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ऑनलाइन ऑर्डर करने से पहले जानिए दिमाग की ये चालाकी, समझ लिये तो कभी नहीं डूबेगा पैसा

Smart Online Shopping Tips: जानिए ऑनलाइन शॉपिंग के दौरान आपका दिमाग कैसे प्रतिक्रिया करता है. डोपामिन, मेसोलिंबिक रिवार्ड पाथवे, डिसीजन थकान और पोस्ट-पर्चेस डिसोनेंस के बारे में समझकर कैसे आप स्मार्ट शॉपिंग कर सकते हैं.

Smart Online Shopping Tips: आजकल ऑनलाइन शॉपिंग हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन चुकी है. मोबाइल में ऐप खोलते ही डील्स, डिस्काउंट और लिमिटेड ऑफर की बाढ़ से हमारा मन खुश हो जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस खुशी के पीछे दिमाग का साइंस छुपा है? मेडिकल साइंस कहती है कि ऑनलाइन शॉपिंग सिर्फ पैसों का लेन-देन नहीं, बल्कि हमारे ब्रेन की न्यूरोलॉजिकल एक्टिविटी का खेल है.

पसंदीदा प्रोडक्ट को देखते हुए डोपामीन रिलीज होता है दिमाग में

जैसे ही आप किसी पसंदीदा प्रोडक्ट को देखते हैं या कार्ट में डालते हैं, दिमाग में डोपामिन रिलीज होता है. यही हॉर्मोन हमें “हैप्पी और एक्साइटेड” महसूस कराता है. डिस्काउंट या ऑफर देखकर अचानक खुशी का अनुभव होना भी इसी का नतीजा है.

रिवार्ड सिस्टम है मस्तिष्क की “इनसेंटिव मशीन

हमारा ब्रेन मेसोलिंबिक रिवार्ड पाथवे की तरह समझता है. यानि कि अगर साधारण भाषा में बोले तो ये दिमाग के खुशी का रास्ता है. आप इसे इस तरह से भी समझ सकते हैं कि जब हम सोशल मीडिया चलाते हैं और उस वक्त हमें कोई चीज पसंद आ जाए तो हम सबसे पहले उनकी प्राइस देखते हैं. वहां पर हमें मार्केट प्राइस भी दिखाई दे जाता है और उस प्लेटफॉर्म पर मौजूदा कीमत भी दिख जाती है. ऐसे में हम जल्दबाजी में तुरंत ऑर्डर कर देते हैं. यानी कि हमारा दिमाग इस खरीदारी को मिनी रिवार्ड समझता है. ऑर्डर करने के बाद तुरंत हमारे प्रोडक्ट हाथ में नहीं आता है, लेकिन दिमाग पहले ही जीत का एहसास दिला देता है.

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विकल्पों का दबाव

ऑनलाइन शॉपिंग करने के दौरान हमारे सामने हजारों विकल्प सामने आते हैं. मेडिकल साइंस इसे डिसिजन फैटिग ही कहते हैं. जब हमारे पास एक के बजाय 10 और विकल्प मिलेंगे तो थके हुए दिमाग में हम अक्सर जल्दी निर्णय लेने लगते हैं. कई बार तो हम जरूरत से ज्यादा भी खरीदारी कर लेते हैं. और इसी हमें बचने की जरूरत है.

खुशी और कनेक्शन के हॉर्मोन

सिर्फ खरीदना ही नहीं, दोस्तों के साथ शॉपिंग या गिफ्टिंग में ऑक्सिटोसिन और सेरोटोनिन रिलीज होते हैं. ये हॉर्मोन मूड और खुशी बढ़ाते हैं. लेकिन खरीदारी के बाद का हम सोचते हैं कि “क्या हमने सही किया?” जैसे ही ऑर्डर कन्फर्म होता है उस वक्त बार दिमाग में बार बार यही सवाल उठता है कि “क्या हमारा निर्णय सही था?” इसे पोस्ट- पर्चेस डिसोनेंस कहते हैं. दरअसल उस वक्त हमारा दिमाग सोचता है कि क्या यह प्रोडक्ट हमारे लिए सही था. इस वजह से हमें थोड़ा तनाव या बेचैनी होना आम बात है.

आदत बन जाना

जब हम बार-बार किसी एक साइट पर प्रोडक्ट की तलाश करते हैं. ऐसे में कंपनी की ओर ऑफर और नोटिफिकेशन आने लगता है. जिससे दिमाग में हैबिट लूप बन जाता है. और जैसे ही सेल का मैसेज आता है, डोपामिन स्वतः रिलीज़ होना शुरू हो जाता है. यही कारण है कि कई लोग बिना जरूरत बार-बार ऑनलाइन खरीदारी करते हैं. बचने का तरीका यही है कि आप किसी प्रोडक्ट को सर्च करते वक्त एक ही ऑनलाइन शॉपिंग साइट की तरफ न देखें.

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Sameer Oraon
Sameer Oraon
इंटरनेशनल स्कूल ऑफ बिजनेस एंड मीडिया से बीबीए मीडिया में ग्रेजुएट होने के बाद साल 2019 में भारतीय जनसंचार संस्थान दिल्ली से हिंदी पत्रकारिता में पीजी डिप्लोमा किया. 5 साल से अधिक समय से प्रभात खबर में डिजिटल पत्रकार के रूप में कार्यरत हूं. इससे पहले डेली हंट में भी बतौर प्रूफ रीडर एसोसिएट के रूप में भी काम किया. झारखंड के सभी समसमायिक मुद्दे खासकर राजनीति, लाइफ स्टाइल, हेल्थ से जुड़े विषय पर लिखने और पढ़ने में गहरी रूचि है. तीन साल से अधिक समय से झारखंड डेस्क पर काम किया. फिर लंबे समय तक लाइफ स्टाइल डेस्क पर भी काम किया. इसके अलावा स्पोर्ट्स में भी गहरी रूचि है.

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