Dev Anand 100th Birth Anniversary: बॉलीवुड के अधिकांश सफल अभिनेताओं का एक दौर रहा, लेकिन देव आनंद ताउम्र सदाबहार बने रहे. आज भी वे लोगों के लिए एक प्रेरणास्रोत हैं. देव साहब ने कई पीढ़ियों की महिलाओं के दिलों पर राज किया. वे हिंदी सिनेमा के इकलौते अभिनेता रहे, जिन्हें 'स्टाइल आइकन' कहा गया. देव साहब के साथ फिल्मों में काम कर चुकीं अपने जमाने की मशहूर अभिनेत्री आशा पारेख से उर्मिला कोरी की खास बातचीत.
बेहद कमाल की थी देव साहब की एनर्जी
भारतीय सिनेमा के सौ वर्षों के इतिहास में स्टारडम और स्टार्स के प्रति फैंस की दीवानगी की बात चलती है, तो लोग राजेश खन्ना का नाम लेते हैं, लेकिन मैं बताना चाहूंगी कि मैंने वैसी ही दीवानगी देव साहब के लिए भी देखी है. दोनों सुपरस्टार्स के साथ मैंने काम किया है. मैं कहूंगी कि दोनों का स्टारडम एक सामान था. देव साहब के साथ मैंने तीन फिल्में की हैं. कई बार फिल्मों की शूटिंग रुक जाती थी, क्योंकि लोगों की भीड़ वहां पहुंच जाती थी. कई बार उन्हें संभालना इतना मुश्किल हो जाता था कि शूटिंग को कैंसिल करना पड़ता था. कोई उन्हें छूना चाहता, तो कोई उन्हें गले लगाना चाहता था. लड़कियां उन्हें चूमने की भी कोशिश करती थी. उनकी हेयर स्टाइल, ड्रेसिंग सेंस सबकुछ बहुत पॉपुलर था.
फैंस का प्यार
मुझे याद है कि हमारी फिल्म 'जब प्यार किसी से होता है' के गाने 'ये आंखें उफ उई मा' की शूटिंग दार्जिलिंग में हो रही थी. जहां पर हमारी शूटिंग हो रही थी, वह जगह फूलों से भरी पड़ी थी. ऐसा लग रहा था कि प्रकृति ने फूलों का कारपेट बिछाया हो, लेकिन देव साहब को देखने के लिए ऐसा हुजूम उमड़ा कि एक भी फूल उस जमीन पर नहीं बच पाया. फूलों से भरी जमीन कुछ मिनटों में पूरी तरह से बंजर में बदल गयी थी.
देव साहब दौर से आगे की सोचते थे
देव साहब को सिनेमा की समझ बहुत ज्यादा थी. वे उस दौर से आगे की सोचते थे. सीन को कैसे बेहतर करना है, यह उनके जेहन में हमेशा चलता रहता था. फिल्म 'जब प्यार किसी से होता है' में एक सीन भांग के लड्डू खाने वाला है. इसके बाद हम एक-दूसरे को थप्पड़ मारते हैं. उस सीन को परफेक्ट बनाने के लिए उन्होंने हाथों से ग्लव्स हटाकर मुझे थप्पड़ मारा था. थप्पड़ तेज था. मैंने भी गुस्से में वैसे ही तेज थप्पड़ मारा. जैसे ही सीन कट हुआ. हम दोनों के चेहरे पर थप्पड़ के निशान थे. देव साहब ने कहा कि सॉरी आशा, मैं सीन में पूरी तरह से चला गया था. देखना दर्शकों को यह सीन बहुत पसंद आयेगा. सेट पर शायद ही कभी मैंने उन्हें बैठते हुए देखा हो. पूरा समय वह असिस्टेंट डायरेक्टर्स और क्रू के लोगों से बात करते रहते थे. उनकी एनर्जी कमाल की थी. मुझे लगता है कि अगर वह किसी को गलती से टच भी कर लेते तो वह भी एनर्जी से लबरेज हो जाता. मेरी उनकी आखिरी मुलाकात उनकी मौत से कुछ महीने पहले हुई थी. उस वक्त वह 88 के थे और उन्हें हमारी फिल्म से जुड़ी हर एक छोटी-बड़ी बात याद थी. उस उम्र में भी उनकी याददाश्त कमाल की थी.
परिचय
मूल नाम : धरमदेव पिशोरीमल आनंद (देव आनंद)
जन्म : 26 सितंबर, 1923, गुरुदासपुर (पंजाब)
निधन : 03 दिसंबर, 2011, लंदन (यूके)
पत्नी : कल्पना कार्तिक
बच्चे : सुनील आनंद, देवीना आनंद
भाई-बहन : पांच भाई बहनों में तीसरे नंबर पर थे देव
आनंद. इनके अलावा बड़े भाई मनमोहन आनंद (वकील) और चेतन आनंद (निर्माता-निर्देशक) थे, वहीं छोटे भाई विजय आनंद (निर्देशक) और छोटी बहन शीला कांता कपूर (हाउस वाइफ) थीं.
शिक्षा : लाहौर गवर्नमेंट कॉलेज से अंग्रेजी ऑनर्स के साथ स्नातक किया.