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JDU बोली, 2015 के चुनावी नतीजों के आधार पर हो लोकसभा चुनाव में सीटों का बंटवारा

नयी दिल्ली : अगले लोकसभा चुनावों की खातिर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की अगुवा भाजपा सहित बिहार की चार सहयोगी पार्टियों में सीट बंटवारे के लिए जदयू 2015 के राज्य विधानसभा चुनाव के नतीजों को आधार बनाना चाहता है. जदयू ने विधानसभा चुनाव में भाजपा से कहीं बेहतर प्रदर्शन किया था. भाजपा और उसकी दो […]

नयी दिल्ली : अगले लोकसभा चुनावों की खातिर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की अगुवा भाजपा सहित बिहार की चार सहयोगी पार्टियों में सीट बंटवारे के लिए जदयू 2015 के राज्य विधानसभा चुनाव के नतीजों को आधार बनाना चाहता है. जदयू ने विधानसभा चुनाव में भाजपा से कहीं बेहतर प्रदर्शन किया था. भाजपा और उसकी दो सहयोगी पार्टियों राम विलास पासवान की अगुवाई वाली लोजपा और उपेंद्र कुशवाहा की अगुवाई वाली रालोसपा की ओर से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई वाले जदयू की मांग पर सहमति के आसार न के बराबर हैं. लेकिन, जदयू नेताओं का दावा है कि 2015 का विधानसभा चुनाव राज्य में सबसे ताजा शक्ति परीक्षण था और आम चुनावों के लिए सीट बंटवारे में इसके नतीजों की अनदेखी नहीं की जा सकती.

राजग के साझेदारों में सीट बंटवारे को लेकर बातचीत अभी शुरू नहीं हुई है, लेकिन जदयू के नेताओं ने नाम का खुलासा नहीं करने की शर्त पर बताया कि भाजपा को यह सुनिश्चित करने के लिए आगे आना चाहिए कि सीट बंटवारे पर फैसला जल्द हो ताकि चुनावों के वक्त कोई गंभीर मतभेद पैदा न हो. साल 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में जदयू को राज्य की 243 सीटों में से 71 सीटें हासिल हुई थीं, जबकि भाजपा को 53 और लोजपा-रालोसपा को दो-दो सीटें मिली थीं.

जदयू उस वक्त राजद एवं कांग्रेस का सहयोगी था, लेकिन पिछले साल वह इन दोनों पार्टियों से नाता तोड़ कर राजग में शामिल हो गया और राज्य में भाजपा के साथ सरकार बना ली. भाजपा के एक नेता ने जदयू की दलील को ‘अवास्तविक’ करार देते हुए कहा कि चुनावों से पहले विभिन्न पार्टियां ऐसी ‘चाल’ चलती हैं. उन्होंने दावा किया कि 2015 में लालू प्रसाद की अगुवाई वाले राजद से गठबंधन के कारण जदयू को फायदा हुआ था और नीतीश की पार्टी की असल हैसियत का अंदाजा 2014 के लोकसभा चुनाव से लगाया जा सकता है जब वह अकेले दम पर लड़ी थी और उसे 40 में से महज दो सीटों पर जीत मिली थी. ज्यादातर सीटों पर उसके उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गयी थी.

साल 2014 के आम चुनावों में भाजपा को बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से 22 पर जीत मिली थी जबकि इसकी सहयोगी लोजपा और रालोसपा को क्रमश : छह और तीन सीटें मिली थीं. जदयू 2013 तक भाजपा का सहयोगी था. उस वक्त वह राज्य में निर्विवाद रूप से वरिष्ठ गठबंधन साझेदार था और लोकसभा एवं विधानसभा चुनावों में वह हमेशा ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ता था. लोकसभा चुनावों में जदयू 25 और भाजपा 15 सीटों पर चुनाव लड़ती थी.

बहरहाल, 2014 में भाजपा की जोरदार जीत ने समीकरण बदल दिये हैं और राजग में अन्य पार्टियों के प्रवेश का मतलब है कि पुराने समीकरण अब प्रासंगिक नहीं रह गये. सीट बंटवारे को लेकर राजग के साझेदारों में अभी बातचीत शुरू नहीं हुई है, लेकिन जदयू ने मोलभाव शुरू कर दिया है. जदयू के नेताओं ने हाल में आयोजित योग दिवस समारोहों में हिस्सा नहीं लिया. पार्टी ने कहा कि वह इस साल के अंत में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में अपने उम्मीदवार उतारेगी. जदयू ने अगले महीने दिल्ली में अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई है जिसमें कई मुद्दों पर पार्टी अपना रुख साफ करेगी.

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