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Jharkhand News : झारखंड के पलामू टाइगर रिजर्व पर क्यों टिकी थी अंग्रेज अफसरों की नजर

Jharkhand News : लातेहार जिले के बेतला के पेड़-पौधे और जीव-जंतुओं से लबरेज पलामू टाइगर रिजर्व पर अंग्रेजों की भी नजर रही थी. यहां के घने जंगलों में बांस, सखुआ की लकड़ी सहित अन्य कीमती लकड़ियों को काटने और इसके व्यवसाय कराने के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी.

Jharkhand News : लातेहार जिले के बेतला के पेड़-पौधे और जीव-जंतुओं से लबरेज पलामू टाइगर रिजर्व पर अंग्रेजों की भी नजर रही थी. यहां के घने जंगलों में बांस, सखुआ की लकड़ी सहित अन्य कीमती लकड़ियों को काटने और इसके व्यवसाय कराने के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी. जंगलों को अंधाधुंध काटा गया था. छिपादोहर, लातेहार सहित अन्य जगहों पर लकड़ी के बड़े-बड़े डिपो बनाये गये थे. छिपादोहर का बांस डिपो तो आजादी के बाद भी काम करता रहा.

बरवाडीह जंक्शन का ये था मकसद

बेतला के अलावा रमनदाग, गारू, मिरचइया, बारेसाढ़, महुआडांड़ के जंगलों में बांस की भरमार थी. परिवहन के लिए डाल्टेनगंज रेलवे स्टेशन से बरवाडीह होते छिपादोहर, हेहेगड़ा सहित घने जंगलों से होकर लातेहार तक 1924 में रेलवे पटरी बिछाने का काम किया गया था, ताकि यहां से वन उत्पादों को गंतव्य तक ले जाया जा सके. बांस को डालमियानगर के अशोक पेपर मिल के लिए भेजा जाता था. बरवाडीह के पास हुंटार से निकलने वाले कोयला को भी अंग्रेजों के द्वारा निकालने का काम शुरू किया गया था. इतना ही नहीं लकड़ी और कोयला ढोने के लिए 1935-36 के आसपास बरवाडीह चिरमिरी रेलवे लाइन का काम शुरू किया गया था. बरवाडीह जंक्शन भी इसीलिए बनाया गया था, ताकि घने जंगलों से होकर बने पदार्थों को यहां लाया जा सके और फिर यहां से दूर-दूर तक अन्य प्रदेशों में भेजा जा सके.

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अंग्रेज पदाधिकारियों का था पसंदीदा स्थल

उस समय पलामू टाइगर रिजर्व के बीहड़ जंगल लोगों के रोंगटे खड़े कर देते थे. दुबियाखाड़ के बाद से ही घने जंगलों का सिलसिला शुरू हो जाता था जो नेतरहाट तक सिर्फ जंगल ही जंगल से आच्छादित दिखता था. जानकार बताते हैं कि केचकी के पास औरंगा-कोयल नदी के संगम पर विश्रामगृह बनाने का भी यही उद्देश्य था ताकि नदी के किनारे बैठ कर जंगली जंतुओं के नजारा लिया जा सके. अंग्रेज पदाधिकारियों का यह पसंदीदा स्थल रहा था. पोलपोल के घने जंगलों में बाघ सहित कई अन्य हिंसक जानवर भी देखे जाते थे. जानवरों की इतनी अधिक संख्या थी कि 1974 में पलामू टाइगर रिजर्व के गठन के बाद पलामू सेंक्चुरी के नाम से जंगली जानवरों को देखने के लिए व्यवस्था की गयी थी.

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रिपोर्ट : संतोष कुमार, बेतला, लातेहार

Prabhat Khabar Digital Desk
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