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पहली बार जेल में बाबूजी से हुई थी मुलाकात

पहली बार जेल में बाबूजी से हुई थी मुलाकातप्रभात कुमार, मुजफ्फरपुर मेरा जब जन्म हुआ था तो बाबूजी जेल में नजरबंद थे. मेरी उनसे पहली भेंट जेल में हुई, जब मैं डेढ़ वर्ष का था. मुझे तो याद नहीं, मां कहा करती थी पहली बार मैं बाबूजी से जेलर के कमरे में मिला था. जब […]

पहली बार जेल में बाबूजी से हुई थी मुलाकातप्रभात कुमार, मुजफ्फरपुर मेरा जब जन्म हुआ था तो बाबूजी जेल में नजरबंद थे. मेरी उनसे पहली भेंट जेल में हुई, जब मैं डेढ़ वर्ष का था. मुझे तो याद नहीं, मां कहा करती थी पहली बार मैं बाबूजी से जेलर के कमरे में मिला था. जब बाबूजी से मिलने गये, जेलर साहब ने पूछा, पहचानो तुम्हारे बाबूजी कौन हैं. तब मैंने बाबूजी की ओर इशारा किया और कहा यही मेरे बाबू जी हैं. सब यह देख आश्चर्यचकित थे कि मैंने उन्हें कैसे पहचान लिया. कलम के जादूगर रामवृक्ष बेनीपुरी की जन्मशती पर बाबूजी को याद करते हुए उनके पुत्र महेंद्र बेनीपुरी ने अंतरंग स्मरणों को याद करते हुए कहा, बाबूजी मुझे टुगर कहा करते थे क्योंकि पैदा होने के डेढ़ वर्ष तक उनका प्यार मुझे नहीं मिला. बाद में भी जेल यात्राओं के कारण वह मेरे पास नहीं रहते थे. समय की गाड़ी बढ़ती गयी, देश स्वतंत्र हुआ. तब तक बाबूजी अपने को लेखन के साथ राजनीति में भी स्थापित कर चुके थे. अब उनका ध्यान परिवार की ओर हो गया था. मां की खुशी के लिए गांव में बनाया था घरमां की खुशी के लिए बेनीपुर में एक अच्छा सा घर, मंझले भैया मैं और बहन के लिए अच्छी शिक्षा उनकी प्राथमिकता थी. मंझले भइया को मिलेट्री एकेडमी देहरादून भेजा, लेकिन मेरी और बहन की पढ़ाई स्वर्गीय योगेंद्र सिंह जैसे अनुशासनप्रिय कठोर शिक्षक के देखरेख में हुई. मैंने बाबूजी के लेखक व राजनीति का वह रूप देखा जो मेरे लिए सपना है. बाबूजी को कैरम का था शौकपटना में हमलोग मुसल्लहपुर हाट के शीतल भवन में रहा करते थे जहां शाम होते ही साहित्यकारों की बैठकी होती थी. शिवपूजन चाचा जैसे साहित्यकार इसमें आते थे. बाबूजी को बैडमिंटन व कैरम खेलना पसंद था. कैरम में भइया, भाभी और मैं पाटर्नर हुआ करता था. मैट्रिक पास करके बेनीपुर आये, बाबू जी 1957 में उत्तरी कटरा से प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव लड़ रहे थे. बताते दें कि 1952 में बाबूजी चुनाव हार गये थे. लोकनायक जयप्रकाश नारायण का सोशलिस्ट पार्टी के सत्ता में आने का मोह भंग हो चुका था. 1952 में तो लोग जेपी को प्रधानमंत्री के रूप में देखा करते थे. बाबूजी का नाम शिक्षा मंत्री के रूप में प्रचारित किया जाता था.