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स्वास्थ्य क्षेत्र में सिर्फ घोषणाएं नहीं क्रियान्वयन है जरूरी

<p><strong>।। डॉ नरेश त्रेहन ।।</strong></p> <p><strong>(देश के जाने-माने हृदयरोग विशेषज्ञ)</strong></p> <p>वर्ष 2014-15 के बजट में &lsquo;सबके लिए स्वास्थ्य&rsquo; को सुनिश्चित करने के लिए दवाओं के वितरण और स्वास्थ्य सेवाओं को सर्वसुलभ बनाने की बात कही गयी है. वित्त मंत्री ने स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने के लिए चार नये एम्स की घोषणा भी की है. बजट […]

<p><strong>।। डॉ नरेश त्रेहन ।।</strong></p> <p><strong>(देश के जाने-माने हृदयरोग विशेषज्ञ)</strong></p> <p>वर्ष 2014-15 के बजट में &lsquo;सबके लिए स्वास्थ्य&rsquo; को सुनिश्चित करने के लिए दवाओं के वितरण और स्वास्थ्य सेवाओं को सर्वसुलभ बनाने की बात कही गयी है. वित्त मंत्री ने स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने के लिए चार नये एम्स की घोषणा भी की है. बजट प्रावधानों के स्वास्थ्य क्षेत्र पर पड़ने वाले इम्पैक्ट और जमीनी हकीकत पर नजर डाल रहे हैं जाने-माने विशेषज्ञ.</p> <p>वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बजट में स्वास्थ्य को लेकर देश के पांच हिस्सों में एक-एक एम्स स्थापित करने की घोषणा की है, यह बहुत अच्छी घोषणा है. वैसे तो हर सरकार अपनी जनता के लिए अपने बजट में योजनाओं को पेश करती है, लेकिन सवाल तब खड़ा होता है, जब उन योजनाओं का क्रियान्वयन ठीक ढंग से नहीं होता है. वित्त मंत्री के बयान के मुताबिक देश के हर एक राज्य में एक एम्स होना चाहिए. यह बहुत अच्छी बात है. इससे लोगों को इलाज कराने के लिए कहीं दूर का सफर नहीं करना पड़ेगा.&nbsp;</p> <p>साथ ही कई ऐसी परेशानियों से निजात मिल जायेगी, जो इलाज कराने के दौरान बीमारी से कहीं ज्यादा बड़ी होती है. इससे स्थानीय सरकारी अस्पतालों पर भी कम भार पड़ेगा और वहां के डॉक्टर ठीक ढंग से लोगों को ज्यादा से ज्यादा समय देकर इलाज कर पायेंगे.</p> <p>कुछ लोगों का मानना है कि एम्स की संख्या बढ़ने से उसकी महत्ता कम हो जायेगी. &nbsp;मैं ऐसा बिल्कुल नहीं मानता, क्योंकि यह मामला पूरी तरह से मॉनीटरिंग, ट्रांसपेरेंसी और एकाउंटेबिलिटी यानी (प्रबंधन, पारदर्शिता और जवाबदेही) का है. इस देश के हर जिले में भी अगर एम्स जैसे अस्पतालों की स्थापना कर दी जाये, लेकिन उसमें उपयरुक्त तीनों को लागू नहीं किया जाये, तो इस बात का कोई अर्थ नहीं कि एम्स की महत्ता क्या है. इसलिए अगर हर राज्य में एम्स की स्थापना हो जाती है, तो उसकी महत्ता को राष्ट्रीय स्तर पर कायम रखने के लिए हमें उचित प्रबंधन, पारदर्शिता और जवाबदेही की जरूरत होगी. जाहिर है, इन चीजों की कमी के कारण ही देश की तमाम छोटी-बड़ी संस्थाएं अपना महत्व खोती जा रही हैं. इसलिए हमें एम्स बनाने के साथ-साथ इन तीन तत्वों को भी मजबूती से लागू करने की व्यवस्था करनी होगी.