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सेंसेक्स की तेज बढ़त: अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक संकेत

शेयर बाजार की हलचल अर्थव्यवस्था और निवेश का एक महत्वपूर्ण सूचक होती है. इस वर्ष आर्थिकी के कुछ मोरचों पर निराशाजनक स्थिति रहने के बावजूद सेंसेक्स ने कई बार नयी ऊंचाई तय की है और फिलहाल 32 हजार के ऊपर बना हुआ है. इस तेजी के विभिन्न आयामों पर नजर डालते हुए प्रस्तुत है आज […]

शेयर बाजार की हलचल अर्थव्यवस्था और निवेश का एक महत्वपूर्ण सूचक होती है. इस वर्ष आर्थिकी के कुछ मोरचों पर निराशाजनक स्थिति रहने के बावजूद सेंसेक्स ने कई बार नयी ऊंचाई तय की है और फिलहाल 32 हजार के ऊपर बना हुआ है. इस तेजी के विभिन्न आयामों पर नजर डालते हुए प्रस्तुत है आज का इन-दिनों…

भारतीय निवेशकों के निवेश से आया सेंसेक्स में उछाल
मौजूद शेयर मार्केट में आयी तेजी का सबसे महत्वपूर्ण पहलू इस वक्त हमारे भारतीय निवेशक हैं. कई सालों के बाद भारतीय निवेशक अब विदेशी निवेशकों पर भारी पड़ रहे हैं. ऐसा नहीं है कि विदेशी निवेशक आ नहीं रहे हैं. लेकिन, भारतीय निवेशक जिस तरह से पूंजी निवेश कर रहे हैं, वह 1992-93 के बाद पहली बार देखने को मिल रहा है. पिछले कई महीनों से यह देखने में आ रहा है कि विदेशी निवेशकों के मुकाबले भारतीय निवेशक बाजार में दोगुनी पूंजी का निवेश कर रहे हैं. स्टॉक मार्केट के बूम में एक खास भूमिका ‘डीआइवाय’ (डू इट योरसेल्फ) की होती है. इस ऐतबार से देखें, तो भारतीय निवेशक बहुत ही मेच्योर हो गये हैं और पहले के मुकाबले निवेश करने से जरा भी नहीं हिचक रहे हैं. पहले क्या होता था, कि अगर दुनिया के किसी देश में कोई बड़ी घटना घटने से मार्केट को झटका लगता था, तो हमारे देशी निवेशक डर के मारे भाग जाते थे. लेकिन, अब ऐसा नहीं है. मौजूदा हालत में अगर दुनिया में कहीं भी कोई बड़ी घटना घट जाये, मसलन उत्तरी कोरिया में मिसाइल परीक्षण हो जाये, डोनाल्ड ट्रंप का चुनाव हो जाये, या दुनिया के मार्केट में उथल-पुथल हो जाये, भारतीय निवेशकों का मानना है कि यहां बाजार में तेजी बनी की बनी रहेगी, क्योंकि वे भागनेवाले नहीं हैं. अब सवाल है कि भारतीय निवेशकों को इतना भरोसा क्याें है? जवाब है कि उन्हें साफ दिख रहा है कि उन्होंने जो पैसा लगाया है, वह तेजी से बढ़ रहा है. सेंसेक्स उछाल में यही इस वक्त महत्वपूर्ण बात है.

