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‘मम्मी भी वही-अम्मी भी वही’, महिला की मौत के बाद आपस में उलझे हिंदू-मुस्लिम बेटे, अनोखी है यह प्रेम कहानी

Bihar News: बिहार के लखीसराय जिले से प्रेम की एक अनोखी कहानी सामने आयी है. यह कहानी है एक ऐसी महिला की है जो मम्मी भी थी और अम्मी भी. मौत के बाद दाह संस्कार को लेकर महिला के एक ही कोख में पले महिला के मुस्लिम और हिंदू बेटे आपस में उलझ पड़े. पढ़िए पंडित जी और रायका खातून की अजब प्रेम की गजब कहानी.

रंजन पासवान, चानन (लखीसराय): यह कहानी फिल्मी नहीं है. सच है. हकीकत है. यथार्थ है. इसे सुनने के बाद दिल-दिमाग में बॉलीवुड की मशहूर फिल्म ‘जख्म’ की कहानी जीवंत हो उठी. साथ ही बॉलीवुड की एक अन्य फिल्म का नाम याद आया- ‘अजब प्रेम की गजब कहानी.’ पहले घटना जान लें.

दरअसल, मंगलवार को लखीसराय जिले के चानन प्रखंड व थाना क्षेत्र के जानकीडीह गांव में एक महिला की मृत्यु हो गयी. महिला के अंतिम संस्कार को लेकर विवाद पैदा हो गया. उस महिला की कोख से जन्मे दो बेटे आमने-सामने हो गये. एक बेटे का नाम है- मोहम्मद मोफिल, दूसरे का नाम है- बबलू झा. महिला का मुस्लिम बेटा मोफिल अपनी ‘अम्मी’ काे मुस्लिम रीति रिवाज के अनुसार सुपुर्द-ए-खाक करना चाह रहा था, तो महिला का हिंदू बेटा बबलू अपनी ‘मां’ का हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार दाह संस्कार.

अनोखी है रायका खातून और राजेंद्र झा की प्रेम कहानी

दिक्कत यह कि एक ही महिला, नाम दो- रायका खातून व रेखा देवी. मोफिल की ‘अम्मी’ भी वही और बबलू की ‘मां’ भी वही. महिला के अंतिम संस्कार को लेकर विवाद बढ़ा. विवाद को बढ़ता देख स्थानीय लोगों ने चानन पुलिस को इसकी सूचना दी. मौके पर चानन थानाध्यक्ष रूबीकांत कच्छप दल-बल के साथ पहुंचे व दोनों को समझाने का प्रयास किया. फिर एएसपी को सूचना दी गयी. एएसपी सैयद इमरान मसूद ने दोनों परिवारों को बुलाकर समझौता कराया. फिर मां के शव को बबलू झा दाह संस्कार के लिए ले गये. वहीं, मोफिल से कहा गया कि अगर वह मिट्टी के बाद की रस्म अदायगी करना चाहते हैं, तो मुस्लिम रीति रिवाज के अनुसार करें. बबलू झा को हिंदू रीति रिवाज के अनुसार क्रिया कर्म करने काे कहा. देर रात बबलू झा ने मां को मुखाग्नि दी.

क्या है ‘अम्मी’ और ‘मां’ की यह कहानी

कहानी 45-47 वर्ष पुरानी है. रायका खातून का निकाह एक मुस्लिम से हुआ था. इससे रायका को दो संतानें हुईं. एक मोहम्मद मोफिल, दूसरा मोहम्मद सोनेलाल. बाद के वर्षों में रायका को उसके शौहर ने छोड़ दिया. उस समय रायका के दोनों बेटों मोफिल व सोनेलाल की उम्र दो-तीन साल रही होगी. इसी बीच रायका की जिंदगी में राजेंद्र झा की इंट्री हुई. राजेंद्र झा ने रायका खातून से प्रेम-विवाह कर लिया. राजेंद्र झा ने रायका को रेखा देवी नाम दिया.

