डिजिटल दोस्ती का सच, एआइ पर कितना भरोसा?
एल्गोरिद्म और संवेदनशील संवादों को संभालने में फिलहाल चैटबॉट सुरक्षित नहीं है.
लंबी बातचीत में सुरक्षा तंत्र कमजोर हो जाते हैं, जिससे जोखिम बढ़ जाता है.
सरकारी नियमन, पारदर्शिता और तकनीकी सुधार अब तत्काल आवश्यकता बन गये हैं.
लाइफ रिपोर्टर @ रांची
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) बिजली की तरह है. सही उपयोग करें तो जीवन को रोशन कर सकता है और गलत इस्तेमाल करें तो खतरनाक झटका भी दे सकता है. यही कारण है कि विशेषज्ञ इसकी जिम्मेदार और समझदारीपूर्ण अपनाने की सलाह दे रहे हैं. एआइ अब केवल तकनीकी दायरे तक सीमित नहीं रहा. यह शिक्षा, रोजगार से लेकर निजी जीवन तक अपनी गहरी पैठ बना चुका है. एआइ चैटबॉट्स, गेमिंग एआइ और सोशल मीडिया एल्गोरिद्म बच्चों और युवाओं की सोच और व्यवहार को प्रभावित कर रहे हैं. नयी पीढ़ी अपने कार्यों को आसान बनाने के लिए एआइ का भरपूर इस्तेमाल कर रही है. इसके कई सकारात्मक पहलू हैं, लेकिन इसके खतरे भी कम नहीं. हाल ही में अमेरिका के कैलिफोर्निया में 16 वर्षीय किशोर एडम की आत्महत्या के बाद उसके परिजनों ने एक प्रसिद्ध चैटबॉट कंपनी पर मुकदमा किया. आरोप है कि चैटबॉट ने न सिर्फ आत्महत्या के तरीके बताये बल्कि उसे ऐसा कदम उठाने के लिए प्रेरित भी किया. दुनिया भर में ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं, जहां एआइ चैटबॉट्स के प्रभाव में बच्चे और युवा गलत निर्णय ले रहे हैं. सवाल यह है कि यह तकनीक कितनी सुरक्षित है और इसके दुष्प्रभावों से कैसे बचा जाए?डिजिटल अकेलापन और एआइ का खतरा
वर्ष 2023 की एक रिपोर्ट के अनुसार 13 से 19 वर्ष के किशोरों में डिजिटल अकेलापन तेजी से बढ़ रहा है. असली दोस्त न मिलने पर वे वर्चुअल चैटबॉट्स में भावनात्मक सहारा खोजते हैं. लेकिन, एआइ रिश्तों में सहानुभूति नहीं दिखा सकता. बच्चे अपनी गहरी भावनाएं एआइ से साझा तो कर देते हैं, लेकिन उन्हें मानवीय समझ या सटीक सलाह नहीं मिलती. यही निराशा कभी-कभी आत्मघाती कदम तक ले जाती है. याद रखें, एआइ एल्गोरिद्म पैटर्न और डेटा पर काम करते हैं, इंसानी विवेक पर नहीं.सीख और अवसरों की नयी दुनिया
दूसरी ओर, एआइ शिक्षा को व्यक्तिगत बनाने में अहम भूमिका निभा रहा है. बच्चे एआइ की मदद से म्यूजिक कंपोज कर रहे हैं, कोडिंग और डिजाइनिंग सीख रहे हैं. स्पीच-टू-टेक्स्ट ऐप्स बोलने में असमर्थ बच्चों को आवाज दे रहे हैं, जबकि कंप्यूटर विजन तकनीक दृष्टिहीन बच्चों के लिए पढ़ाई आसान बना रही है. आने वाले वर्षों में नौकरियां एआइ स्किल्स पर आधारित होंगी. ऐसे में एआइ का सही उपयोग आवश्यक है.::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
जानिए…एआइ का सही उपयोग कैसे करें बता रहे हैं डॉ संतोष कुमार, एआइ विशेषज्ञ और शिक्षाविद्
(गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर)
एआइ को सहायक बनायें, सहारा नहीं. असली सीख मेहनत से ही मिलेगी. एआइ हर बार सही उत्तर नहीं देता. जानकारी को किताबों, शिक्षकों और भरोसेमंद स्रोतों से जरूर मिलायें.असाइनमेंट कॉपी करने या परीक्षा में चीटिंग के लिए एआइ का उपयोग न करें.
एआइ पर आंख मूंदकर भरोसा न करें. खुद सोचे और विश्लेषण करें.निजी जानकारी जैसे पासवर्ड या फोन नंबर कभी एआइ प्लेटफॉर्म पर साझा न करें.
कविता, चित्र या कोड एआइ से बनवायें तो उसे पूरी तरह अपना काम न बतायें.याद रखें, एआइ इंसान नहीं है. इसमें भावनाएं और संस्कृति की समझ नहीं.
लत से बचें. गेमिंग हैक या शॉर्टकट के लिए इसका अत्यधिक उपयोग नुकसानदेह है.बच्चों को एआइ के फायदे-नुकसान सिखाना जरूरी है. स्क्रीन टाइम की सीमा तय करें.
समझायें कि एआइ एक मशीन है, दोस्त या गुरु नहीं.:::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::दिमाग में गलत ख्याल आने पर तुरंत उठायें ये 10 कदम
किसी से बात करें : तुरंत किसी भरोसेमंद व्यक्ति (माता-पिता, दोस्त, शिक्षक) को बतायें, अकेले न रहें. हेल्पलाइन पर कॉल करें : भारत में किरण हेल्पलाइन 1800-599-0019 पर तुरंत संपर्क करें.खुद को अकेला न रखें : भीड़, परिवार या किसी सुरक्षित जगह पर रहें.
सुरक्षित वातावरण बनायें : आसपास से खतरनाक वस्तुएं (दवाएं, धारदार चीजें, रस्सी) हटा दें.गहरी सांस लें और रुकें : जब नकारात्मक विचार आए, 10 सेकेंड गहरी सांस लें, खुद को समय दें.
लिखकर बाहर निकालें : मन की बात लिखें, रोएं, लेकिन खुद को नुकसान न पहुंचायें.सोशल मीडिया से दूर रहें : आक्रामक पोस्ट, निगेटिव कंटेंट से बचें.
प्रोफेशनल मदद लें : मनोवैज्ञानिक या काउंसलर से तुरंत अप्वाइंटमेंट लें.व्यायाम या ध्यान करें : वॉक पर जाएं, योग करें, या कोई पॉजिटिव एक्टिविटी करें.
खुद को याद दिलाएं : यह स्थायी हल नहीं है, जीवन की मुश्किलें अस्थायी हैं, मदद हमेशा मौजूद है.——————
तकनीक के इस्तेमाल में पारदर्शिता जरूरी
एआइ शिक्षा को व्यक्तिगत और सरल बना रहा है, उद्योगों को अधिक प्रभावी बना रहा है और जीवन में स्मार्ट समाधान दे रहा है. लेकिन, डेटा सुरक्षा, गोपनीयता, डीपफेक और फेक न्यूज जैसी चुनौतियां गंभीर हैं. गलत डाटा पर आधारित निर्णय पक्षपातपूर्ण हो सकते हैं. इसलिए यह तकनीक तभी सार्थक होगी, जब इसे पारदर्शिता, जिम्मेदारी और मानवीय मूल्यों के साथ अपनाया जाये. अन्यथा यह सुविधा से अधिक संकट बन सकती है.
डॉ राजेंद्र कुमार महतो, सहायक प्राध्यापक, सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, डीएसपीएमयूडिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