एक लॉजिक तो यह भी है कि जब सेंसेक्स 30 हजार पर पहुंचता है, तो निवेशकों को भाग जाना चाहिए कि उन्होंने तो अब बहुत कमा लिया है. लेकिन, बीते 18 महीनों से मैं देख रहा हूं कि भारतीय निवेशकों ने भागे बगैर मार्केट को मजबूत बनाये रखा है. आज शेयर मार्केट में तेजी हमारे निवेशकों की परिपक्वता के कारण है, म्युचुअल फंड इंडस्ट्री की वजह से है और प्रोफेशनल फिनांसियल मैनेजरों की वजह से है. दूसरी बात यह है कि हमारे देश की अर्थव्यवस्था में अभी उतनी सहनशीलता नहीं है, कि उससे मार्केट इतना ऊंचा रहे. मार्केट तीन चीजों से चलता है- लिक्विडिटी, इवेंट और फॉरवर्ड अर्निंग. लिक्विडिटी यानी मार्केट में कितना पैसा आ रहा है. इवेंट यानी कोई बड़ी घटना, जैसे- डोनाल्ड ट्रंप का अमेरिकी राष्ट्रपति बनना. और तीसरा फॉरवर्ड अर्निंग यानी कंपनियां आज जो कमा रही हैं, उससे मार्केट नहीं चलता, बल्कि 12 महीने बाद कंपनियां कैसे कमा रही होंगी, इसके हिसाब से चलता है. इन तीनों तथ्यों के ऐतबार से देखा जाये, तो भारतीय निवेशकों ने अपनी पूरी परिपक्वता का परिचय दिया है और निवेश से पीछे नहीं हटे हैं. यहां तक कि दुनिया की तमाम बड़ी नकारात्मक घटनाओं के बावजूद डिमोनेटाइजशेन को भी इन्होंने झेला. यही वजह है कि आज मार्केट अपनी तेजी पर है.

सेंसेक्स में बूम का अर्थ यह कतई नहीं है कि अर्थव्यवस्था में वृद्धि हो रही है, बल्कि सही मायने में अर्थव्यवस्था की स्थिति उतनी ठीक नहीं है, जितना कि होनी चाहिए. औद्योगिक उत्पादन गिरा हुआ है, निर्माण क्षेत्र ठप्प पड़ा हुआ है, कृषि क्षेत्र में तो संकट चल ही रही है. कंपनियों की कमाई भी थोड़ी-बहुत स्थिर है. लेकिन, पूरे तौर पर मार्केट के ऊंचा रहने का जो सेंटीमेंट है, वह जबरदस्त तरीके से बरकरार है कि जल्दी ही हम 30 हजार को पार करके एक नयी ऊंचाई पर पहुंच जायेंगे. यह सेंटीमेंट निवेशकों को पीछे हटने नहीं देता है, यही वजह है कि मार्केट में वे ठहरे हुए हैं और निवेश हो रहा है. विदेशी निवेशकों पर से निर्भरता कम हुई है. यह हमारे स्टॉक मार्केट और अर्थव्यवस्था दोनों के लिए अच्छी बात है.

