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बिहार शराबबंदी में गुजरात से कई कदम आगे, जानें दोनों जगहों के शराबबंदी में क्‍या है अंतर

पटना : बिहार में शराबबंदी के दो साल एक अप्रैल को पूरे हो जायेंगे. सरकार शराबबंदी को सामाजिक बदलाव का बड़ा जरिया मान रही है. धरातल पर उसका यह दावा महज दिखावा भर नहीं है. इसके पीछे कुछ ठोस वजहें हैं. इन ठोस वजहों में सबसे अहम है शराबबंदी के प्रति शासन की प्रतिबद्धता. यहां […]

पटना : बिहार में शराबबंदी के दो साल एक अप्रैल को पूरे हो जायेंगे. सरकार शराबबंदी को सामाजिक बदलाव का बड़ा जरिया मान रही है. धरातल पर उसका यह दावा महज दिखावा भर नहीं है. इसके पीछे कुछ ठोस वजहें हैं.
इन ठोस वजहों में सबसे अहम है शराबबंदी के प्रति शासन की प्रतिबद्धता. यहां की सरकार शराबबंदी के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति पर चल रही है. बिहार के सरकारी सिस्टम ने शराब उपलब्ध कराने पर किसी तरह की छूट या अपवाद व्यवस्था नहीं दी है.
अलबत्ता देश में सबसे पहले शराबबंदी करने वाले राज्य गुजरात ने आम लोगों के लिए शराब पर पाबंदी तो लगायी, लेकिन उच्च वर्ग और चिकित्सकों के परामर्श पर शराब का परमिट जारी करने की व्यवस्था दे रखी है. गुजरात में बड़े होटलों में शराब परोसने के लिए लाइसेंस या परमिट जारी करके कुछ ढील दी गयी है. इसका लोग मिस यूज करते देखे जा सकते हैं.
ऊपर बताया गया निष्कर्ष प्रभात खबर की शराबबंदी पर बिहार में रह रहे गुजराती मूल (जिनका गुजरात से अभी भी पूरा संबंध है) के कारोबारियों और कुछ गुजराती कर्मचारियों से बातचीत के आधार पर निकाले गये हैं.
इन लोगों का कहना है कि दोनों राज्य शराबबंदी के प्रति प्रतिबद्ध हैं, लेकिन गुजरात ने पूंजीवादी रुझान के चलते कुछ बड़े होटलों को लिमिट में शराब परोसने के लाइसेंस या परमिट तय किये हैं, जो कस्टमर की पहचान सुनिश्चित करने पर जारी किये जाते हैं. हालांकि, लाइसेेंसी शराब भी बेहद लिमिट में होती है. जबकि दूसरी तरफ बिहार में समाजवादी विचारधारा प्रभावी होने से यहां के होटलों में भी शराबबंदी पूरी तरह प्रभावी है. इस तरह शराबबंदी मामले में बिहार गुजरात से कहीं आगे खड़ा है.
बिहार में शराबबंदी गुजरात की तुलना में ज्यादा प्रभावी है, जो कि अच्छी बात है. सरकार ने यहां किसी तरह की छूट नहीं दी है. गुजरात में शराब कई दूसरी वजहों से मिल जाती है. हालांकि, इन दिनों बिहार में शराब की कालाबाजारी बढ़ गयी है. उसे रोकने की जरूरत है
दोनों राज्यों ने शराबबंदी रोकने में सफलता हासिल की है. हालांकि, बिहार में शराबबंदी को व्यापक करने की जरूरत है. हालांकि, बिहार में राजनीतिक प्रतिबद्धता कहीं ज्यादा है. हालांकि, राजधानी के बाहर आऊटर में अब भी कुछ लोग शराब पीये दिख जाते हैं. गुजरात में अमूमन सड़क पर शराब पीकर घूमते नहीं देखे जाते.
अशोक मेहता, प्लास्टिक उत्पाद कारोबारी, पटना सिटी
बिहार व गुजरात की शराबबंदी में अंतर
गुजरात में दूसरे प्रदेश के लोगों को शराब पीने के लिए कुछ परमिट दिये जाते हैं, जबकि बिहार में बाहरी को ऐसी सुविधा नहीं दी गयी है.
गुजरात में डाॅक्टर के परामर्श पर कुछ मात्रा में जरूरी लोगों को शराब परमिट इश्यू किये जाते हैं, जबकि बिहार में नहीं
गुजराती मूल के कारोबारी बोले
बिहार में खासतौर पर राजधानी क्षेत्र में अभी काफी सख्ती है. यह अच्छी बात है. बिहार सरकार का संकल्प प्रशंसनीय है. हालांकि, शहर के बाहरी इलाके में अभी सुधार की और जरूरत है, जहां तक गुजरात का सवाल है, वहां भी रात के अंधेरे में चोरी छिपे यदा-कदा शराब मिल जाती है़
जयंती मेहता, कारोबारी, पटना
बिहार में पूर्ण शराबबंदी है. गुजरात में शराब मुहैया कराने की व्यवस्थाएं दी गयी हैं. हालांकि, वहां माहौल पूर्ण नियंत्रित है. बिहार में भी सकारात्मक बदलाव है. इस दिशा में और भी प्रभावी कदम उठाये जाने की जरूरत है.
विपिन भाई कोठारी, बिजनेसमैन, पटना
शराबबंदी दोनों जगह प्रभावी ह़ै अंतर सिर्फ माहौल का है. गुजरात में शराब पीकर उपद्रव कभी दिखाई नहीं देता. वहां शराबबंदी से पहले ही शराब कम पी जाती थी. बिहार में पीनेवालोें की संख्या अधिक रही है. इसलिए यहां ज्यादा चुनौतियां हैं, पर बिहार सरकार का प्रयास सराहनीय हैं.
हेतल पारिख, कुकिंग क्लास संचालक
बिहार में शराबबंदी को बेहतर बनाना है तो शैक्षणिक माहौल भी बदलना होगा. हालांकि, सरकार अच्छा प्रयास कर रही है. बिहार के माहौल में पहले से काफी बदलाव आया है. यह प्रयास और प्रभावी होना चाहिए.
अजित वोरा, मनिहारी कारोबारी, पटना सिटी
Prabhat Khabar Digital Desk
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