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मैगी विवाद: जांच के लिए सैंपल भेजे गये थे कोलकाता, पांच राज्यों में बैन, हमें रिपोर्ट का ही इंतजार

पटना: मैगी को लेकर उठे विवाद के बीच कई राज्यों ने बैन लगा दिया है. वही बिहार को अब भी जांच रिपोर्ट का इंतजार है. कई जिलों से लिये गये सैंपल्स को कोलकाता जांच के लिए भेजा गया था. दरअसल, बिहार में गुणवत्ता जांच की कोई व्यवस्था नहीं है. स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के अनुसार […]

पटना: मैगी को लेकर उठे विवाद के बीच कई राज्यों ने बैन लगा दिया है. वही बिहार को अब भी जांच रिपोर्ट का इंतजार है. कई जिलों से लिये गये सैंपल्स को कोलकाता जांच के लिए भेजा गया था. दरअसल, बिहार में गुणवत्ता जांच की कोई व्यवस्था नहीं है. स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के अनुसार जांच रिपोर्ट देख कर ही हम किसी नतीजे पर पहुंचेंगे. उल्लेखनीय है कि दिल्ली के अलावा उत्तराखंड, मणिपुर, गुजरात और जम्मू-कश्मीर ने भी प्रतिबंध लगा दिया.

अरुणाचल प्रदेश और पुडुचेरी में भी मैगी के सैंपल्स जांच के लिए भेजे गये हैं. सेना की कैंटीन में भी मैगी की बिक्री पर रोक लगा दी गयी है. गुणवत्ता पर उठे सवालों के बाद बिग बाजार ने अपने आउटलेट में मैगी की बिक्री पर रोक लगा दी है. गुरुवार को शाम तक स्वास्थ्य विभाग में बिहार से भेजे गये नमूनों की जांच रिपोर्ट का इंतजार होता रहा. सरकार जांच रिपोर्ट के आधार पर ही आगे की कार्रवाई करेगी. राज्य के विभिन्न जिलों से मैगी के विभिन्न ब्रॉड के 21 नमूनों का संग्रह किया गया था. एक सप्ताह में एकत्र किये गये नमूनों को जांच के लिए कोलकाता स्थित फूड लेबोरेट्री भेजा गया था. राज्य सरकार के खाद्य प्रयोगशाला में इसकी जांच नहीं करायी गयी.

नियमों के जंजाल में अटकी नियुक्ति प्रक्रिया
फूड एनालिस्ट के पद पर नियुक्ति की प्रक्रिया में नियमों का जंजाल इस कदर लिपटा है कि जब तक सरकार बड़ी पहल नहीं करेगी तब तक नया अधिकारी आना टेढ़ी खीर लग रहा है. दरअसल राज्य में फूड एनालिस्ट का पद सृजित है ही नहीं. 5 अगस्त 2011 के पहले प्रिवेंशन ऑफ फूड एडल्ट्रेशन एक्ट 1954 लागू था. इसके अनुसार राज्य में लैब के संचालन के लिए पब्लिक एनालिस्ट का पद सृजित था. जब 2011 में फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड एक्ट लागू हुआ, तो पब्लिक एनालिस्ट को ही फूड एनालिस्ट बना दिया गया. उस समय जेके सिंह इस पद पर कार्यरत थे. जब वह रिटायर हो गये, तो विभाग ने सरकार के पास फूड एनालिस्ट के पद पर नियुक्ति का प्रस्ताव भेजा, लेकिन जब यह पद सृजित ही नहीं है तो सरकार ने नियुक्ति भी नहीं की. अब इसमें सुधार करने के लिए खाद्य सुरक्षा विभाग ने प्रस्ताव सरकार के पास भेजा है, लेकिन फाइल अभी भी धूल ही फांक रही है.
सैंपल भेजने में सालाना खर्च होते हैं 20 लाख
अगमकुआं का प्रयोगशाला बंद रहने के कारण बिहार के सभी हिस्से से कोलकाता ही सैंपल भेजा जाता है. इसे भेजने का खर्च भी भारी भरकम है. परेशानी के साथ रिपोर्ट आने में देरी होती है. खाद्य सुरक्षा विभाग के आंकड़ों की मानें तो प्रदेश से हर साल लगभग 1400 से 1500 सैंपल कोलकाता स्थित प्रयोगशाला में भेजा जाता है. कुरियर या पार्सल से भेजने सहित हर सैंपल पर 1343 रुपये का खर्च आता है. इस तरह कुल खर्च 20 लाख रुपये के आसपास पहुंच जाता है. इसके अलावा सैंपल रखने और उसे सुरक्षित भेजने में परेशानी होती है. यही नहीं रिपोर्ट भी समय से नहीं मिल पाता है. कोलकाता रिजन में उत्तर पूर्व के कई राज्यों से भी सैंपल आते हैं. इस कारण वहां लंबी कतार होती है. यही वजह है रिपोर्ट उस वक्त मिलती है जब उसका महत्व ही समाप्त हो जाता है. यदि पदाधिकारी की नियुक्ति होती तो फिर ये सारी समस्याएं खत्म हो जाती.

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