बीते 1 जनवरी, 2017 से 15 जुलाई, 2017 तक भारतीय स्टॉक मार्केट ने करीब 25 प्रतिशत का रिटर्न दिया है. इसमें 20 प्रतिशत सीधे तौर पर मार्केट ने वृद्धि की है और पांच प्रतिशत रुपये के मूल्यन की वजह से हुआ है. इस तेजी से (25 प्रतिशत रिटर्न) दुनिया का कोई भी मार्केट नहीं बढ़ा है. इसकी एक ही वजह है कि निवेशक जम कर निवेश कर रहे हैं और मार्केट में पैसा आ रहा है. विदेशी निवेश से दोगुना देशी निवेश बढ़ा है. बीएसइ जब 30 हजार पर पहुंचा, तब लोग कहने लगे कि अब बस, बहुत हो गया. लेकिन, वह 31-32 हजार से भी ऊपर बढ़ने लगा. अभी फिलहाल यह देखा जा रहा है कि निफ्टी भी 10 हजार पार कर जायेगा, जो वर्तमान में 9,800 से ज्यादा है. यह मार्केट का अगला पड़ाव है और उम्मीद है इस सप्ताह पार कर जाना चाहिए. अगर 1.60 प्वॉइंट निफ्टी बढ़ता है, तो सेंसेक्स 400-500 प्वाॅइंट बढ़ना चाहिए और तब सेंसेक्स 32 हजार के आंकड़े को पार कर जायेगा. मेरा मानना है कि उसके बाद मामला थोड़ा डगमगायेगा. हालांकि, मार्केट विशेषज्ञों का मानना है कि आगामी दीवाली तक निफ्टी 12 हजार के आंकड़े को पार कर जायेगा. ऐसे में, अगर निफ्टी 12 हजार पर पहुंचता है, तो सेंसेक्स 34 हजार को पार कर जायेगा. यह विशेषज्ञों का अनुमान है, मेरा नहीं. अगर ऐसा हुआ, तो यह मार्केट में बहुत बड़ी उछाल होगी.
 अक्तूबर 2008 में जब दुनिया भर में मंदी आयी थी, तब भारतीय सेंसेक्स 8,032 अंक पर था. आज यह 32 हजार को छूने जा रहा है, यानी चार गुना बढ़ गया है. जिन लोगों ने 2008 में अपने पैसे निवेश किये, उन लोगों ने आज इतना पैसा कमा लिया है कि आप उसकी कल्पना नहीं कर सकते. इसलिए भी भारतीय निवेश बढ़ रहा है और मार्केट में तेजी है और पैसा आ रहा है. विदेशी निवेशकों के फेयर वेदर की अवधारणा (यानी ये कब आयेंगे कब चले जायेंगे, इसका पता नहीं होता) से बिल्कुल उलट भारतीय निवेशकों के टिके रहने का परिणाम है कि मार्केट तेजी की ओर है. अगर भारतीय निवेशकों की परिपक्वता ऐसी ही बनी रही, तो आगामी दिनों में इसका लाभ अर्थव्यवस्था को भी मिल सकता है.
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)
सेंसेक्स में रिकॉर्ड तेजी कम कर सकता है रिजर्व बैंक अपनी ब्याज दर
इस महीने की 15 तारीख को सेंसेक्स में रिकॉर्ड तेजी देखी गयी और वह 232 अंक ऊपर चढ़ कर 32,000 पर बंद हुआ. निफ्टी भी नयी ऊंचाईयाें को छूती हुई 9,892 पर बंद हुई और मुद्रा स्फीति में रिकॉर्ड कमी दर्ज हुई. इसे देखते हुए रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में कटौती की संभावना जतायी जा रही है. जून में खुदरा मुद्रा स्फीति के घट कर 1.54 प्रतिशत के एेतिहािसक निचले स्तर पर पहुंचने और औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आइआइपी) द्वारा मापी गयी औद्योगकि वृद्धि में मई महीने में 1.7 प्रतिशत की गिरावट दर्ज किये जाने के कारण यह संभावना बढ़ती जा रही है कि आगामी अगस्त महीने में होनेवाली मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक में रिजर्व बैंक ब्याज दराें में कटौती कर सकता है.

