- एथनोग्राफिक रिपोर्ट नौ जून, 2018 को केंद्र को भेजी गयी थी
- इन जातियों के लक्षण अनुसूचित जनजाति के समान हैं
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पटना : राज्य सरकार ने एथनोग्राफिक रिपोर्ट के साथ केंद्र को भेजी दोबारा अनुशंसा
शशिभूषण कुंवर, पटना : छह माह से अधिक समय बीत गये, पर अब तक केंद्र सरकार मल्लाह, नोनिया और निषाद तथा उनकी उप जातियों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने का फैसला नहीं ले पायी है. बिहार सरकार ने छह माह पहले नौ जून, 2018 को तीनों जातियों के साथ इनकी उप जातियां बिंद, बेलदार, […]
शशिभूषण कुंवर, पटना :
छह माह से अधिक समय बीत गये, पर अब तक केंद्र सरकार मल्लाह, नोनिया और निषाद तथा उनकी उप जातियों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने का फैसला नहीं ले पायी है. बिहार सरकार ने छह माह पहले नौ जून, 2018 को तीनों जातियों के साथ इनकी उप जातियां बिंद, बेलदार, चाई, तीयर, खुलवट, सुरहिया, गोढ़ी, वनपर और केवट भी अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल करने की अनुशंसा केंद्र सरकार के पास भेज दी थी.
इसके पहले छह सितंबर, 2015 को राज्य सरकार के कैबिनेट का निर्णय की जानकारी भी केंद्र को दी गयी थी. इसके बाद अनुग्रह नारायण सिंह समाज अध्ययन संस्थान, पटना से एथनोग्राफिक रिपोर्ट भी नौ जून, 2018 को केंद्र सरकार को भेजी गयी थी.
एथनोग्राफिक रिपोर्ट में माना गया कि इन जातियों के लक्षण अनुसूचित जनजाति के समान हैं. ऐसे में राज्य सरकार ने जो अनुशंसा भेजी है, वह सही है. इधर, बिहार राज्य अत्यंत पिछड़ा वर्ग आयोग के संस्थापक सदस्य उदय कांतचौधरी ने बताया कि जातियों की कोटि में बदलाव केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है.
यह संवैधानिक प्रक्रिया है. मानकों को पूरा करने वाली जातियों को इसका लाभ दिया जाता है. बिहार में आरक्षण का प्रावधान 50 प्रतिशत पूरा हो चुका है. अगर इन जातियों की आबादी के अनुसार आरक्षण का प्रावधान किया जाता है, तो इस चुनौती को भी सरकार को दूर करना होगा.
राज्य ने लिया था निर्णय
राज्य सरकार ने इन तीनों जातियों की सामाजिक और शैक्षणिक स्थिति को देखते हुए पांच सितंबर 2015 को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने का निर्णय लिया था. कैबिनेट में निर्णय के एक दिन पहले चार सितंबर, 2015 को गांधी मैदान में निषाद जाति को एससी में शामिल करने को लेकर रैली आयोजित की गयी थी. तब बिहार विधानसभा के आम चुनाव में महज दो माह शेष थे, जब इस संबंध में कैबिनेट ने फैसला किया था.
एथेनोग्राफिक स्टडी भी करायी गयी थी
2015 में केंद्रीय जन जातीय कार्य मंत्रालय राज्य सरकार से इन जातियों की एथेनोग्राफिक स्टडी कराने के बाद रिपोर्ट के साथ अनुशंसा भेजने को कहा था. राज्य सरकार ने अनुग्रह नारायण समाज अध्ययन संस्थान से इन जातियों का एथेनोग्राफिक अध्ययन कराया. बाद में संस्थान ने अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंप दी.
लोकसभा की 10 सीटों को प्रभावित करती हैं ये जातियां
लोकसभा चुनाव से पहले मल्लाह, निषाद और नोनिया जाति एससी कैटेगरी में शामिल तो नहीं हुईं, पर अब इसका असर चुनाव पर दिख सकता है. ये तीनों जातियों संख्या में अपने को करीब 10 फीसदी का दावा करती हैं.
इनका प्रभाव मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, भागलपुर, छपरा, सीवान, गोपालगंज, दरभंगा, सुपौल और मधुबनी जिले में है.
क्या कहते हैं समाजशास्त्री
समाजशास्त्री डाॅ डीएम दिवाकर का कहना है कि तीनों
जातियों का दावा मजबूत है. केंद्र की मोदी सरकार को गरीबों से मतलब नहीं है, बल्कि गरीबों पर राजनीति करने से मतलब है. यह सरकार बुनियादी काम नहीं कर रही है.
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