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सदियों से सूर्य की उपासना का प्रमुख केंद्र है देव

देश के कोने-कोने से पहुंचते हैं लाखों श्रद्धालु भारत का इकलौता पश्चिमाभिमुख सूर्य मंदिर है देव औरंगाबाद नगर : जिले का देव सूर्य मंदिर सूर्योपासना के लिए सदियों से आस्था का केंद्र बना हुआ है. ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टिकोण से विश्व प्रसिद्ध त्रेतायुगीन इस मंदिर परिसर में प्रति वर्ष चैत और कार्तिक माह में महापर्व […]

देश के कोने-कोने से पहुंचते हैं लाखों श्रद्धालु

भारत का इकलौता पश्चिमाभिमुख सूर्य मंदिर है देव
औरंगाबाद नगर : जिले का देव सूर्य मंदिर सूर्योपासना के लिए सदियों से आस्था का केंद्र बना हुआ है. ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टिकोण से विश्व प्रसिद्ध त्रेतायुगीन इस मंदिर परिसर में प्रति वर्ष चैत और कार्तिक माह में महापर्व छठ व्रत करने वालों की भीड़ उमड़ पड़ती है. पश्चिमाभिमुख देव सूर्य मंदिर की अभूतपूर्व स्थापत्य कला इसकी कलात्मक भव्यता दर्शाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसका निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने स्वयं अपने हाथों से किया. काले और भूरे पत्थरों से निर्मित मंदिर की बनावट ओड़िसा के पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर से मिलती-जुलती है. मंदिर के निर्माणकाल के संबंध में मंदिर के बाहर लगे एक शिलालेख के मुताबिक 12 लाख 16 हजार वर्ष त्रेतायुग के बीत जाने के बाद इला पुत्र ऐल ने देव सूर्य मंदिर का निर्माण प्रारंभ करवाया था.
शिलालेख से पता चलता है कि इस पौराणिक मंदिर का निर्माण काल एक लाख 50 हजार वर्ष से ज्यादा हो गया है. देव मंदिर में सात रथों से सूर्य की उत्कीर्ण प्रस्तर मूर्तियां अपने तीनों रूपों उदयाचल, मध्याचल और अस्ताचल सूर्य के रूप में विद्यमान हैं. पूरे भारत में सूर्य देव का यही एक मंदिर है, जो पूर्वाभिमुख न होकर पश्चिमाभिमुख है. इस मंदिर परिसर में दर्जनों प्रतिमाएं हैं. मंदिर में शिव की जांघ पर बैठी पार्वती की दुर्लभ प्रतिमा है. करीब एक सौ फीट ऊंचा यह सूर्य मंदिर स्थापत्य और वास्तुकला का अद्भूत उदाहरण है.
पत्थरों को जोड़ कर बना है मंदिर : बिना सीमेंट के प्रयोग किये आयताकार, वर्गाकार, गोलाकार, त्रिभुजाकार आदि कई रूपों और आकारों में काटे गये पत्थरों को जोड़ कर बनाया गया यह मंदिर बेहद ही आकर्षक है. देव सूर्य मंदिर दो भागों में बना है. पहला गर्भ गृह, जिसके ऊपर कमल के आकार का शिखर है और शिखर के ऊपर सोने का कलश है. दूसरा भाग मुखमंडप है, जिसके ऊपर पिरामिडनुमा छत और छत को सहारा देने के लिए नक्काशीदार पत्थरों का बना स्तंभ है. तमाम हिंदू मंदिरों के विपरीत पश्चिमाभिमुख देव सूर्य मंदिर ‘देवार्क’ माना जाता है जो श्रद्धालुओं के लिए सबसे ज्यादा फलदायी व मनोकामनाएं पूर्ण करनेवाला है.
प्रचलित हैं कई जनश्रुतियां : जनश्रुतियों के आधार पर इस मंदिर के निर्माण के संबंध में कई किंवदतियां प्रसिद्ध हैं, जिससे मंदिर के अति प्राचीन होने का स्पष्ट पता तो चलता है, लेकिन इसके निर्माण के संबंध में अब भी भ्रामक स्थिति बनी हुई है. सर्वाधिक प्रचारित जनश्रुति के अनुसार ऐल एक राजा थे, जो श्वेत कुष्ठ रोग से पीड़ित थे.
एक बार शिकार करने देव के वनप्रांत में पहुंचने के बाद राह भटक गये. राह भटकते भूखे-प्यासे राजा को एक छोटा सा सरोवर दिखाई पड़ा, जिसके किनारे वे पानी पीने गये और अंजलि में भर कर पानी पिया. पानी पीने के क्रम में वह यह देख कर घोर आश्चर्य में पड़ गये कि उनके शरीर के जिन जगहों पर पानी का स्पर्श हुआ,
उन जगहों के श्वेत कुष्ठ के दाग चले गये.
शरीर में आश्चर्यजनक परिवर्तन देख प्रसन्नचित्त राजा ऐल ने यहां एक मंदिर और सूर्य कुंड का निर्माण करवाया था. मंदिर के पुजारी सच्चिदानंद पाठक बताते हैं कि भगवान भास्कर का यह मंदिर सदियों से लोगों को मनोवांछित फल देने वाला पवित्र धर्मस्थल है. ऐसे यहां सालभर देश के विभिन्न जगहों से लोग आकर मन्नत मांगते हैं और सूर्य देव द्वारा इसकी पूर्ति होने पर अर्घ्य देने आते हैं, परंतु छठ पर्व के दौरान यहां लाखों लोग जुटते हैं.

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