्व चाय दिवस पर चाय की कहानी पर आज की कवर स्टोरी .

हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा है चाय

हमारी आदत में शुमार है. या यूं कहें कि यह हमारी चाय जिंदगी का हिस्सा है. सुबह की पहली किरण हो या दोपहर की तपती गर्मी, यहां तक कि रात को सोने से पहले भी हम भारतीय चाय की चुस्की लेने से कोई गुरेज नहीं करते. चाय हमारे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा जो बन गया है. विज्ञान भी मानता है कि चाय पीने के बहुत से फायदे हैं. तभी तो पिछले 5 हजार सालों से दुनिया चाय का स्वाद ले रही है. यूं तो चाय दुनियाभर में लोकप्रिय है, पर हम भारतीयों का चाय से नाता कुछ ज्यादा ही गहरा रहा है. हम में से ज्यादातर लोगों की सुबह की शुरुआत ही चाय की चुस्कियों के साथ होती है, चाय के बिना तो हमारा कोई काम ही नहीं होता. इसलिए कि यह हमारी दिनचर्या में शामिल है. यहां तक कि घर में किसी के सिर में दर्द हो, तो दवा से पहले चाय पूछा जाता है. घर आये मेहमान का स्वागत भी हम भारतीय चाय से ही करते हैं.

चाय का इतिहास

वैसे तो भारत को दुनिया का सबसे बड़ा चाय उत्पादक देश नहीं कहा जाता. आश्चर्य की बात तो यह कि अपने उत्पादन की 70% खपत भी यही होती है. चाय का इतिहास जितना पुराना है, उसके पीछे की कहानी भी उतनी ही दिलचस्प है. कहते हैं कि भारत में चाय की शुरुआत बौद्ध भिक्षुओं ने की थी. वे चाय की पत्तियों को खाते थे, ताकि उन्हें नींद न आये और घंटों साधना में लीन रह सकें. चाय को लेकर कहा जाता है कि 2700 ईसा पूर्व चीनी शासक शेन नुंग अपने बगीचे में बैठकर गर्म पानी पी रहे थे, तभी पेड़ की पत्ती उनके पानी में आ गिरी, जिससे पानी का रंग और स्वाद बदल गया. ये स्वाद उन्हें इतना अच्छा लगा कि उन्होंने इन पत्तियों का नाम ही ‘चा’ रख दिया. मेंडेरिन भाषा में इस शब्द का अर्थ खोज या तहकीकात से है. चीन में इसी से चाय की शुरुआत मानी जाती है.

चाय पिलाने के मायने बहुत अलग

भारत में चाय पिलाने के मायने बहुत अलग है, चाय पीना या पिलाना मतलब फुरसत के कुछ लम्हें खुद के लिए निकालना. इस भागदौड़ भरी जिंदगी में चाय ही है, जो आप सुकून से पीना पसंद करेंगे. ऑफिस के टेंशन के बीच कुछ पल खुद के लिए निकालना हो, तो चाय की चुस्कियां लेना आम बात है. चाय एक ऐसा पेय है, जो हमारी हर तरह की भावनाओं से जुड़ा हुआ है. वैसे तो चाय हर गली-नुक्कड़ से लेकर बड़े-बड़े होटलों की शोभा बढ़ाती है, लेकिन ईरानी कैफे की अपनी अलग चाय विरासत है.

मुंबई की विरासत ‘कैफे डेला पैक्स’

मुंबई के ‘कैफे डेला पैक्स’ में चाय पीने का पुराना रिवाज है. यह मुंबई का सबसे पुराना ईरानी कैफे है. ‘कैफे डेला पैक्स’ शहर की सांस्कृतिक विरासत भी है. गिरगांव चौपाटी के पास आकर्षक आर्ट डेको बिल्डिंग में‘कैफे डेला पैक्स’ को एक जमींदार के आग्रह पर यह नाम दिया गया था. इस कैफे में डिनर में एक कप चाय जरूर होती है. मगर, वर्तमान दौर में ये विरासत बिखर रही है. शहर के ईरानी कैफे बंद होने के कगार पर हैं. आज इन ईरानी कैफे को संरक्षण की दरकार है.पारसियों ने 19वीं सदी के अंत में दक्षिण मुंबई में सड़क के किनारे कैफे खोलना शुरू किया. ये 90 के दशक के में सांस्कृतिक आधारशिला बन गये.

मुंबई की विरासत ‘कैफे डेला पैक्स’

मुंबई के ‘कैफे डेला पैक्स’ में चाय पीने का पुराना रिवाज है. यह मुंबई का सबसे पुराना ईरानी कैफे है. ‘कैफे डेला पैक्स’ शहर की सांस्कृतिक विरासत भी है. गिरगांव चौपाटी के पास आकर्षक आर्ट डेको बिल्डिंग में‘कैफे डेला पैक्स’ को एक जमींदार के आग्रह पर यह नाम दिया गया था. इस कैफे में डिनर में एक कप चाय जरूर होती है. मगर, वर्तमान दौर में ये विरासत बिखर रही है. शहर के ईरानी कैफे बंद होने के कगार पर हैं. आज इन ईरानी कैफे को संरक्षण की दरकार है.पारसियों ने 19वीं सदी के अंत में दक्षिण मुंबई में सड़क के किनारे कैफे खोलना शुरू किया. ये 90 के दशक के में सांस्कृतिक आधारशिला बन गये.

