कोलकाता. करीब 1500 वर्ष पुराना स्वर्ण अक्षरों में लिखा जानेवाली तिब्बती हस्तलिपि या पांडुलिपि किसी संग्रहालय की गरिमा को बढ़ा सकता था, लेकिन ऐसा नहीं है. ऐसा कीमती एंटीक पिछले आठ वर्षों से कलिंपोंग अदालत के मालखाना में पड़ा उपेक्षित हो रहा है. सूत्रों के अनुसार सीबीआइ ने एक तस्कर के कब्जे से उक्त अनमोल […]
कोलकाता. करीब 1500 वर्ष पुराना स्वर्ण अक्षरों में लिखा जानेवाली तिब्बती हस्तलिपि या पांडुलिपि किसी संग्रहालय की गरिमा को बढ़ा सकता था, लेकिन ऐसा नहीं है. ऐसा कीमती एंटीक पिछले आठ वर्षों से कलिंपोंग अदालत के मालखाना में पड़ा उपेक्षित हो रहा है. सूत्रों के अनुसार सीबीआइ ने एक तस्कर के कब्जे से उक्त अनमोल ‘एंटीक’ को जब्त किया था. अदालत की ओर से निर्देश दिया गया था कि उसे एक प्रतिष्ठित संस्थान को सौंपे जाने की व्यवस्था की जाये. आरोप है कि इतने वर्षों बाद भी एंटीक रखने के लिए उपर्युक्त स्थान ढूंढ़ा नहीं जा सका है.
सूत्रों के अनुसार नोबेल पदक की चोरी के एक मामले की जांच के दौरान सीबीआइ को ‘गोयथोंगपा’ या ‘प्रजनापारमिता’ नामक एंटीक हस्तलिपि का पता चला था. सीबीआइ ने बिहार के भागलपुर से आरोपी एंटीक तस्कर छेदी प्रसाद और उसके सहयोगी श्रीकांत प्रसाद को गिरफ्तार किया था. हालांकि दोनों के कब्जे से नोबल पदक बरामद नहीं हुआ था. आरोपियों से पूछताछ द्वारा पता चला कि हस्तलिपि कलिंपोंग के रहने वाले सोलेन लामा के पास है. सीबीआइ अधिकारी एएन मोइत्रा, डी घोष और कलिंपोंग के पुलिस निरीक्षक एलके जायसवाल ग्राहक बनकर लामा से मिले. करीब 25 लाख रुपये देने के बदले लामा गोयथोंगपा दिखाने को राजी हुआ.
गोयथोंगपा दिखाते ही सीबीआइ ने लामा को गिरफ्तार कर लिया. सीबीआइ द्वारा कलिंपोंग अदालत मेें दायर याचिका के अनुसार वर्ष 1959 में तिब्बत मेें चीन के आक्रमण के दौरान लामा भारत आ गया था. कथित तौर पर लामा एंटीक हस्तलिपि को जापानी तस्करों को करीब 3.5 करोड़ रुपये में बेचने की कोशिश कर रहा था, लेकिन इसके पहले ही वह गिरफ्तार कर लिया गया. वर्ष 2009 में सीबीआइ ने लामा, छेदी प्रसाद और श्रीकांत प्रसाद के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया. वर्ष 2012 में अदालत ने हस्तलिपि को एक संदिग्ध एंटीक के रूप में घोषित किया. साथ अदालत ने जांच एजेंसी को ‘गोयथोंगपा’ को एक राष्ट्रीय संग्रहालय में संरक्षित करने को भी कहा था. इसी दौरान लामा की मृत्यु हो गयी. इधर छेदी और उसके सहयोगी को जमानत भी मिल गयी. एक अंग्रेजी दैनिक अखबार के अनुसार उपरोक्त मामले में सीबीआइ के अधिवक्ता रहे तापस बसु ने बताया हा कि किसी वस्तु की एंटीक मान्यता के लिए एएसआइ सर्टिफिकेट की आवश्यकता होती है.
सीबीआइ ने यह मान्यता दिल्ली एएसआइ के बदले कोलकाता एएसआइ से प्राप्त किया. इसके बाद ही अदालत ने बरामद हस्तलिपि को संदिग्ध एंटीक घोषित करते हुए उसे किसी राष्ट्रीय संग्रहालय में रखने के निर्देश दिया. आरोप के अनुसार अभी तक हस्तलिपि को संरक्षित करने के लिए सटीक कदम नहीं उठाये गये हैं. एक अंग्रेजी दैनिक अखबार के अनुसार दिल्ली में सीबीआइ के प्रवक्ता की ओर से इस बारे में कहा गया है कि उपरोक्त मामला काफी पुराना है, सारे विवरणों की जांच के बाद ही कुछ कहना संभव हो पायेगा.