हाइकोर्ट ने सोनाली खातून सहित छह लोगों को बांग्लादेश से वापस लाने का दिया है निर्देश
संवाददाता, कोलकाताकेंद्र सरकार ने बांग्लादेश भेजे गये छह लोगों को भारत वापस लाने के कलकत्ता हाइकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. हाइकोर्ट ने 26 सितंबर को आदेश दिया था कि जिन छह लोगों को अवैध अप्रवासी बताकर बांग्लादेश भेजा गया, जिसमें गर्भवती महिला सोनाली खातून भी शामिल है, उन्हें चार हफ्तों के भीतर भारत वापस लाया जाये. गौरतलब है कि छह लोगों का यह परिवार पश्चिम बंगाल के बीरभूम का रहने वाला है और इन्हें दिल्ली में पकड़ा गया था. खबरें आ रही थीं कि यह परिवार हाइकोर्ट से भारत वापस आने की गुहार लगाने की योजना बना रहा है. जिसके बाद केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. इस परिवार में सोनाली खातून, उनके पति दानिश शेख, उनके आठ साल के बेटे साबिर, स्वीटी बीबी और उनके दो नाबालिग बेटों को वापस लाने की चार हफ्ते की अवधि 24 अक्तूबर को समाप्त हो गयी है.सोनाली के पिता भोडू शेख ने अगस्त में हाइकोर्ट में एक हैबियस कॉर्पस याचिका दायर की थी. जिसमें बताया गया था कि सोनाली आठ महीने की गर्भवती थी. इस परिवार के वकील ने कहा कि हर किसी को किसी आदेश को चुनौती देने के लिए उच्च मंच पर जाने का अधिकार है. उन्होंने आगे कहा कि इस मामले में एक गर्भवती महिला और स्वीटी के दो बेटे शामिल हैं और इस मामले की गंभीरता को देखते हुए ऐसी उम्मीद थी कि इस केस को जल्द से जल्द सुलझा लिया जायेगा.
26 जून को डिपोर्ट करने का जारी हुआ था आदेश
सोनाली, दानिश और स्वीटी दिल्ली के रोहिणी में कूड़ा बीनने का काम करते थे. उन्हें 21 जून को बांग्लादेशी होने के शक में दिल्ली से पकड़ा गया था. उन्हें फॉरेनर्श रिजनल रजिस्ट्रेशन ऑफिस ने रोहिणी के एक सामुदायिक केंद्र में रखने का आदेश दिया था. 26 जून को इस परिवार को डिपोर्ट करने का आदेश जारी किया गया और उसी दिन उन्हें बांग्लादेश भेज दिया गया. जिसके बाद 21 अगस्त को बांग्लादेश में उन्हें देश में अवैध रूप से प्रवेश करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया और तब से वे वहां जेल में हैं.कोर्ट ने फॉरेनर्स रीजनल रजिस्ट्रेशन ऑफिस के आदेश को किया है रद्द
कलकत्ता हाइकोर्ट ने 26 सितंबर को फॉरेनर्स रिजनल रजिस्ट्रेशन ऑफिस के आदेश को रद्द कर दिया था. कोर्ट ने छह लोगों को चार हफ्तों के भीतर वापस लाने का आदेश दिया था. कोर्ट ने इस तर्क की आलोचना की थी कि फॉरेनर्स एक्ट 1946 के तहत सबूत पेश करने का बोझ हिरासत में लिये गये लोगों पर है. हाइकोर्ट ने कहा कि कानून कार्यपालिका को किसी व्यक्ति को बेतरतीब ढंग से उठाने, उसके दरवाजे पर दस्तक देने और यह कहने का अधिकार नहीं देता है कि वह एक विदेशी है. हाइकोर्ट ने यह भी कहा कि सोनाली के पिता बीरभूम के स्थायी निवासी थे और ये लोग जन्म से ही वहां लंबे समय से रह रहे थे.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

