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बिहार : 5 महीने से वेतन के अभाव में नियोजित शिक्षकों का त्राहिमाम, विधानसभा में उठा मुद्दा

आशुतोष के पांडेय पटना : कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास, कई दिनों तक कानी कुतिया सोयी उनके पास. वैसे यह पंक्ति बाबा नागार्जुन की कविता ‘अकाल और उसके बाद’ शीर्षक से लिखी गयी कविता से ली गयी है. जबकि ऊपर की तस्वीर में चूल्हे के साथ उदास बैठी नियोजित शिक्षिका सीमा कुमारी […]

आशुतोष के पांडेय

पटना : कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास, कई दिनों तक कानी कुतिया सोयी उनके पास. वैसे यह पंक्ति बाबा नागार्जुन की कविता ‘अकाल और उसके बाद’ शीर्षक से लिखी गयी कविता से ली गयी है. जबकि ऊपर की तस्वीर में चूल्हे के साथ उदास बैठी नियोजित शिक्षिका सीमा कुमारी के मन में भी कुछ ऐसा ही चल रहा है. सीमा एक नियोजित शिक्षिका हैं. बक्सर जिले के डुमरांव प्रखंड में कुशलपुर स्कूल में पढ़ाती हैं. इन्हें जून महीने से वेतन नहीं मिला है. यह दर्द सिर्फ सीमा का नहीं है.राज्य के उन लाखों शिक्षकों का है जिन्होंने शिक्षक बनकर ज्ञान की रौशनी सेसूबे की भावी पीढ़ी को जगमगाने का सपना संजोया था.

वक्त के थपेड़ोंसे जूझते ढाई लाख से ज्यादा इन शिक्षकों ने संघर्ष के बल पर वेतनमान की मांग तो सरकार से मनवा ली. अब हालत यह है कि इन्हें वेतन वक्तपर नसीब नहीं होता. दिन भर स्कूल में बिताने के बाद जब घर पहुंचते हैं तो रास्ते में मां-बाबूजी और बच्चे से क्या बहाने बनायेंगे यह सोचते हैं. बेटे को कहा था, इस बार नया पेंसिल बॉक्स ले दूंगा. बाबू जी का चश्मा भी इस बार नया हो जायेगा. बीबी तो सिर्फ इस बात से ही खुश हो जायेगी कि वेतन मिल तो गया. हलांकि बेटे के उदास चेहरे देखकर मां बाप भी समझ जाते हैं बेटे को वेतन नहीं मिला है. हर रोज सपनों को सिसकने पर मजबूर करने वाले शिक्षक इस आस के साथ स्कूल चले जाते हैंकि वेतन भले वक्त पर ना मिले लेकिन मिल तो जायेगा.

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लाखों शिक्षकों के घरों में त्राहिमाम

बिहार के लाखों नियोजित शिक्षकों को पांच महीने से वेतन नहीं मिला है. वेतन की आस में टकटकी लगाये यह शिक्षक बाजार में अब नजरेंबचाकर चलते हैं. क्या पताकिरानेका दुकानदार बीच बाजार कहीं उधारीन मांगने लगे. अपने गांव-जवार में मां बाप के पास रहकर ज्ञान की ज्योति जलाने के लिये शिक्षक बने इन लोगों का दर्द सियासत देर से समझती है. तब तक कई के घरों में कर्ज का बोझ बड़ा हो चुका होता है. कहीं सपने बिखर चुके होते हैं. कहीं टूटने की कगार पर होते हैं. जनवरी 2016 में केंद्र सरकार ने सर्वशिक्षा अभियान में बिहार को 771 करोड़ की दूसरी किस्त जारी कर दी. इस मद में राज्य सरकार अपना 40 प्रतिशत शामिल करेगी तो यह राशि हजार करोड़ तक पहुंच जायेगी और तीन महीने का वेतन शिक्षकों को नसीब हो जायेगा. यह बात सियासत दां समझते हैं कि नहीं, पता नहीं लेकिन राशि जारी होने के बाद शिक्षकों को लगा कि वेतन मिल जायेगा. भारत के प्रधानमंत्री मन की बात में स्कूली बच्चों की बात करते हैं. जबकि बिहार सरकार का सर्वशिक्षा अभियान मद में केंद्र पर बिहार का करीब 1800 करोड़ रुपये बकाया रह गया है. अधिकांश शिक्षकों के जीवनयापन का एकमात्र जरिया मासिक वेतन है. अंदाजा लगाया जा सकता है उन चूल्हों के बारे में जिस पर वेतन की हांडी पांच महीने में एक बार भी नहीं चढ़ी है.

