बिहारशरीफ. जिले के सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार मुक्त अभियान की कोई ठोस व्यवस्था अब दिखाई नहीं देती. पहले जहां कार्यालयों और सार्वजनिक स्थानों पर शिकायत पेटी और भ्रष्टाचार निरोधक दस्ता के नंबर मौजूद रहते थे, वहीं अब यह पूरी व्यवस्था लगभग गायब हो गई है. इसका नतीजा यह है कि आमलोगों को छोटी-बड़ी योजनाओं का लाभ लेने के लिए चक्कर काटने और जेब ढीली करने पर मजबूर होना पड़ रहा है. लोगों का कहना है कि आजकल सरकारी दफ्तरों में लगभग हर काम के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पैसे की मांग होती है. चाहे जीविका समूह से जुड़ना हो, श्रमिक कार्ड बनवाना, प्रमाणपत्र लेना हो या जमीन, वाहन से जुड़े दस्तावेज दुरुस्त करना अधिकांश जगह एजेंट सक्रिय रहते हैं. कुछ लोगाें का आरोप है कि सरकारी कर्मचारी सीधे पैसे नहीं लेते, बल्कि निजी एजेंटों या चिन्हित स्थानीय कुछ लोगों के जरिए लेन-देन कराते हैं. जनता का कहना है कि इसकी सबसे बड़ी वजह वरीय अधिकारियों तक आम लोगों की सीधी पहुंच न होना है. जनता दरबार तो होता है, लेकिन उसमें लोग छोटी-मोटी समस्याओं के लिए जाने से हिचकते हैं. नतीजतन, 100 से 200 रुपये खर्च कर काम निकलवाना ही लोग बेहतर समझते हैं, जो धीरे-धीरे सिस्टम की अंग बनता जा रहा है. करीब दो दशक पहले तक प्रखंड, अनुमंडल और जिला स्तर के दफ्तरों में शिकायत पेटी और हेल्पलाइन नंबर मौजूद रहते थे. उस समय लोग गुप्त रूप से अपनी शिकायतें दर्ज कर सकते थे. तत्कालीन डीएम संजय अग्रवाल के समय यह व्यवस्था काफी पारदर्शी और सुचारु रूप से चलती थी. लेकिन धीरे-धीरे यह व्यवस्था खत्म हो गई और इसके साथ ही भ्रष्टाचार का ग्राफ लगातार बढ़ता गया. आज स्थिति यह है कि आमलोगों के बीच यह धारणा बन चुकी है कि बिना घूस दिए सरकारी कार्यालयों में काम निकलना मुश्किल है. कई लोग जनप्रतिनिधियों की कार्यशैली पर भी सवाल उठाने लगे हैं. लोगाें का मांग हैं कि जिला भ्रष्टाचार निरोधक दस्ता का नंबर सार्वजनिक स्थलों पर अंकित कराया जाये और साथ में वरीय अधिकारी तक संवाद पहुंचाने के लिए कार्यालयों में शिकायत पेटी की व्यवस्था होनी चाहिए.
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