</p> <p>एम्स की घोषणा के बाद सबसे अहम बात यह होती है कि फिलहाल इसे बनने में कम से कम 4-5 साल लग जायेंगे. इस बीच ऐसी कौन सी व्यवस्था की जाये, जिससे मरीजों को थोड़ी सहूलियत मिलनी शुरू हो जाये. अगर हम सिर्फ घोषणा करके छोड़ देते हैं, तो इससे कुछ भी फायदा नहीं होने वाला है. योजना की घोषणा का अर्थ है कि घोषणा के दिन से ही उसके लाभ की भी व्यवस्था कर दी जाये. चूंकि भारत एक बड़ी जनसंख्या वाला देश है, इसलिए योजनाओं-घोषणाओं को लेकर लोगों की उम्मीदें भी बड़ी होती हैं. इन उम्मीदों पर सरकार को खरा उतरने के लिए ट्रांसपेरेंसी यानी पारदर्शिता और जवाबदेही की उत्तम व्यवस्था करनी चाहिए, ताकि समाज के सबसे निचले तबके को भी योजनाओं का लाभ आसानी से मिल सके.</p> <p>अभी भी हमारे देश में ज्यादातर योजनाओं के क्रियान्वयन को लेकर कई तरह की खामियां हैं. यही कारण है कि कई योजनाओं पर समय-समय पर सवाल उठाये जाते रहे हैं. इसलिए मेरा मानना है कि कोई योजना छोटी हो या बड़ी, वह जिसके लिए बनी है, हर हाल में उसका लाभ उसको मिलना ही चाहिए. अगर ऐसा नहीं होता है तो किसी घोषणा का कोई अर्थ नहीं है. यह हमारी असफलता है, सरकार को इससे निपटने की व्यवस्था करनी चाहिए.</p> <p>राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत देशभर में अनेक छोटी-बड़ी स्वास्थ्य योजनाएं अरसे से चल रही हैं. इन योजनाओं को लेकर मौजूदा वित्त मंत्री ने 21,912 करोड़ की व्यवस्था की है. इसके पहले के सरकारों ने भी इस मिशन के मद्देनजर ढेर सारी धनराशि का आवंटन किया था. लेकिन आप पिछला रिकॉर्ड देखें, तो इन योजनाओं में ढेरों खामियां मिल जायेंगी. इतनी योजनाओं के बाद भी स्वास्थ की दृष्टि से भारत पिछड़ा हुआ है.&nbsp;</p> <p>सही इलाज के लिए लोग परेशान रहते हैं. योजनाओं की भरमार होने से ज्यादातर के बारे में तो लोगों को कुछ पता ही नहीं होता. इसलिए मेरा मानना है कि छोटी-छोटी योजनाओं को एक साथ जोड़ कर 3-4 बड़ी योजनाओं को ही अगर ईमानदारी के साथ क्रियान्वित किया जाये, तो इससे समाज के हर वर्ग को फायदा होगा. इसलिए मौजूदा सरकार को योजनाओं की घोषणाओं पर नहीं, बल्कि ईमानदारी से क्रियान्वयन पर ध्यान देना चाहिए.</p> <p>(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)</p> <p>स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण के लिए बजट प्रावधान</p> <p>- योजना परिव्यय : वर्ष 2014-15 के लिए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग का योजना परिव्यय 30645 करोड़ रुपये है. (सीएसएस 24490.88 करोड़ रुपये और सीएस-6154.12 करोड़ रुपये), जिसमें पूर्वोत्तर क्षेत्र और सिक्किम में योजनाओं/ परियोजनाओं के लाभ के लिए 3064.50 करोड़ रुपये शामिल है.</p> <p>- पीएमएसएसवाइ : प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (पीएमएसएसवाइ) स्कीम का उद्देश्य नये अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान जैसे संस्थानों की स्थापना और मौजूदा सरकारी चिकित्सा कॉलेज संस्थानों के उन्नयन की परिकल्पना है. वर्ष 2014-15 के दौरान इस योजना के लिए 1956.00 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है.</p> <p>मानव संसाधनों की अतिरिक्त आवश्यकताओं और चिकित्सा शिक्षा को जोड़ा गया है और इस योजना हेतु 2578.88 करोड़ रुपये का परिव्यय रखा गया है.