जयनगर. गेहूं की फसल के लिए फरवरी माह काफी महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इस समय गेहूं में बालियां आने लगती हैं. फरवरी में तापमान में अचानक बढ़ोतरी होने लगती है जो गेहूं की फसल के लिए ठीक नहीं होती है. ऐसे समय में बारिश नहीं होने से गेहूं की फसल को नुकसान हो सकता है. बालियां काली पड़ सकती है, हालात यह है कि जिन किसानों में लबालब ताल तलैया को देखकर गेहूं की खेती की थी उन्हें आज पटवन के लिए पानी नहीं मिल रहा है. जेसीबी से चुआं खोदकर जैसे-तैसे गेहूं की पटवन की जा रही है जो पर्याप्त नहीं है. ऐसे में फसल के खराब होने का खतरा बढ़ गया है, समय के साथ तापमान का संतुलन ठीक नहीं होने पर गेहूं की पैदावार प्रभावित होती है. साथ ही गेहूं की फसल में दाना बनने में समस्या आती है. जानकारों की मानें तो गेहूं की फसल के लिए फरवरी में न्यूनतम तापमान 10 डिग्री से कम और अधिकतम तापमान 25 डिग्री तक होना चाहिए. इससे ऊपर बढ़े हुए तापमान से गेहूं की फसल को नुकसान होगा और गेहूं की उत्पादन में कमी होगी.
क्या है खतरा और क्या है निदान
कृषि विज्ञान केंद्र जयनगर कोडरमा के एग्रो फोरेस्टी ऑफिसर रूपेश रंजन ने बताया कि इस साल गेहूं के बेहतर उत्पादन की उम्मीद की जा रही थी, मगर पटवन की समस्या आड़े आ रही है, ऐसे में फसल की उचित देखभाल की जरूरत है ताकि फसल को नुकसान नहीं हो सकें. उन्होंने बताया कि किसानों को फसलों की सिंचाई करने चाहिए, ताकि भूमि के तापमान को सही रखा जा सके और भूमि में नमी बनी रहे. सिंचाई हमेशा शाम के समय करनी चाहिए. गेहूं की फसल में गोभ या नहीं कोपले आने के समय किसानों को बहुत ध्यान देना चाहिए, यदि इस समय फसल पर कोई बुरा प्रभाव दिखाई देता है तो उस पर नियंत्रण करना चाहिए. इसके लिए दो फीसदी पोटेशियम नाइट्रेड का इस्तेमाल करें. फसल पर मोहू किट का प्रयोग होने की संभावना भी बनी रहती है. ऐसे में नियंत्रण के लिए 20 ग्राम तायो का प्रति एकड़ 100 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए. फसल पर पीले रतुए का प्रकोप दिखाई दे तो 200 मिलिलीटर प्रोपिकोनाजोल 25 ई सी दवाई प्रति एकड़ 200 लीटर पानी मिलाकर छिड़काव करना चाहिए. इसके बाद 15 दिन का अंतर देखकर पुन: छिड़काव करें.
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