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Govind Ballabh Pant: जेल में पं. नेहरू से मुलाकात, हिंदी को दिलाया सम्मान, दिलचस्प है जीबी पंत का सफरनामा

Govind Ballabh Pant Birth Anniversary: स्वतंत्रता सेनानी से राजनेता बने गोविंद बल्लभ पंत की जब जले में पंडित नेहरू पहली बार मुलाकात हुई तो वह इनसे काफी प्रभावितय हुए थे,और फिर....

Bareilly News: यूपी के पहले और देश के चौथे मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत ने राजनीति की शुरुआत बरेली से की थी. उनका इस शहर से कोई खास लगाव नहीं था. यहां आना इसलिए पड़ा क्योंकि कांग्रेस ने देश के पहले विधानसभा चुनाव-1951 में बरेली शहर सीट से चुनाव लड़ने भेज दिया था. हालांकि, शहर सीट से चुनाव लड़े भी और जीत भी दर्ज की. इसके बाद देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने गोविंद बल्लभ पंत को यूपी का पहला मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा कर दी.

यूपी के पहले और देश के चौथे मुख्यमंत्री बने गोविंद बल्लभ पंत

इस तरह वह यूपी के पहले और देश के चौथे मुख्यमंत्री बन गए. हालांकि, अब यह सीट 37 वर्ष से भाजपा के पास है. यहां से यूपी के स्वतंत्र प्रभार मंत्री डॉ.अरुण कुमार सक्सेना विधायक हैं. स्वतंत्रता सेनानी से राजनेता बने गोविंद बल्लभ पंत ने मुख्यमंत्री का पद छोड़ने के बाद 1957 में गृह मंत्री की शपथ ली.

हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिलाने में निभाई अहम भूमिका

भारतीय संविधान में हिन्दी भाषा को राजभाषा का दर्जा दिलाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान था. 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से निर्णय लिया कि हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी, लेकिन देश में जब 26 जनवरी 1950 को हमारा संविधान लागू हुआ तो इसमें देवनागरी में लिखी जाने वाली हिंदी सहित 14 भाषाओं को आठवीं सूची में आधिकारिक भाषाओं के रूप में रखा गया. छोटे मोटे विरोध के बाद 26 जनवरी 1965 को हिंदी देश की राजभाषा बन गई.

अल्मोड़ा जिले के खूंट गांव में हुआ था जन्म

उन्होंने भारत को भाषा के अनुसार विभक्त करने का कार्य किया. इसके साथ ही हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया. यूपी के पहले सीएम गोविंद बल्लभ पंत का जन्म 10 सितंबर 1887 कोअल्मोड़ा जिले के खूंट गांव के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनकी शनिवार (आज) 135वीं जयंती है. पिता की बचपन में मृत्यु हो गई. वह नाना बद्रीदत्त जोशी के साथ इलाहाबाद चले गए. यहीं पर पढ़ाई की. वह कांग्रेस के स्वयंसेवक का कार्य करते थे. उन्होंने 1907 में बीए और 1909 में कानून की डिग्री हासिल की.

असहयोग आंदोलन में लिया था हिस्सा

गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को अपना आदर्श मानते थे. वर्ष 1921 में उन्होंने असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया. इसके बाद 9 अगस्त 1925 को काकोरी कांड में क्रांतिकारियों ने सरकारी खजाना लूट लिया, इसके बाद उन्हें जेल में डाल दिया गया. उनका मुकदमा भी पंडित मदन मोहन मालवीय के साथ गोविंद बल्लभ पंत ने लड़ा था. मदन मोहन मालवीय के साथ वायसराय को पत्र लिखने में भी उनका खास समर्थन था.

1921 में सक्रिय राजनीति में आए गोविंद बल्लभ पंत

गोविंद बल्लभ पंत ने वर्ष 1921 में सक्रिय राजनीति में पदार्पण किया. वह लेजिस्लेटिव असेंबली में चुने गए. उस वक्त उत्तर प्रदेश, यूनाइटेड प्रोविंसेज ऑफ आगरा और अवध कहलाता था. 1932 में पंत देहरादून की जेल में बंद थे. ये इत्तेफाक ही था कि उस वक्त पंडित जवाहरलाल नेहरू भी देहरादून जेल में बंद थे. उस दौरान ही पंडित नेहरू से इनकी अच्छी जान पहचान हो गई. नेहरू इनसे काफी प्रभावित थे. जब कांग्रेस ने 1937 में सरकार बनाने का फैसला किया तो नेहरू ने ही पंत का नाम सुझाया था. इस तरह पंत यूपी के पहले सीएम बने.

देश के चौथे गृहमंत्री को मिला भारत रत्न

हालांकि 2 साल बाद वह पद से हट गए. इसके बाद 1946 में कांग्रेस की भारी जीत के बाद उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया, जिस पद पर वह लगातार 8 साल तक बने रहे. गोविंद बल्लभ पंत उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री और भारत के चौथे गृह मंत्री थे. वर्ष 1997 में उन्हें भारतरत्न से सम्मानित भी किया गया. गृह मंत्री के रूप में उनका मुख्य योगदान भारत की भाषा के अनुसार राज्यों में विभक्त करना और हिंदी को भारत की राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करना था.

गोविंद बल्लभ पंत ने की तीन शादियां

गोविंद बल्लभ पंत की कुल 3 शादियां हुई थीं. पहली शादी 1899 में 12 वर्ष की आयु में उनका विवाह गंगा देवी के साथ हो गया था, उस समय वह कक्षा सात में पढ़ रहे थे. पंत के पहले पुत्र की बीमारी से मृत्यु हो गई और कुछ समय बाद पत्नी गंगादेवी की भी मृत्यु हो गई. उस समय उनकी आयु 23 वर्ष की थी. इस घटना के बाद वह गम्भीर और उदासीन रहने लगे तथा समस्त समय क़ानून व राजनीति को देने लगे.

परिवार के लोगों का दबाव होने के कारण 1912 में पंत का दूसरा विवाह अल्मोड़ा में हुआ था. पंत को दूसरी शादी से भी एक बच्चा हुआ और कुछ दिन बाद उसकी भी मृत्यु हो गई. बच्चे की मौत के बाद पंत जी की पत्नी भी 1914 में स्वर्ग सिधार गईं. साल 1916 में पंत ने अपने मित्र राजकुमार चौबे के दबाव के कारण तीसरी शादी के लिए राजी हो गए. फिर काशीपुर के तारादत्त पांडे की बेटी कलादेवी से 30 साल की उम्र में पंत की तीसरी शादी हुई. इस शादी से उन्हें एक पुत्र और 2 पुत्रियों की प्राप्ति हुई. पंत के बाद उनके बेटे केसी पंत भी राजनीति में काफी सक्रिय रहे और देश के प्रतिष्ठित योजना आयोग के पदाधिकारी भी रहे.

रिपोर्ट: मुहम्मद साजिद, बरेली

Prabhat Khabar News Desk
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