</p> <p>- अन्य योजनाएं : कुछ अन्य कतिपय योजनाएं, जैसे- निरीक्षण समिति, बुजुर्ग व्यक्तियों की स्वास्थ्य देखभाल और एनसीडीसी की मौजूदा शाखाओं का सुदृढ़ीकरण और 27 शाखाओं की स्थापना, जेनेटिक रोगों की रोकथाम और नियंत्रण के अंतरक्षेत्रीय समन्वयन का सुदृढ़ीकरण, स्वास्थ्य बीमा, वायरल हेपेटाइटिस आदि भी योजना व्यय का हिस्सा है.</p> <p>- राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन : अप्रैल, 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की शुरुआत के साथ ही यह सभी को किफायती और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल, जो लोगों की जरूरतों के प्रति जवाबदेह तथा अनुकूल हो उसे मुहैया कराने की दिशा में प्रयासरत है. बाल और मातृत्व मृत्युदर में कमी लाने और जनसंख्या में स्थिरता लाने के लिए महत्ववूर्ण कार्यक्रम शुरू किये गये हैं, टीकाकरण की प्रक्रिया में तेजी लायी गयी है. मानव संसाधन विकास तथा डॉक्टरों, नर्सो और पैरामेडिकल स्टाफ का प्रशिक्षण पूरे जोरों से शुरू किया गया है.&nbsp;</p> <p>सभी राज्यों ने मिशन को कार्यान्वित किया है और सभी स्तरों पर समर्थन से स्वास्थ्य प्रणाली में नयी जान फूंकी जा रही है. प्रत्येक गांव में मान्यताप्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) की नियुक्ति करके बुनियादी स्वास्थ्य परिचर्या समेत स्वास्थ्य शिक्षा और संवर्धन को बढ़ावा देकर कमजोर तबकों को और निकट लाया गया है.</p> <p>- स्वास्थ्य अनुसंधान : स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग का आयोजन व्यय 726 करोड़ रुपये है.</p> <p>- एड्स नियंत्रण विभाग : एड्स नियंत्रण विभाग सौ फीसदी केंद्रीय प्रायोजित कार्यक्रम है. इसे राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम कार्यान्वित कर रहा है, जो एक पंचवर्षीय योजना है और राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम का चौथा चरण पूरा कर लिया गया है. इसका लक्ष्य 12वीं पंचवर्षीय योजना में रोकथाम, देखभाल, सहायता और उपचार के कार्यक्रमों को एकीकृत करके देश में एचआइवी महामारी को रोकना और इसे जड़ से उखाड़ फेंकना है. वर्ष 2014-15 के लिए इस मद में 1785 करोड़ रुपये मंजूर किये गये हैं.</p> <p>- आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होमियोपैथी (आयुष) : आयुष का उद्देश्य संगठित व वैज्ञानिक तरीके से भारतीय दवा प्रणालियों का विकास व संवर्धन करना है. इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए विभाग में अनेक केंद्र प्रायोजित योजना और केंद्रीय क्षेत्र की स्कीमें कार्यान्वित की गयी हैं. राष्ट्रीय स्वास्थ्य देखभाल प्रदाय में आयुष प्रणालियों को शामिल करके इन्हें राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) का हिस्सा बनाने पर जोर दिया जा रहा है. वर्ष 2014-15 के लिए इस संदर्भ में 1069 करोड़ रुपयों का प्रावधान किया गया है.