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सर्कस में शामिल नहीं होगी नयी पीढ़ी

संकट. डिजिटल दौर में दर्शकों की कमी से सर्कस के अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा नक्सलवाद पर आधारित कहानी ‘अपराध’ और कोयलांचल पर आधारित उपन्यास ‘सावधान नीचे आग है’ के विख्यात हिंदी सर्जक संजीव के एक उपन्यास का नाम ही है ‘सरकस’. इसमें सरकस की चकमदार दुनिया के पीछे का अंधकार, उसके विनोद के पीछे […]

संकट. डिजिटल दौर में दर्शकों की कमी से सर्कस के अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा

नक्सलवाद पर आधारित कहानी ‘अपराध’ और कोयलांचल पर आधारित उपन्यास ‘सावधान नीचे आग है’ के विख्यात हिंदी सर्जक संजीव के एक उपन्यास का नाम ही है ‘सरकस’. इसमें सरकस की चकमदार दुनिया के पीछे का अंधकार, उसके विनोद के पीछे छिपी कसक को शिद्दत से उभारा गया है. इस डिजिटल दौर में लोक कलाएं जहां संकट से घिरी हैं, वहां सर्कस पर इसकी गहरी मार पड़ी है.
बोकारो : मनोरंजन का कभी बेहतर साधन रहा सर्कस अब बदहाली के दौर से गुजर रहा है. हैरतअंगेज स्टंट करने वाले कलाकार व जंगली जानवर सर्कस से दूर हो चुके हैं. फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ का ‘जीना यहां मरना यहां…’ का वह राजकपूर का गीत सर्कस के कलाकारों की ज़ुबान पर तो जरूर है, लेकिन डिजिटल युग में दर्शकों की कमी से सर्कस के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है. जीना यहां मरना यहां के खेल में अगली पीढ़ी अब शामिल नहीं होगी. सर्कस में लगातार घटते दर्शकों की संख्या ने कलाकारों को यह सोचने पर विवश कर दिया है.
ए भाई, जरा देख के चलो : ए भाई, जरा देख के चलो… आगे भी नहीं पीछे भी… यह बोल राजकपूर की याद दिलाते हैं, जिन्होंने फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ में यह गीत फिल्माया था. जब भी आप सर्कस देखने जायेंगे, यह गीत सुनने को मिलेगा. कई सालों बाद बाद एक बार फिर से सर्कस मैदान-सेक्टर 4 में चल रहा है ‘एंपायर सर्कस’. आकर्षण का केंद्र है – आस्ट्रेलिया का तोता, मौत के गोला में चार मोटरसाइकिल का खेल व मणिपुर के कलाकारों का जिम्नास्टिक्स.
बड़ी मुश्किल से जुटती दर्शकों की भीड़ : एक समय था जब सर्कस मनोरंजन का अहम साधन था. लोग सर्कस का इंतजार साल भर करते थे. टिकट खरीदने के लिए लंबी कतारें लगती थी. आज जब कभी भी कहीं भी सर्कस लगता है तो उसमें बड़ी मुश्किल से दर्शकों की भीड़ होती है. सर्कस के कलाकारों की जिंदगी कैसी होती है, यह किसी से छुपी नहीं है. घर-परिवार से दूर कलाकार जगह-जगह अपने शो करते हैं, ताकि दर्शक खुश हों.
सर्कस में जोकर की भूमिका अहम : सर्कस में जोकर की अहम भूमिका होती है. एंपायर सर्कस में 10 वर्ष से काम कर रहे वेणु दास, बचपन से काम कर रहे राहुल, 1981 से सर्कस से जुड़े सुबल दास व 30 वर्षों से लोगों को हंसा रहे शेख मंटू ने बताया : जानवर सर्कस का मुख्य आकर्षण होते थे. अब सरकार ने सर्कस में जानवरों के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है. टीवी, वीडियो गेम और इंटरनेट ने रही-सही कसर पूरी कर दी. आखिर दर्शक क्या देखने के लिए सर्कस आयेंगे. मणिपुर ग्रुप का जिमनास्टिक्स एरोबिक एंयापर सर्कस का आकर्षण का केंद्र है. 05 लड़कों की टीम श्यामू की लीडरशिप में प्रदर्शन करती है. इनका कहना है : समय के साथ आये बदलाव और हाइटेक जमाने में सर्कस के कलाकारों के समक्ष रोजी-रोटी की समस्या उत्पन्न हो गयी है.