लंदन में चाय की कहानी भी पुरानी…

ब्रिटेन में 1658 में पहली बार चाय के विज्ञापन अखबारों में छपे. तब इसे ‘टे’ नामक ड्रिंक के नाम से बेचा जाता था,पर इसकी लोकप्रियता एक शाही परिवार की शादी में बढ़ी. वर्ष 1662 में ब्रिटेन के राजा चार्ल्स द्वितीय की शादी एक पुर्तगाली राजकुमारी कैथरीन से हुई. राजकुमारी अपने साथ एक खास चीज लेकर लंदन पहुंची थीं, वो थी चीन की चाय. रानी ने सभी मेहमानों को चाय परोसी, तभी से ब्रिटेन के शाही दरबार में कुलीन लोगों को चाय पेश की जाने लगी. इसे शाही पेय के रूप में पहचान मिली.

जायका सेहत का…

हमारे देश में एक धारणा प्रचलित है कि चाय पीने से लोग काले होते है, जबकि वैज्ञानिक इसे नकारते हैं. उनका मानना है कि चाय में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट त्वचा के लिए फायदेमंद होते हैं. वहीं, शोध की मानें, तो चाय गर्भाशय कैंसर के जोखिम को भी कम करती है. चाय से डायबिटीज भी लेवल में रहता है. जर्मनी की हेनरिक हेन यूनिवर्सिटी के लेबनीज सेंटर फॉर डायबिटीज रिसर्च के मुताबिक, चाय से मधुमेह के खतरे को भी कम किया जा सकता है. एक प्याली चाय किसी अमृत से कम नहीं होती. आप जितनी ज्यादा चाय पियेंगे, नतीजे उतने ही सुखद होंगे.

हर मौसम में जरूरी है चाय…

सर्दी हो या गर्मी, चाय के बिना हमारे दिन की शुरुआत नहीं होती. चाय जीवन का हिस्सा है, इसके बिना जीवन खाली-सा लगता है. कड़ाके वाली ठंड में एक प्याली चाय गर्माहट का अहसास कराती है. वहीं, बढ़ती गर्मी में लू के थपेड़े चाय पीते ही ठंडक का अहसास करा देते हैं. बरसात की बूंदों के बीच गर्मागर्म चाय का मजा ही अलग है. कहने का मतलब है कि चाय हर मौसम में लोगों का पसंदीदा पेय है. पानी के बाद अगर सबसे ज्यादा कुछ पीया जाता है, तो वह चाय ही है.

हर चाय कुछ कहती है…

वैसे तो चाय के कई फ्लेवर हैं, पर मुख्य रूप से ग्रीन, ऊलौंग और ब्लैक टी लोगों की पसंदीदा होती है. जीरो ऑक्सीडाइज्ड वाली पत्ती ग्रीन टी होती है, हाफ ऑक्सीडाइज्ड पत्ती ऊलौंग टी होती है, जबकि फुल ऑक्सीडाइज्ड को ब्लैक टी. भारत में ब्लैक टी को दूध और चीनी के साथ पिया जाता है. भारत ब्लैक टी का न सिर्फ सबसे बड़ा उत्पादक देश है, बल्कि सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है. असम और दार्जलिंग की वादियां चाय के लिए काफी मशहूर हैं.

ग्रीन टी…

ग्रीन टी में एंटीऑक्सीडेंट होता है, जो कोलेस्ट्रॉल को कम करने और स्वस्थ कोशिकाओं में तेजी से वृद्धि करने में मदद करता है. चेहरे की खूबसूरती बढ़ाने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है. ग्रीन टी में चीनी मिलाकर चेहरे पर लगाने से मृत कोशिकाओं को हटाने में मदद मिलती है. इसे फेस स्क्रब के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है. यह एक बेहतरीन टोनर है, जो बंद पड़े रोम छिद्रों को खोलने में मदद करती है.

ब्लैक टी…

ब्लैक टी हार्ट के लिए फायदेमंद है. यह चाय हृदय रोग के खतरे को कम करती है और डायबिटीज के स्तर को घटाती है. यह तैलीय त्वचा वाले लोगों के लिए भी गुणकारी है. ब्लैक टी रोम छिद्रों में कसावट लाने व त्वचा में ताजगी लाने में मदद करती है.

रूइबोस या हर्बल टी…

हर्बल टी में कैफीन नहीं होता है और टैनिन भी कम होता है. इसमें कैंसर से लड़ने के गुण होते हैं. यह त्वचा की एलर्जी में भी लाभकारी होती है. इसे एक नेचुरल स्मूथ क्लीनर के रूप में प्रयोग कर सकते हैं. यह त्वचा पर झाइयां, दाग-धब्बे, मुंहासे और सूजन को कम करने में मदद करती है.

ऊलौंग टी… 

ऊलौंग टी एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होती है. यह कैल्शियम, मैग्नीज, पोटैशियम, कॉपर व सेलेनियम का भी प्रमुख स्रोत है. यह मोटापा कम करने में मदद करती है. दांतों को भी खराब होने से बचाती है. यह त्वचा को स्वस्थ और रंग साफ रखती है. यह काले धब्बे और झुर्रियों को कम करती है.

असम की ‘लाल चा’…

असम, सिक्किम और उत्तर पूर्व भारत में लाल चा काफी प्रचलित है. ये एक सिंपल ब्लैक टी है, जो बिना दूध के तैयार की जाती है, जिसमें कुछ ही मात्रा में चीनी डाली जाती है. चाय का रंग रेडिश ब्राऊन कलर का होता है और यही वजह है कि इसका नाम ‘लाल चा’ रखा गया है.

कश्मीर का कहवा…

कश्मीर अपनी खूबसूरत वादियों के साथ कहवा चाय के लिए काफी प्रसिद्ध है. मसालों व सूखे मेवों वाली चाय से यहां आने वाले हर यात्री को प्यार हो जाता है. कश्मीर में स्टॉल या हर होटल में लोग कहवा परोसते हुए दिख जायेंगे. यहां की बर्फबारी को सहन करने के लिए इससे बेहतर कुछ हो ही नहीं सकता.

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