राजेंद्र झा यह जान रहे थे कि एक ब्राह्मण का मुस्लिम महिला से विवाह करना परिवार-समाज स्वीकार नहीं करेगा. ऐसे में रायका से शादी के बाद राजेंद्र झा अपने पैतृक घर सिंहचक नहीं गये. रायका से शादी कर रायका व उसके दोनों बेटों को लेकर राजेंद्र झा जानकीडीह गांव पहुंच गये. गांव वालों ने देखा कि गांव में एक पंडितजी आये हैं, तो सबने उन्हें बसाने का निर्णय लिया. कारण गांव में कोई पंडित-पुजारी नहीं थे. गांव के लोगों ने जानकीडीह में ही नहर के पास राजेंद्र झा को रहने के लिए झोंपड़ी बनवा दी. इसी में रायका व उसके दोनों बेटों के साथ राजेंद्र झा रहने लगे. पूजा-पाठ-यजमानी कर राजेंद्र झा परिवार चलाते रहे. धीरे-धीरे जानकीडीह व आसपास के गांवों में राजेंद्र झा की पहचान पंडित जी के रूप में हो गयी. फिर रायका से राजेंद्र झा उर्फ पंडित जी को एक बेटा बबलू व एक बेटी तेतरी हुई.

पत्नी रायका पर राजेंद्र झा ने नहीं थोपा अपना धर्म

पत्नी होने के बावजूद राजेंद्र झा ने रायका खातून पर अपना हिंदू धर्म नहीं थोपा. राजेंद्र झा खुद हिंदू पंडित के रूप में पूजा-पाठ कराते रहे और पत्नी रायका नमाज पढ़ती रहीं. राजेंद्र झा ने रायका को मुस्लिम धर्म मानने की पूरी आजादी दी. राजेंद्र चाहते, तो रायका व उसके दोनों बेटों का धर्म बदलवा सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. रायका भी राजेंद्र झा के धर्म के प्रति सम्मान रखती रहीं. सामाजिक विवाद से बचने के लिए राजेंद्र झा ने रायका का नाम बदलकर रेखा देवी रख दिया.

मुस्लिम बेटे को भी राजेंद्र झा ने प्यार से पाला

एक ही छत के नीचे रायका के पहले पति से हुए दोनों मुस्लिम बेटों मोफिल व सोनेलाल और राजेंद्र झा से हुई दोनों संतान बेटा बबलू व बेटी तेतरी यानी चारों बच्चों की परवरिश हुई. राजेंद्र झा से हुईं दोनों संतानों को रायका ने भी हिंदू बनाया. एक ओर गीता-रामायण, तो दूसरी ओर कुरान का पाठ होता रहा. आधा परिवार नमाज अदा करते रहे, तो आधा परिवार पूजा-पाठ. एक छत के नीचे एक साथ खाना, सोना, उठना-बैठना, खेलना होता था. चारों बच्चे बड़े हुए. मोफिल की शादी हुई. इसके बाद मोफिल व उसका भाई अलग घर बनाकर रहने लगे.

….इसलिए इच्छा हुई कि अम्मी की मिट्टी-मंजिल हो

प्रभात खबर से बातचीत में मोहम्मद मोफिल ने बताया कि हम दोनों भाइयों (मोहम्मद मोफिल और मोहम्मद सोनेलाल) का लालन-पालन पंडितजी (राजेंद्र झा) व अम्मी (रायका) ने किया. फिर पंडितजी और अम्मी से दो संतानें बबलू व तेतरी हुईं. फिर चारों भाई -बहन साथ रहने लगे. एक कमरे की झोंपड़ी थी. उसमें एक तरफ पंडितजी (राजेंद्र झा), बबलू व तेतरी हिंदू धर्म मानने वाले थे, दूसरी तरफ मैं, मेरा छोटा भाई सोनेलाल व अम्मी मुस्लिम धर्म मानने वाले. मोफिल ने बताया कि मेरी अम्मी ने ही बबलू व तेतरी को जन्म दिया है. इसलिए दोनों मेरे छोटे भाई-बहन हैं. कोई विवाद नहीं है. चूंकि अम्मी ने हमेशा मुस्लिम धर्म का पालन किया. इस कारण जब उनका इंतकाल हुआ, तो मेरी इच्छा हुई कि अम्मी की मिट्टी-मंजिल हो.

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