कहीं यह कला भ‌विष्य में इतिहास में न समा जाये. सरकार ने सर्कस से मनोरंजन कर को फ्री जरूर कर दिया, पर सर्कस की कला और कलाकारों को जिंदा रखने के लिए विशेष पहल की जरूरत है. अन्यथा आने वाले 5-10 सालों में सर्कस का नामोनिशान खत्म हो जायेगा.
केस स्टडी-1
रियाजुद्दीन व तानिया वर्ष 2000 से सर्कस से जुड़े हैं. सर्कस में काम के दौरान ही शादी की. कहते हैं : अपने बेटा-बेटी को सर्कस में नहीं आने देंगे. सर्कस का कोई भविष्य नहीं दिख रहा. सर्कस के साथ-साथ हमारे अस्तित्व पर भी खतरा मंडरा रहा है. विवशता में सर्कस से जुड़े हैं. अब कहां जायेंगे? क्या काम करेंगे? हम चाहते हैं कि जो टेंशन हमें हो रहा है, वह हमारे बच्चों को नहीं हो. बच्चों को सर्कस से जुदा कहीं और काम करायेंगे. बच्चों को अच्छी शिक्षा देंगे, ताकि वह कोई दूसरा रोजगार या नौकरी कर सके.
केस स्टडी-2
मुकेश के पिता सर्कस में ही काम करते थे. इस कारण मुकेश बचपन से ही सर्कस में आ गये. सर्कस में काम के दौरान ही मुकेश ने पूजा से शादी कर ली. मुकेश व पूजा का सपना अपनी संतान को पढ़ा-लिखा कर बड़ा आदमी बनाने का है. मुकेश कहते हैं : पिता के कारण मैं सर्कस में आ गया, लेकिन अब मैं अपने बेटा-बेटी को सर्कस में काम नहीं करने दूंगा. मुकेश की पत्नी पूजा ने भी हामी भरी. कहा : बच्चे को पढ़ा-लिखा कर अच्छी जिंदगी देंगे. सर्कस अब डूबता हुआ जहाज है. इस पर अपने बच्चे को नहीं बैठायेंगे.
सर्कस से 25 वर्ष से जुड़ी हूं. पहले सर्कस में पब्लिक बहुत होती थी. सर्कस में लोग जानवर देखने आते थे. अब पहले की तरह पब्लिक नहीं आती सर्कस देखने. सर्कस से जानवर खत्म हो गये. इससे अब सर्कस में पहले जैसी बात नहीं रही.
अनीता सरकार
सर्कस से 15 वर्ष से जुड़ी हूं. अब इसमें भविष्य नहीं दिखता है. डिजिटल युग ने इस खेल को खत्म कर दिया है. एक समय था जब सर्कस मनोरंजन का प्रमुख साधन था. लेकिन आज टेलीविजन व इंटरनेट के दौर में सर्कस का मनोरंजन हाशिये पर पहुंच गया है.
सपना ठाकुर
सर्कस में आठ वर्षों से काम कर रही हूं. रिंग में खेल दिखाने के दौरान बहुत खुशी मिलती है, जब दर्शकों की तालियां बजती है. दर्शकों व समुचित मंच के अभाव में कलाकार सर्कस से दूर होते जा रहे हैं. सरकार को इसके लिए विशेष पहल करने की जरूरत है.
अन्नु आर नायर
आठ वर्ष से सर्कस से जुड़ी हूं. पापा सर्कस में ही मैनेजर हैं. सरकार का समर्थन नहीं मिलने की वजह से सर्कस खत्म हो रहे हैं. सर्कस के कलाकारों की खानाबदोश जिंदगी और स्थायित्व की कमी के कारण भी स्थिति बहुत विषम हो गयी है. सर्कस को संजीवनी की जरूरत है.
पूजा
12 वर्ष से सर्कस में करतब दिखा रहा हूं. दूसरी बार बोकारो आया हूं. सर्कस में जब पब्लिक रहती है, तब खेल दिखाने में मजा आता है. सर्कस से दर्शक गायब होते जा रहे हैं. इंटरनेट के युग में अब सर्कस कौन देखने आयेगा. अब तो जानवर भी सर्कस में नहीं रहे.
अजय व्यापारी
28 वर्षों से सर्कस से जुड़ा हूं. पहले सर्कस जिस शहर में जाता था, वहां धूम मच जाती थी. अब वह बात नहीं रही. सर्कस का अस्तित्व खतरे में है. पहले हमारे यहां 350 कर्मी थे, अब 137 ही रह गये हैं. इसका प्रमुख कारण है सर्कस में जानवरों का बैन होना. इससे सर्कस की आमदनी 60 फीसदी कम हो गयी. सरकार से डिमांड है कि एक टाइगर, एक हाथी सहित कुछ जानवर सर्कस में रखने की मंजूरी दी जाये. बच्चे सर्कस में जानवरों का खेल देखने ही आते हैं. बच्चों के साथ पूरा परिवार आता है.
इरशाद खान-प्रबंधक, एंपायर सर्कस

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