बैलगाड़ी व हाथी से किया था प्रचार1957 में बाबूजी ने चुनाव में बैलगाड़ी, हाथी व साइकिल से प्रचार किया था. उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बराती की तरह लोग उनके पीछे चलते थे. बेदौल के विजय राय ने प्रचार के लिए बाबूजी को अपना हाथी दिया था. बाबूजी से मिलने घर आये थे राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसादबाबूजी की तबीयत खराब होने की सूचना जब राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद जी को मिली, तो उन्होंने बेनीपुर आने का प्रोग्राम बना लिया. महामहिम के आगमन पर गांव में सभा का आयोजन किया गया था. राष्ट्रपति खुद घर आकर उन्हें सभास्थल पर ले गये थे. बाबूजी का अधूरा सपना पूरा करूंगा बेटा बाप के ऋण से तो उकृण नहीं हो सकता, पर भरसक कोशिश करता है मैं उनके सपनों को पूरा करूं. प्राध्यापक की सेवा से अवकाश लेने के बाद मैंने प्रतिज्ञा की कि बाबूजी की सभी पुस्तकों का पुन: प्रकाशन कराऊंगा. कुछ मैं कुछ वे, रविंद्र भारती, टयूलिप्स व गांधीनामा पहली बार प्रकाशित होकर बाजार में आयी. बाबूजी के अनुपलब्ध पुस्तकों में से 95 प्रतिशत पुस्तकों का पुन: प्रकाशन करा चूका हूं. हिंदी जगत की एक पहली घटना है कि किसी लेखक की चित्रावली, श्री रामवृक्ष बेनीपुरी चित्रों में प्रकाशित हुई. अगले तीन साल में बेनीपुरी श्रद्धांजलि, बेनीपुरी एक जीवनी व बेनीपुरी पत्रों में प्रकाशन की योजना है. वादे हैं वादों का क्या बाबूजी के जीवन का एक बड़ा अरमान था कि उनके पैत्रिक आवास के सामने उनका दाह संस्कार हो. ऐसा ही हुआ. बाबूजी का स्मारक भी हमलोगों ने बनवाया. लेकिन बागमती तटबंध के बीच में आने के कारण वह जमीदोज हो चुका है. 23 दिसंबर उनकी जन्मतिथि के अवसर पर राजनीतिज्ञों व अफसरों का आना होता है. स्मारक को सुरक्षित करने के लिए बड़े-बड़े वादे होते हैं. बांध के बाहर करीब दो एकड़ जमीन भी भारत सरकार के आदेश पर आवंटित किया गया. लेकिन क्षोभ की बात यह है कि कलम के जादूगर की स्मृतियां बागमती नदी की धाराओं में विलिन होती जा रही हैं. क्या कहते हैं साहित्यकार- डॉ अवधेश्वर अरुण : जाने माने साहित्यकार अवधेश्वर अरुण बेनीपुरी को लोक चेतना का साहित्यकार बताते हैं. उन्होंने कहा कि ग्रामीण जीवन को साहित्य में स्थान बेनीपुरी जी ने ही दिया. उनकी अंतिम इच्छा गांव में दाह संस्कार की थी जो उनके गांव प्रेम का प्रमाण है. साहित्य में लोक जीवन नूतन ऊर्जा का विधानकर्ता उनकी प्रतिभा इसका परिचायक है. – डॉ संजय पंकज : युवा साहित्यकार व बेनीपुर के गांव से काफी जुड़े रहे डॉ संजय पंकज ने कहा कि हिंदी भाषा साहित्य के गौरव पुरुष रामवृक्ष बेनीपुरी से नयी पीढ़ी भाषा का संस्कार, लेखन का कौशल व जीवन का सौंदर्य ग्रहण कर सकती है. गांव की मिट‍्टी से अपनी संवेदना को सिंचित करते हुए भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के सिपाही के रूप में फिर योद्धा के रूप में राष्ट्रीय परिदृश्य पर उभरकर आये. – डॉ पूनम सिन्हा : बेनीपुरी जी हिंदी साहित्य के सभी विद्याओं में जो अपने कलम से दिया, वह अप्रतिम है. उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र, संस्मरण के क्षेत्र के साथ बच्चों के लिए भी अमूल्य पुस्तकें लिखीं. उनकी नयी नारी स्त्री विमर्श की महत्वपूर्ण कृति है जो उस समय लिखी गयी थी जब स्त्री आंदोलन का स्वर नहीं उठा था.

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