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रस स्वरूप श्रीकृष्ण की प्राप्ति ही रास है

रांची : श्रीवैष्णवी शिवराम सेवा संस्थान के सौजन्य से देवी-दर्शन महायज्ञ महोत्सव समिति द्वारा आयोजित श्रीकृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव के चौथे दिन श्रीगोवर्धनजी के चरित्र से लेकर कथा प्रारंभ हुई. मौके पर आचार्य नीरज ने कहा कि व्यक्ति की सबसे बड़ी पूजा उसका कर्म और सच्चा व्यापार है. हर जाति के लिए अलग-अलग कर्मों की व्यवस्था […]

रांची : श्रीवैष्णवी शिवराम सेवा संस्थान के सौजन्य से देवी-दर्शन महायज्ञ महोत्सव समिति द्वारा आयोजित श्रीकृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव के चौथे दिन श्रीगोवर्धनजी के चरित्र से लेकर कथा प्रारंभ हुई. मौके पर आचार्य नीरज ने कहा कि व्यक्ति की सबसे बड़ी पूजा उसका कर्म और सच्चा व्यापार है.
हर जाति के लिए अलग-अलग कर्मों की व्यवस्था विधान शास्त्रों में है. मानव जीवन में आधारित कर्म करने से ही उपेक्षित सफलताएं मिलती हैं. गोवर्धन लीला में भगवान ने इंद्र का घमंड चूर किया, जिससे हमें प्रेरणादायक शिक्षा प्राप्त होती है कि व्यक्ति को कभी भी अपने बल तथा पद के अभिमान में आकर किसी को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए.
रास का स्वरूप बताते हुए आचार्य ने कहा कि व्यक्ति जब सच्चे हृदय व संपूर्ण भाव से समर्पण करके धर्म, कर्म, मर्यादा, लज्जा व संकोच से ऊपर उठ जाता है, तब उन्हें रस स्वरूप श्रीकृष्ण की प्राप्ति सुलभ हो जाती है, लेकिन वहां पहुंचने के बाद भी लीला की दृष्टि से जीव को अपने सौभाग्य तक अभिमान नहीं करना चाहिए. अन्यथा वह रास के सुख से वंचित हो जाता है.
कार्यक्रम के आयाेजन में रंजीत कुमार, वंदना कुमारी, रामकिशोर सिंह, सरस्वती देवी, स्वरूप मिश्र, मनीष तिवारी, महावीर महतो, मनोज मिश्रा, विनय कुमार सिंह, सुभाष कुमार आदि का योगदान महत्वपूर्ण रहा.

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