</p> <p>त्नमहिला और बाल विकास : इसका आयोजना व्यय 2014-15 के लिए 11000 करोड़ रुपये है. मंत्रालय की फ्लैगशिप योजना &lsquo;समेकित बाल विकास सेवा योजना&rsquo; (आइसीडीएस) के लिए चालू वर्ष में 18195 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है. इस स्कीम में छह वर्ष तक के बच्चों, गर्भवती महिलाओं व इलाजरत माताओं के स्वास्थ्य, पोषाहार व शैक्षिक सेवाओं के एकीकृत पैकेज का इंतजाम करने की कोशिश की जाती है. इस पैकेज में पूरक पोषाहार, टीकाकरण, स्वास्थ्य परीक्षण, रेफरल सेवाएं, पोषाहार व स्वास्थ्य शिक्षा तथा अनौपचारिक विद्यालय पूर्व &nbsp;शिक्षा शामिल है. स्कीम को व्यापक बनाने के लिए सरकार ने 20,000 आंगनबाड़ी कें द्रों को मंजूरी दी है. आइसीडीएस स्कीम को अब राष्ट्रीय पोषाहार मिशन और विश्व बैंक की सहायता से चल रही आइसीडीएस प्रणाली सुदृढ़ीकरण और पोषाहार सुधार परियोजना में मिला दिया गया है. वर्ष 2014-15 के दौरान इसका कुल आवंटन 18691.00 करोड़ रुपये है.</p> <p>- आइजीएमएसवाइ : यह एक सशर्त मातृत्व लाभ योजना है जो विद्यमान आइसीडीएस कार्यक्रम की रूपरेखा का प्रयोग करते हुए देश के चुनिंदा 53 जिलों में प्रायोगिक उपाय है. वर्ष 2014-15 के लिए आइजीएमएसवाइ के लिए 400 करोड़ रुपये का आवंटन है.</p> <p>- बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ : नियमित बजट 2014-15 में एक नयी स्कीम &lsquo;बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान&rsquo; शुरू की गयी है, जो बाल विकास के अंतर्गत एक केंद्रीय क्षेत्रीय स्कीम है. वर्ष 2014-15 के दौरान इस स्कीम के लिए 100 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है.</p> <p>- एक और नयी स्कीम : महिलाओं के संरक्षण और विकास के लिए इंदिरा गांधी मातृत्व सहयोग योजना को एक नयी स्कीम राष्ट्रीय महिला सशक्तीकरण मिशन में विलय किया गया है. वर्ष 2014-15 के लिए राष्ट्रीय महिला सशक्तीकरण मिशन के मद में आवंटन 90 करोड़ रुपये है.</p> <p>त्ननिर्मल भारत अभियान (एनबीए) : निर्मल भारत अभियान में संपूर्ण ग्रामीण भारत के 30 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 607 जिले शामिल हैं, जिनके लिए 2014-15 हेतु 4260 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है.</p> <p>बड़ी चुनौतियां</p> <p>देश पर बढ़ रहा है बीमारियों का बोझ</p> <p>अपने देश में कॉर्डियोवास्कुलर बीमारी से 19 प्रतिशत, रेस्पायरेटरी से नौ प्रतिशत, डायरियल बीमारी से आठ प्रतिशत, नवजात अवस्था में 6.3 प्रतिशत, सांस संबंधी बीमारियों (जैसे- निमोनिया आदि) से 6.2 प्रतिशत, टय़ूबरकुलोसिस से छह प्रतिशत, असाध्य रोगों से 5.7 प्रतिशत लोग असमय काल का ग्रास बन जाते हैं.</p> <p>- सबसे ज्यादा टीबी मरीज : दुनियाभर में सबसे ज्यादा टय़ूबरकुलोसिस (टीबी) के मरीज भारत में पाये जाते हैं. दुनिया में सालभर में औसतन 92 लाख टीबी के मामले सामने आते हैं, जिनमें लगभग 19 लाख मामले भारत से जुड़े होते हैं. यानी वैश्विक स्तर पर टीबी के पांच में से एक मामला भारत से जुड़ा होता है.</p> <p>- सबसे ज्यादा दृष्टिहीन : भारत में दृष्टिहीन व्यक्तियों की संख्या दुनिया के किसी अन्य देश की तुलना में कहीं ज्यादा है.</p> <p>- जान ले रहा कैंसर : खतरनाक बीमारी कैंसर की बात करें, तो तकरीबन 20 से 25 लाख भारतीय इससे जूझ रहे हैं. दुखद यह है कि प्रतिवर्ष देश में कैंसर के सात लाख मामले सामने आते हैं.</p> <p>- महिलाओं में खून की कमी : तीसरे राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के मुताबिक, भारत में लगभग 56 फीसदी महिलाएं किसी न किसी प्रकार से एनीमिया की चपेट में हैं और लगभग एक तिहाई पर कुपोषण का खतरा देखा गया है.