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फिर से मुस्कुराएगी जिंदगी

कोरोना काल मानवता के सामने सबसे भयावह संकट के साथ खड़ा है. मानवता के सामने यह यक्ष प्रश्न है कि क्या जिंदगी एक बार फिर से मुस्कुराएगी ?

विजय बहादुर

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कोरोना काल मानवता के सामने सबसे भयावह संकट के साथ खड़ा है. मानवता के सामने यह यक्ष प्रश्न है कि क्या जिंदगी एक बार फिर से मुस्कुराएगी ? वर्तमान परिस्थिति में यह अत्यंत सहज प्रश्न है क्योंकि-

1. भारत की 130 करोड़ जनता दो महीने तक लॉकडाउन के कारण घरों के अंदर सिमटी हुई है.

2. महानगरों से हजारों श्रमिक, कामगार पैदल, साइकिल से 1000 से 2000 किलोमीटर तक की यात्रा आधा पेट भोजन करते हुए अपने पैतृक घर पहुंच रहे हैं.

3. आगरा- मुंबई राजमार्ग में परिवार के सदस्य बैलगाड़ी में बैठकर अपने घर की तरफ प्रस्थान करते हैं. बैलगाड़ी को खींचने के लिए एक तरफ बैल है, तो दूसरी तरफ परिवार के बाकी सदस्य बारी- बारी से बैलगाड़ी खींच रहे हैं.

4. हैदराबाद से एक व्यक्ति अपनी गर्भवती पत्नी और दो साल की बेटी के साथ 800 किलोमीटर दूर अपने घर की तरफ निकल पड़ता है. कुछ दूर तक बेटी को गोद में बिठाकर चलता रहा, लेकिन जब थक गया तो बांस और लकड़ी से हाथगाड़ी बना लिया और उसमें पत्नी और बेटी को बैठाकर आगे की यात्रा पर निकल पड़ा. पिछले लगभग दो महीने से इस तरह के मानव संघर्ष के दर्दनाक मामले लगातार सुनने को मिल रहे हैं.

इस तरह की घटनाओं को सुनना- जानना मन को अंदर से झकझोर देता है. मन में बार- बार टीस पैदा होती है कि किसी भी इंसान को जीने के लिए कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है. दूसरी तरफ ये भी एहसास करा रहा है कि किसी भी इंसान में संघर्ष करने की कितनी क्षमता होती है. जिस तरह की कठिनाइयों से इंसान लड़ रहा है, जूझ रहा है, सामान्य दिनों में इसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते हैं. इसके बावजूद आज इंसान न सिर्फ जीने के लिए संघर्ष कर रहा है, बल्कि उससे एक कदम आगे जाकर जीने के नये अवसर भी तलाश कर रहा है. नये इनोवेशन कर रहा है.

आज के हालात पर मानव के जीने के संघर्ष को देख कर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की पंक्तियां बरबस याद आ जाती हैं.

‘मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी हो जाता है…’

मेरा मानना है कि इंसान की सबसे बड़ी ताकत उसका खुद के ऊपर विश्वास है. शारीरिक ताकत से पहले इंसान की मानसिक मजबूती उसे किसी भी हालत में अपने लिए रास्ता तलाश करने का जज्बा देती है. प्रधानमंत्री नरेंद मोदी ने लॉकडाउन चार के पहले राष्ट्र के नाम संदेश में भी यही बात कही कि थकना, हारना, टूटना- बिखरना मानव को मंजूर नहीं है. जब इंसानी जज्बे, साहस, श्रम और जुनून की कोई सीमा नहीं है, तो निश्चित मानिए कि फिर से मुस्कुराएगी जिंदगी.

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