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क्या कहते हैं शिक्षा मंत्री

बिहार विधानसभा में शिक्षकों के वेतन का मामला एक बार फिर उठा. बीजेपी के दरभंगा विधायक संजय सरावगी ने कहा कि सरकार शिक्षा के लिये बजट में इतने रुपये का प्रावधान कर रही है वहीं दूसरी ओर शिक्षकों को वेतन नहीं दे रही है. संजय ने कहा कि जब शिक्षक है भूखा तो ज्ञान का सागर सूखा. हंगामें के बीच संजय सरावगी ने शिक्षकों के दर्द को जोरदार तरीके से उठाया. वहीं दूसरी ओर शिक्षा मंत्री डॉ. अशोक चौधरी ने मीडिया से बातचीत में कहा कि भाजपा का यह आरोप गलत है कि सरकार वेतन नहीं दे रही है. केंद्र सरकार ने इस मद में पूरा पैसा नहीं दिया है. अशोक चौधरी ने कहा कि बहुत जल्द शिक्षकों को उनके तीन महीने का वेतन रिलीज कर दिया जायेगा. शिक्षा मंत्री ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने पिछला राज्यांश अभी तक नहीं दिया है. राज्य सरकार अपना 40 प्रतिशत देने को तैयार है.

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शिक्षकों का दर्द

वहीं वेतन की आस में टकटकी लगाये स्कूलों में दस बजे से शाम तक पढ़ाने वाले शिक्षकों का दर्द भी कम नहीं है. शिक्षकों से बात करने पर वह कहते हैं कि एक तरफ समय से वेतन नहीं. दूसरी ओर इंटर परीक्षा में वीक्षण कार्य में लगाया गया है. वहां भी उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है. परीक्षा केंद्र में छात्र जब कदाचार के लिये पूर्जा लेकर जाते हैं तो शिक्षकों का एक साल का इनक्रिमेट काटने की बात कही जाती है. वहीं दूसरी ओर बच्चों की केंद्र में प्रवेश करते वक्त जांच करने वाले जिम्मेदार अधिकारियों को कुछ नहीं कहा जाता. वेतन के बिना भाई की पढ़ाई रूकी है. बच्चे के कपड़े, घर का खर्च कुछ नहीं चल पा रहा है. शिक्षक कहते हैं कि उनके जीवन में कर्ज जैसा शब्द ना हो तो जीना दूभर है.

उम्मीदें अभी जिंदा हैं

शिक्षक छात्रों को विस्तार देता है. रास्ता दिखाकर उसपर चलने के लिये छोड़ देता है ताकि छात्र अपना स्वतंत्र व्यक्तित्व बना सके. छात्रों को प्रोत्साहित करता है. उन्हें संभालता है. वेतन के लाले ऐसे पड़े हैं कि अब खुद हीसंभलने का इंतजार कररहा है. आशा और उम्मीदों का दामन थामे शिक्षक पूर्णानंद कहते हैं-हमलोग शिक्षक हैं हम समाज को जगायेंगे. जिंदगी का मंत्र बच्चों को देते रहेंगे क्योंकि अंकुर हमने उम्मीद के उगाये हैं.

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