झारखंड के देवघर में स्थित बाबाधाम द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक है. इसे मनोकामना लिंग भी कहा जाता है. कहते हैं कि इस मंदिर में आकर भक्त जो भी मांगता है, भगवान भोलेनाथ उसकी मुराद जरूर पूरी करते हैं. कई मायने में यह मंदिर अन्य ज्योतिर्लिंगों में खास है. यह एकमात्र ज्योतिर्लिंग है, जहां शिव के संग शक्ति भी विराजमान हैं. यानी शिव और पार्वती दोनों का मंदिर बाबाधाम में है. इसलिए बाबाधाम को शक्तिपीठ भी कहते हैं. पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि सती ने जब अग्नकुंड में अपनी आहुति दी थी, तब भगवान भोलेशंकर अति क्रोधित हो गये थे. सती के शव के साथ तांडव करना शुरू कर दिया. भोलेनाथ के क्रोध को शांत करने के उद्देश्य से भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती का अंग-भंग किया था.
सती के शरीर के 12 टुकड़े जहां-जहां गिरे, उन सभी जगहों पर ज्योतिर्लिंगों की स्थापना हुई. देवघर के बाबाधाम में माता सती का हृदय गिरा था. इसलिए इसे हृदय पीठ भी कहते हैं. श्रावण माह में बिहार के भागलपुर जिला में स्थित सुल्तानगंज की उत्तर वाहिनी गंगा से भक्त गंगाजल लेकर कांवर उठाते हैं और बोल बम, बोल बम करते हुए पैदल देवघर तक की 107 किलोमीटर की कांवर यात्रा करके देवघर स्थित बाबाधाम में बाबा बैद्यनाथ का जलाभिषेक करते हैं. इस दौरान भक्त सात्विक भोजन करते हैं. बाबा की भक्ति में दिन-रात बिताते हैं. देवघर में हर साल एक महीने का श्रावणी मेला लगता है, जिसमें देश के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु बाबा का जलाभिषेक करने आते हैं. अधिकमास या मलमास होने पर श्रावणी मेला दो महीने का हो जाता है.
झारखंड में बाबाधाम की तरह दुमका जिला में स्थित बासुकीनाथ मंदिर भी प्रसिद्ध है. कहा जाता है कि बाबाधाम दीवानी न्यायालय है और बासुकीनाथ हाईकोर्ट. अगर बाबाधाम में आपकी मनोकामना पूरी नहीं होती, तो बासुकीनाथ में अर्जी लगानी पड़ती है. इसलिए कांवर लेकर देवघर आने वाले श्रद्धालु बासुकीनाथ की भी यात्रा जरूर करते हैं. वहां बाबा बासुकीनाथ और मां पार्वती को जलार्पण करने के बाद ही कांवर यात्रा पूरी मानी जाती है. बाबाधाम की तरह बासुकीनाथ धाम में भी आमतौर पर श्रावण के महीने में एक माह के लिए मेला लगता है. अधिकमास, जिसे मलमास भी कहते हैं, पड़ जाये, तो दो महीने तक मेला लगता है.