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Friday, March 29, 2024

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झारखंड: आईआईटी आईएसएम धनबाद के 3 दोस्तों का स्टार्टअप इंजीनर्ड चाय बागान के मजदूरों की बढ़ाएगा उत्पादकता

ध्रुव बताते हैं चाय के बागान पहाड़ी ढलानों पर होते हैं. इनमें महिला मजदूर अधिक काम करती हैं. उन्हें चाय की तोड़ी हुई पत्तियों को डिपो तक पहुंचाने में काफी समय लग जाता है. कई बार तो उन्हें पहाड़ी ढलानों पर ऊपर की ओर बोझ लेकर दो किमी तक चलना पड़ता है. इसमें काफी समय नष्ट हो जाता है.

धनबाद, अशोक कुमार. आईआईटी आईएसएम में पढ़ने वाले तीन दोस्तों के स्टार्टअप ‘इंजीनर्ड’ ने चाय बागान में काम करने वाले लाखों मजदूरों की उत्पादकता बढ़ाने की तकनीक विकसित की है. इसमें ड्रोन और स्वचालित रोबोट का प्रयोग एक साथ किया जा रहा है. ड्रोन व रोबोट के इस्तेमाल में चाय बागान के मजदूरों का काफी समय बच जाएगा और वह अधिक मात्रा में चाय की पत्तियों को एकत्र कर सकेंगे. दरअसल ड्रोन मजदूरों से तोड़ी हुई चाय की पत्तियों को एकत्र कर रोबोट तक पहुंचायेंगे. फिर यह रोबोट इन पत्तियों को बागान के बाहर ले जायेगा. पहले यह सारा काम मजदूर ही करते थे. इसमें मजदूरों का काफी समय चाय की ताजी पत्तियों को डिपो तक पहुंचाने में चला जाता था, लेकिन इनके इस्तेमाल से वह अपना पूरा समय पत्तियों को तोड़ने में लगायेंगे.

इंजीनर्ड के संस्थापक : इंजीनर्ड की स्थापना आईआईटी आईएसएम के बीटेक थर्ड के तीन दोस्तों ने की है. इसमें ध्रुव शाह (मैकेनिकल इंजीनियरिंग), हर्षित शर्मा (कंप्यूटर साइंस विभाग) व आदित्य प्रमोद (इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन विभाग) हैं.

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क्यों पड़ी जरूरत : ध्रुव बताते हैं चाय के बागान पहाड़ी ढलानों पर होते हैं. ये आकार में काफी बड़े होते हैं. इनमें महिला मजदूर अधिक काम करती हैं. उन्हें चाय की तोड़ी हुई पत्तियों को डिपो तक पहुंचाने में काफी समय लग जाता है. कई बार तो उन्हें पहाड़ी ढलानों पर ऊपर की ओर बोझ लेकर दो किमी तक चलना पड़ता है. इसमें काफी समय नष्ट हो जाता है. इसे देखते हुए उनके लिए तकनीक विकसित करने का निर्णय लिया था.

ऐसे काम करता है तकनीक : ध्रुव शाह बताते हैं कि इस तकनीक में एक साथ कैमरायुक्त कई ड्रोन चाय बगान के ऊपर उड़ाये जाते हैं. मजदूरों को बड़ी टोकरी की जगह छोटे-छोटे डब्बे दिये जाते हैं. चाय की पत्तियों को मजदूर इसी डब्बे में भर कर ऊपर डालियों पर छोड़ देंगे. ड्रोन इन भरे हुए डब्बों को खुद उठा लेंगे और इसे स्वचालित रोबोटिक वाहन के बकेट में गिरा देंगे. रोबोटिक वाहन का बकेट भरते ही इसे वह ऊपर डिपो तक पहुंचा देगा. ड्रोन और इस रोबोटिक वाहन को दूर से नियंत्रित किया जा सकेगा.

एनवीसीटीआई से मिली मदद : ध्रुव ने बताया कि इस ड्रोन व रोबोट को विकसित करने के लिए उन लोगों ने संस्थान में मौजूद नरेश वशिष्ट सेंटर टिंकरिंग एंड इनोवेशन में उपलब्ध सुविधाओं की मदद से विकसित किया है.

50 हजार आयी लागत : ध्रव ने बताया कि अभी उन लोगों ने ड्रोन और रोबोटिक वाहन का प्रोटो टाइप विकसित किया है. इसमें करीब 50 हजार रुपये की लागत आयी है. बड़े पैमाने पर जब इनका उत्पादन होगा तो इसके बनाने की लागत कम हो जायेगी. प्रोटो टाइप का प्रयोग सफल रहा है.

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