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प्रवचन::: क्रियायोग की शिक्षा मौखिक रूप से होता है

पारंपरिक रूप से गुरु ही शिष्य को क्रियायोग की मौखिक रूप से शिक्षा देते थे, परंतु अब ऐसा समय आ गया है कि इसका व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाये. वास्तव में देखा जाये तो विश्व की अनेक प्राचीन परंपराओं में कुछ गुह्य अभ्यास प्रचलित थे जो क्रियायोग से मिलते-जुलते थे तथा उनका भी आदान-प्रदान गुरु-शिष्य के […]

पारंपरिक रूप से गुरु ही शिष्य को क्रियायोग की मौखिक रूप से शिक्षा देते थे, परंतु अब ऐसा समय आ गया है कि इसका व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाये. वास्तव में देखा जाये तो विश्व की अनेक प्राचीन परंपराओं में कुछ गुह्य अभ्यास प्रचलित थे जो क्रियायोग से मिलते-जुलते थे तथा उनका भी आदान-प्रदान गुरु-शिष्य के बीच मौखिक रूप से ही होता था. इसका एक उदाहरण चीनी ध्यान पद्धति ‘ची कुंग’ है. ची कुंग तथा क्रियायोग दोनों में प्राण के प्रवाह का उपयोग भौतिक, मनो तथा प्राण शरीर के बीच संतुलन तथा सामंजस्य स्थापित करने के लिए किया जाता है. क्रियायोग तथा ध्यान की अन्य पद्धतियों के बीच पर्याप्त भिन्नता है. अनेक लोगों का यह अनुभव है कि जब वे लोग ध्यान के लिये बैठते हैं तो उनका मन इतना अधिक चंचल हो उठता है कि वे उसे नियंत्रित नहीं कर सकते.

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