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मंगलवार को Hanuman Ji को ऐसे करें प्रसन्न, जानें पूजा विधि, मंत्र, चालीसा व शुभ मुहूर्त समेत अन्य जानकारियां

Hanuman Ji Pooja, Tuesday Puja Vidhi, Shubh Muhurat, Mantra, Chalisa : हिंदू धर्म में हर दिन किसी ना किसी भगवान को समर्पित होता है. कुछ इसी तरह मंगलवार का दिन भी भगवान श्री हनुमान को समर्पित है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन हनुमान जी की श्रद्धा भाव से पूजा-पाठ करने और व्रत रखने से शत्रुओं का नाश, भय से मुक्ति, साहस, आत्मविश्वास और सुख शांति मिलती है. आइए जानते हैं, मंगलवार को ही क्यों की जाती है हनुमान जी की पूजा? जानें इस दिन व्रत करने के फायदे, पूजा विधि, मंत्र चालीसा व अन्य..

Hanuman Ji Pooja, Tuesday Puja Vidhi, Shubh Muhurat, Mantra, Chalisa : हिंदू धर्म में हर दिन किसी ना किसी भगवान को समर्पित होता है. कुछ इसी तरह मंगलवार का दिन भी भगवान श्री हनुमान को समर्पित है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन हनुमान जी की श्रद्धा भाव से पूजा-पाठ करने और व्रत रखने से शत्रुओं का नाश, भय से मुक्ति, साहस, आत्मविश्वास और सुख शांति मिलती है. आइए जानते हैं, मंगलवार को ही क्यों की जाती है हनुमान जी की पूजा? जानें इस दिन व्रत करने के फायदे, पूजा विधि, मंत्र चालीसा व अन्य..

धार्मिक मामलों के जानकार, डॉ. श्रीपति त्रिपाठी, ज्योतिर्विद का कहना है कि मान्यताओं के अनुसार मंगलवार को व्रत करने वालों जातकों की कुंडली में मंगल ग्रह उच्च स्थान पर पहुंचता है. कई लोगों की कुंडली में मंगल ग्रह निर्बल होता है. ऐसे में इससे होने वाले कष्टों का नाश होता है. इस दिन श्रद्धा भाव से पूजा-पाठ और व्रत करने वालों पर राम भक्त हनुमान प्रसन्न होते हैं. भगवान हनुमान जी की पूजा करने से भूत-प्रेत व काली शक्तियों का नाश होता है और व्यक्ति साहस, आत्मबल से समृद्ध होता है. घर में सुख शांति आती है. पंडित त्रिपाठी जी की मानें तो हनुमान जी आसानी से प्रसन्न होने वाले देवता है.

क्यों मंगलवार को ही की जाती है हनुमान जी की पूजा?

सदियों पूर्व एक ब्राह्मण दंपती नि:संतान होने के कारण काफी दुखी रहते थे. ऐसे में ब्राह्मण वन में जाकर हनुमान जी की तपस्या में लीन रहता था. इधर, पत्नी भी प्रत्येक मंगलवार को व्रत रखती और हनुमान जी को भोग लगाने के बाद ही भोजन करती. एक मंगलवार ब्राह्मण की पत्नी व्रत के दौरान हनुमान जी को भोग नहीं चढ़ा पाई. उस दिन घर में भोजन भी नहीं बना पाया. जिसके बाद उसने प्रण लिया कि अगले मंगलवार को भोग लगाने के बाद ही भोजन करूंगी. इसलिए वह 6 दिन तक भूखी-प्यासी रह गयी.

अगले सप्ताह मंगलवार के दिन व्रत के दौरान ही कमजोरी से बेहोश हो गई. उसकी इस निष्ठा को देखकर श्री हनुमान काफी प्रसन्न हुए और संतान सुख का वरदान दे दिए. संतान का नाम ब्राह्मणी ने मंगल रख दिया. कुछ वर्षों बाद जब ब्राह्मण वन से तपस्या करके घर पहुंचा तो वह बच्चे को देख आश्चर्यचकित हो गया. पूछने पर पत्नी ने सारी घटना को विस्तार से बताया. लेकिन ब्राह्मण को इस पर विश्वास नहीं हुआ. एक दिन ब्राह्मणी के अनुपस्थिति में ब्राह्मण ने मौका देखकर बच्चे को कुएं में फेंक दिया.

