राजगीर. थाईलैंड के महाचुलालोंगकोर्नराजविद्यालय विश्वविद्यालय का एक प्रतिनिधिमंडल गुरुवार को नव नालंदा महाविहार सम विश्वविद्यालय पहुंचा. यहां उनका उत्साहपूर्वक स्वागत किया गया. यह प्रतिनिधिमंडल विपस्सना भावना अध्ययन कार्यक्रम के प्रशासकों, व्याख्याताओं और छात्रों से बना था. इसका नेतृत्व भिक्षु युत्थना सिरिवन, अध्यक्ष, बौद्ध अध्ययन विभाग ने किया. इस अवसर पर कुलपति प्रो. सिद्धार्थ सिंह ने कहा कि भारत और थाईलैंड केवल समुद्र से अलग हैं, परंतु सांस्कृतिक रूप से एक ही बोधिवृक्ष की छाया में पले हैं. उन्होंने सम्राट अशोक द्वारा सुवर्णभूमि (वर्तमान थाईलैंड) में भेजे गए भिक्षु सोन और उत्तरा की ऐतिहासिक परंपरा का स्मरण किया. कुलपति ने अपने विद्यार्थी जीवन में थाई विद्वानों के साथ अनुभव साझा करते हुए कहा कि महाविहार ने थाई बौद्ध मठ के निर्माण हेतु भूमि प्रदान की है. कुलपति ने कहा कि महाविहार में हाल ही में विपस्सना एवं योग विभाग की स्थापना की गई है. वहां प्रतिमाह दस दिवसीय विपस्सना साधना शिविर आयोजित होते हैं. उन्होंने थाई पूर्व छात्रों का नेटवर्क बनाने की पहल और वियतनाम बौद्ध विश्वविद्यालय द्वारा प्रस्तावित सभागार निर्माण की जानकारी दी. इस अवसर पर थाई प्रतिनिधियों ने नालंदा के आतिथ्य की प्रशंसा करते हुए भविष्य में और गहरे शैक्षणिक सहयोग की आशा जताई है. भिक्षु युत्थना सिरिवन ने कहा कि भारत बौद्ध धर्म की पवित्र भूमि है. यहां से करुणा, शांति और मैत्री का संदेश पूरी दुनिया में फैला है. उन्होंने कहा कि थाईलैंड और भारत का संबंध केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक भी है. भिक्षु सिरिवन ने नव नालंदा महाविहार द्वारा बौद्ध अध्ययन और अनुसंधान के क्षेत्र में किए जा रहे कार्यों की सराहना की और दोनों विश्वविद्यालयों के बीच सहयोग को और सशक्त बनाने की आवश्यकता पर बल दिया. उन्होंने भविष्य में छात्र और शिक्षक आदान-प्रदान कार्यक्रम का समर्थन भी किया. संवाद सत्र के दौरान प्रो. विश्वजीत कुमार ने भारत और थाईलैंड के प्राचीन शैक्षणिक-सांस्कृतिक संबंधों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वर्षों से अनेक थाई छात्र महाविहार से शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं. उन्होंने दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक व शैक्षणिक सहयोग को सशक्त करने की बात कही. थाई भाषा को पाठ्यक्रम में शामिल करने और सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम शुरू करने की जानकारी दी. उन्होंने यह भी बताया कि महाविहार ने पहली बार थाई बौद्ध ग्रंथों का हिंदी व संस्कृत में अनुवाद आरंभ किया है. कार्यक्रम का समापन महाचुलालोंगकोर्नराजविद्यालय विश्वविद्यालय पर आधारित एक वृत्तचित्र प्रदर्शन से हुआ. प्रतिनिधिमंडल में भिक्षु ख्रुसीरवाचिर अनिमित पैरोड, भिक्षु थाना सन्नारोंग, भिक्षु खाजोंसक टोंसली, जुतारत टोंगिंजन, कांदा पर्मसोम्बत, फिम्फया वेमुत्तेपुताविच, उडोम नगंबूनप्लोड और कनलयनी सर्मसिरिविवात शामिल थीं. महाविहार की ओर से डॉ. सुरेश कुमार, डॉ. अशोक कुमार एवं अन्य उपस्थित रहे.
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