</p> <p>- एचआइवी संक्रमण का बढ़ता खतरा : विशेषज्ञों के अनुमान के मुताबिक, भारत में 2.5 फीसदी लोग एचआइवी से संक्रमित हैं. दुनिया के 33 मिलियन मामलों में यह लगभग 7.6 फीसदी है.</p> <p>- मलेरिया और हेपेटाइटिस जैसी बीमारियां : प्रतिवर्ष 1.5 मिलियन भारतीय भयावह मलेरिया बीमारी की चपेट में आते हैं. एक मोटे अनुमान के मुताबिक 35 मिलियन लोग वायरल हेपाटाइटिस बी से प्रभावित हैं.</p> <p>और 27 हजार स्वास्थ्य केंद्रों की दरकार</p> <p>वर्ष, 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की आबादी 121 करोड़ को पार कर चुकी थी, जिसमें 83.3 करोड़ (68.84 प्रतिशत) आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है. जनसंख्या मानकों के आधार पर मैदानी इलाकों में प्रत्येक 30,000 नागरिकों पर एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (आदिवासी व पर्वतीय क्षेत्रों में 20,000 पर एक के मानकों के इतर) मानते हुए भारत में 27,700 से अधिक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की जरूरत है. यदि रूरल हेल्थ सर्वे, 2011 से इसकी तुलना करें, तो देश में 3,800 और अधिक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की जरूरत है. स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने और संरचनात्मक सुधार के लिए यह बेहद जरूरी है.</p> <p>सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों की कमी</p> <p>डॉक्टर &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; कमी</p> <p>सजर्न &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp;75 प्रतिशत</p> <p>ऑब्स्टेट्रिशियन और</p> <p>गाइनोकोलॉजिस्ट &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; 65.9 प्रतिशत</p> <p>फिजीशियन &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp;80.1 प्रतिशत</p> <p>पीडियाट्रिशियन &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp;74.4 प्रतिशत</p> <p>कुल स्पेशियलिस्ट &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp;63.9 प्रतिशत</p> <p>प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में स्टाफ की भारी कमी</p> <p>पद &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; कमी</p> <p>नर्स मिडवाइफ &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp;3.8 प्रतिशत</p> <p>एलोपैथिक डॉक्टर &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp;12.0 प्रतिशत</p> <p>स्वास्थ्य कर्मी (पुरुष) &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp;64.7 प्रतिशत</p> <p>स्वास्थ्य सहायक (महिला)/</p> <p>लेडी हेल्थ विजिटर &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp;38 प्रतिशत</p> <p>स्वास्थ्य सहायक (पुरुष) &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; 43.3 प्रतिशत</p> <p>(डॉक्टरों की उपलब्धता के आंकड़े मार्च, 2011 तक के हैं. स्नेत : इंटरनेशनल जर्नल ऑफ हेल्थ सिस्टम एंड डिजास्टर मैनेजमेंट)</p> <div>&nbsp;</div>

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