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गिद्धौर दुर्गा मंदिर में चंदेल राजवंशियों के शासन काल से ही महालक्ष्मी पूजन की परंपरा

गिद्धौर के चंदेल राजवंशियों द्वारा उलाय नदी तट पर 1566 में स्थापित ऐतिहासिक दुर्गा मंदिर प्रांगण में दशहरा उपरांत धन, वैभव, यश कृति, ऐश्वर्य की देवी मां महालक्ष्मी की पूजा कराने की विशिष्ट परंपरा वर्षों पुरानी रही है.

कुमार सौरभ, गिद्धौर गिद्धौर के चंदेल राजवंशियों द्वारा उलाय नदी तट पर 1566 में स्थापित ऐतिहासिक दुर्गा मंदिर प्रांगण में दशहरा उपरांत धन, वैभव, यश कृति, ऐश्वर्य की देवी मां महालक्ष्मी की पूजा कराने की विशिष्ट परंपरा वर्षों पुरानी रही है. गिद्धौर राज रियासत में चंदेल राजवंश के समयकाल से ही दुर्गा पूजा के बाद आश्विन शुक्ल चतुर्दशी की पूर्णिमा तिथि की संध्या बेला में मां महालक्ष्मी की पूजा दुर्गा मंदिर परिसर में राज रियासत से जुड़े झारखंड राज्य के विद्वान पंडित स्व. भूषण मिश्र के द्वारा वर्षों पूर्व कराई जाती रही थी, जो वर्तमान समयकाल में उनके पारिवारिक सदस्यों सह रियासत के विद्वान पंडित महेश चरण जी महाराज व पन्ना लाल मिश्र व उनकी टीम के द्वारा गिद्धौर दुर्गा मंदिर में प्रतिमा स्थापना उपरांत प्राण प्रतिष्ठा कर शास्त्र संवत विधि से यहां महालक्ष्मी की यह पूजा संपूर्ण वैदिक रीति रिवाज अनुरूप वर्तमान समय में कराई जा रही है, जो आज भी अनवरत जारी है. बताते चले कि बंगाल राज्य में जिस तरह मां लक्खी पूजा कराई जाती है, ठीक उसी प्रकार गिद्धौर के चंदेल वंश के शासकों द्वारा अपने आम आवाम की सुख समृद्धि खुशहाली की कामना लिए प्राचीन व ऐतिहासिक मां दुर्गा मंदिर प्रांगण में यहां यह पूजा संपूर्ण विधि विधान व नियम निष्ठा से कराये जाने की परंपरा चली आ रही है. ऐसा माना जाता है कि इस ऐतिहासिक मंदिर में स्थापित मां महालक्ष्मी की प्रतिमा को जो भी श्रद्धालु भक्त सच्चे हृदय से दर्शन पूजन कर मां महालक्ष्मी की आराधना करता हैं, उनकी झोली मां धन धान्य से भर देती हैं. सोमवार की देर संध्या में पट खुलते ही कभी प्रांतीय स्तर पर होने वाले इस पूजा में मां महालक्ष्मी के पूजन दर्शन के लिये अंतरजिला भर के श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती थी, जो आज भी निरंतर जारी है. इस महालक्ष्मी पूजा को विधिवत संपन्न कराने हेतु वर्तमान समय में विद्वान पंडित महेश चरण जी महाराज व पन्ना लाल मिश्र की टीम द्वारा मंदिर परिसर में महालक्ष्मी की पूजा शास्त्र संवत व विधि पूर्वक सोमवार की देर संध्या होगी. वहीं अगले दिन मंगलवार की देर संध्या त्रिपुर सुंदरी मंदिर के निकट स्थित कंपनी बाग तालाब में शारदीय दुर्गा पूजा सह लक्ष्मी पूजा समिति सदस्यों की देखरेख में मां की प्रतिमा को ढोल नगाड़े की थाप पर संध्या आरती कर भाव विह्वल नेत्रों से विदाई दे उनकी प्रतिमा को विसर्जित किया जायेगा. इधर, लक्ष्मी पूजा को संपन्न कराने की विधिवत जिम्मेवारी ग्रामीण स्तर पर गठित शारदीय दुर्गा पूजा सह लक्ष्मी पूजा समिति सदस्यों की है. सोमवार से संचालित होने वाले इस लक्ष्मी पूजा को लेकर सारी विधि व्यवस्था समिति के सदस्यों की ओर से की जा रही है. इधर मां महालक्ष्मी के प्रतिमा को अंतिम रूप देने में बनारस के सुप्रसिद्ध मूर्तिकार सह गिद्धौर निवासी राजकुमार रावत व उनकी टीम लगी हुई है. वहीं इस पावन अवसर पर अंतरजिला भर के श्रद्धालुओं के मनोरंजन को लेकर काठ घोड़ा, तारामची डोरा डोरा, टॉवर झूला नाव झूला, दिव्य अमरनाथ गुफा, दर्शन, जलपरी, मिठाई की दुकान साज शृंगार की दुकानें काष्ठ बाजार यहां के मेले की शोभा बढ़ा रहें हैं.

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