जब ब्राह्मणी वापस घर लौटी तो बच्चे को खोजने लगी. ऐसे में मां-मां चिल्लाता मंगल (बच्चा) वापस आ गया. यह देखकर ऋषि अचंभित हो गया है. इस घटना के बाद रात में हनुमान जी ने ब्राह्मण को सपने में आकर बताया कि वह संतान तुम्हारी ही है. जिसके बाद ब्राह्मण की आंखे खुल गई और वह उसे अपना लिया. इस घटना के बाद से ही दम्पती प्रत्येक मंगलवार को नियमित रूप से पूजा-पाठ और व्रत रखने लगे और मंगल को हनुमान जी की पूजा की परंपरा भी इसी की बाद से शुरू हो गयी.

पूजा विधि (Hanuman Pooja)

  1. प्रत्येक मंगलवार को सुबह उठकर नहा-धो कर हनुमान जी की पूजा करें.

  2. पूजा करते समय इस मंत्र का जाप करें: ‘ॐ श्री हनुमंते नम:’.

  3. हनुमान जी को सिंदूर और लाल वस्त्र व जनेऊ, लाल फूल चढ़ाएं.

  4. उन्हें लड्डू का भोग लगाएं

  5. इसके अलावा पान का बीड़ा चढ़ाएं, इमरती, चूरमा, गुड़, चने, केले, पंच मेवा का भोग भी लगाएं.

  6. संभव हो तो रामचरितमानस के सुंदर कांड और हनुमान चालीसा का पाठ करें.

  7. अंत में हनुमान जी की आरती पढ़ें.

हनुमान जी की आरती (Hanuman Ji Ki Aarti)

आरती कीजै हनुमान लला की. दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥

जाके बल से गिरिवर कांपे. रोग दोष जाके निकट न झांके॥

अंजनिपुत्र महा बलदायी, संतन के प्रभु सदा सहाई॥

दे बीरा रघुनाथ पठाये, लंका जारि सिया सुधि लाये॥

लंका-सो कोट समुद्र-सी खाई, जात पवनसुत बार न लाई॥

लंका जारि असुर संहारे, सियारामजी के काज संवारे॥

लक्ष्मण मूर्छित परे सकारे, आनि संजीवन प्रान उबारे॥

पैठि पताल तोरि जम-कारे, अहिरावन की भुजा उखारे॥

बाएं भुजा असुरदल मारे, दहिने भुजा सन्तजन तारे॥

सुर नर मुनि आरती उतारे, जय जय जय हनुमान उचारे॥

कंचन थार कपूर लौ छाई, आरति करत अंजना माई॥

जो हनुमानजी की आरति गावै, बसि बैकुण्ठ परम पद पावै॥

आज का पंचांग

अधिक आश्विन शुक्लपक्ष त्रयोदशी रात -10:31 उपरांत चतुर्दशी

श्री शुभ संवत -2077, शाके -1942, हिजरीसन -1442-43

सूर्योदय -06:04

सूर्यास्त -05:56

सूर्योदय कालीन नक्षत्र -शतभिषा उपरांत पूर्वाभाद्रपद, शूल -योग, कौ -करण

सूर्योदय कालीन ग्रह विचार -सूर्य -कन्या, चन्द्रमा -कुम्भ, मंगल -मीन, बुध -तुला, गुरु -धनु, शुक्र -सिंह, शनि -धनु, राहु -वृष, केतु -वृश्चिक

आज का शुभ मुहूर्त

सुबह 06.01 से 7.30 बजे तक रोग

सुबह 07.31 से 9.00 बजे तक उद्वेग

सुबह 09.01 से 10.30 बजे तक चर

सुबह 10.31 से 12.00 बजे तक लाभ

दोपहर 12.01 से 1.30 बजे तकअमृत

दोपहर 01.31 से 03.00 बजे तक काल

दोपहर 03.01 से 04.30 बजे तक शुभ

शाम 04.31 से 06.00 बजे तक रोग

उपाय-बड़े बुजुर्गों, ब्रह्मणों, गुरूओं का आशीर्वाद लें

आराधनाः भगवान शिव और हनुमान जी की आराधना करें।

राहुकाल 3 से 4:30 बजे तक।

दिशाशूल-वायब्य एवं उत्तर

हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa)
दोहा

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि .

बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार

बल बुधि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार

चौपाई

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर

जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥१॥

राम दूत अतुलित बल धामा

अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥२॥

महाबीर बिक्रम बजरंगी

कुमति निवार सुमति के संगी॥३॥

कंचन बरन बिराज सुबेसा

कानन कुंडल कुँचित केसा॥४॥

हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे

काँधे मूँज जनेऊ साजे॥५॥

शंकर सुवन केसरी नंदन

तेज प्रताप महा जगवंदन॥६॥

विद्यावान गुनी अति चातुर

राम काज करिबे को आतुर॥७॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया

राम लखन सीता मनबसिया॥८॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा

विकट रूप धरि लंक जरावा॥९॥

भीम रूप धरि असुर सँहारे

रामचंद्र के काज सवाँरे॥१०॥

लाय सजीवन लखन जियाए

श्री रघुबीर हरषि उर लाए॥११॥

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई

तुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई॥१२॥

सहस बदन तुम्हरो जस गावै

अस कहि श्रीपति कंठ लगावै॥१३॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा

नारद सारद सहित अहीसा॥१४॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते

कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥१५॥

तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा

राम मिलाय राज पद दीन्हा॥१६॥

तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना

लंकेश्वर भये सब जग जाना॥१७॥

जुग सहस्त्र जोजन पर भानू

लिल्यो ताहि मधुर फ़ल जानू॥१८॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही

जलधि लाँघि गए अचरज नाही॥१९॥

दुर्गम काज जगत के जेते

सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥२०॥

राम दुआरे तुम रखवारे

होत ना आज्ञा बिनु पैसारे॥२१॥

सब सुख लहैं तुम्हारी सरना

तुम रक्षक काहु को डरना॥२२॥

आपन तेज सम्हारो आपै

तीनों लोक हाँक तै कापै॥२३॥

भूत पिशाच निकट नहि आवै

महावीर जब नाम सुनावै॥२४॥

नासै रोग हरे सब पीरा

जपत निरंतर हनुमत बीरा॥२५॥

संकट तै हनुमान छुडावै

मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥२६॥

सब पर राम तपस्वी राजा

तिनके काज सकल तुम साजा॥२७॥

और मनोरथ जो कोई लावै

सोई अमित जीवन फल पावै॥२८॥

चारों जुग परताप तुम्हारा

है परसिद्ध जगत उजियारा॥२९॥

साधु संत के तुम रखवारे

असुर निकंदन राम दुलारे॥३०॥

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता

अस बर दीन जानकी माता॥३१॥

राम रसायन तुम्हरे पासा

सदा रहो रघुपति के दासा॥३२॥

तुम्हरे भजन राम को पावै

जनम जनम के दुख बिसरावै॥३३॥

अंतकाल रघुवरपुर जाई

जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥३४॥

और देवता चित्त ना धरई

हनुमत सेई सर्व सुख करई॥३५॥

संकट कटै मिटै सब पीरा

जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥३६॥

जै जै जै हनुमान गुसाईँ

कृपा करहु गुरु देव की नाई॥३७॥

जो सत बार पाठ कर कोई

छूटहि बंदि महा सुख होई॥३८॥

जो यह पढ़े हनुमान चालीसा

होय सिद्ध साखी गौरीसा॥३९॥

तुलसीदास सदा हरि चेरा

कीजै नाथ हृदय मह डेरा॥४०॥

दोहा

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप.

राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥

Posted By : Sumit Kumar Verma

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