केदारनाथ में फंसे श्रद्धालुओं को बचाते हुए 20 जवानों ने अपनी जान कुर्बान कर दी. इन शहीदों को कोटि–कोटि नमन. विभिन्न सैन्यबलों के जवानों ने जिस तरह अपनी जान जोखिम में डाल कर इस विपदा में फंसे लोगों की मदद की, वह काबिल–ए–तारीफ होने के साथ–साथ हर दिल में एक रोमांच भी पैदा करती है.
हम जैसे सैकड़ों–हजारों लोगों के दिलों में एक भावना जगाती है कि काश! हम भी अपनी घर–गृहस्थी से निकल कर इस तरह का गौरव प्राप्त कर पाते! न केवल शहीद जवान, बल्कि जो भी इस मुहिम में लगे रहे, उन्होंने केवल अपनी डय़ूटी ही नहीं निभायी, बल्कि इनसानियत की चरम सीमा तक लोगों की मदद की. जहां से लोग सिर पर पैर रख कर भाग रहे थे, वहीं ये देवदूत मानो सिर पर कफन बांध कर बचाव कार्यो में लगे रहे. निश्चय ही इनका यह काम किसी जंग जीतने से कम श्रेयष्कर नहीं था. ये जांबाज हमारे ही घर–आंगनों से निकले जवान हैं. शहीदों की शहादत तब कई गुना और बढ़ जाती है, जब उनके परिजन यह कहते हैं कि उन्हें अपने लाडले की शहादत पर गर्व है. धन्य हैं माटी के ऐसे लाल!
।। पूनम त्रिवेदी ।।
(मटवारी, हजारीबाग)