15 पैसे मजबूत हुआ रुपया
13 जुलाई को डॉलर के मुकाबले रुपये में 15 पैसे की मजबूती देखी गयी. इस मजबूती के कारण प्रति डॉलर के मुकाबले रुपये का मूल्य 64.39 पर पहुंच गया. रुपये में आयी इस मजबूती को विदेशी पूंजी के ऊपरी दिशा में बने रहने के कारण रिकॉर्ड स्तर के स्टॉक का भी सहारा मिला है. दूसरे, निर्यातकों और बैंकाें द्वारा डॉलर की बिकवाली में भी तेजी आयी है. इसके अतिरिक्त, विदेशी मुद्रा के खिलाफ ग्रीनबैक के मूक प्रदर्शन ने भी रुपये को तेजी दी है. वहीं व्यापारियों का मानना है कि सेंसेक्स के रिकाॅर्ड 32,000 अंक को छूने के कारण भी रुपये को यह मजबूती मिली है. इतना ही नहीं, 12 जुलाई को निफ्टी भी नयी ऊंचाईयों पर पहुंचा जिससे रुपया अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले पांच पैसा मजबूत होकर 64.54 पर बंद हुआ.
जीएसटी भी है एक कारण
सेंसेक्स में रिकॉर्ड तेजी का एक कारण वस्तु एवं सेवा कर का 30 जून की आधी रात से लागू होना भी है. ऐसा माना जा रहा है कि इस अप्रत्यक्ष कर सुधार से घरेलू और विदेशी निवेशकों के मन में लंबी अवधि के लिए सकारात्मकता आयी है. साथ ही बाजार का माहौल भी उत्साही हुआ है और यहां तरलता आयी है.
स्थायी नहीं है सेंसेक्स में उछाल
बाजार में आयी तेजी को देखते हुए ब्रोकर से स्टॉक पिकर बने रामदेव अग्रवाल का अनुमान है कि यह उछाल महज कुछ दिनों का है और इसमें गिरावट आयेगी. गिरावट के बाद पुन: यह अपनी गति पकड़ेगा. उनका यह भी कहना है कि यह गिरावट तब आयेगी, जब कोई इसका अनुमान भी नहीं लगा रहा होगा.
सेंसेक्स 32,000 के पार तो महंगाई न्यूनतम 1.54 प्रतिशत पर
पहली बार सेंसेक्स रिकॉर्ड 32,000 और एनएसइ निफ्टी 9,879 के स्तर पर पहुंच गया. गौर करनेवाली बात है कि इससे पहले जून माह में उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति न्यूनतम 1.54 प्रतिशत पहुंच गयी थी. दरअसल, भारत ने जनवरी, 2012 से खुदरा महंगाई आंकड़ा जारी करने की शुरुआत की है. पिछले पांच वर्षों में पहली बार गत जून माह में शहरी और ग्रामीण उपभोक्ताओं के लिए जारी कंज्यूमर प्राइस इन्फ्लेशन (सीपीआइ) इंडेक्स के आंकड़े न्यूनतम स्तर पर दर्ज किये गये. रिटेल फूड प्राइस जून माह में 1.54 प्रतिशत पर पहुंचा. इससे पहले मई माह में यह आंकड़ा 1.05 प्रतिशत पर दर्ज किया गया था. औद्योगिक उत्पादन वृद्धि दर 1.7 प्रतिशत रही, जिससे इस बात की पूरी संभावना बन गयी है कि अगले माह आरबीआइ की मौद्रिक नीति समिति अपनी बैठक में दरों में कटौती की घोषणा कर सकती है.
क्या वाकई अपने ऊंचाई पर है बीएसइ सेंसेक्स
निश्चित ही परंपरागत मानकों पर सेंसेक्स रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचता नजर आ रहा है, लेकिन शिलर्स स्केल इस बात का संकेत कर रहा है कि सेंसेक्स की ऊंचाई के लिए अब भी भरपूर संभावनाएं मौजूद हैं. भारतीय बाजार जहां एक ओर कीर्तिमान बनाने की ओर बढ़ रहा है, वहीं कई विशेषज्ञों के मन में तमाम आशंकाएं हैं. दरअसल, बाजार का मूल्यांकन दीर्घअवधि के प्रवृत्ति को परखने के बजाय अल्पअवधि की आय के अनुमान पर आधारित होते हैं.
केप संकेतक का क्या है मूल्यांकन
केप संकेतक यानी साइक्लिकली एडजस्टेड प्राइस अर्निंग मल्टीपल इंडीकेटर दीर्घावधि की आय का मूल्यांकन करता है. नोबेल पुरस्कार विजेता रॉबर्ट शिलर द्वारा विकसित किया गया यह संकेतक बाजारों के मूल्यांकन के लिए वैश्विक स्तर पर इस्तेमाल किया जाता है. भारतीय बाजार के संदर्भ केप इंटीकेटर यह दावा करता है कि यहां चरम स्थिति पर पहुंचने के लिए अभी काफी संभावनाएं हैं, हालांकि हाल के कुछ महीनों में इस प्रक्रिया ने गति पकड़ी है. वर्ष 2000 में आयी मशहूर पुस्तक ‘इरेशनल एक्जुबेरेंस’ में शिलर ने केप इंडीकेटर का जिक्र किया था.
सर्वाधिक था वर्ष 2010 में भारतीय बाजार का अधिमूल्यांकन
भारत के लिए केप इंडीकेटर के आंकड़ों को देखें, तो भारतीय बाजार के मौजूदा अधिमूल्यांकन (ओवरवैल्यूड) की अपेक्षा साल 2010 में इससे कहीं अधिक था. केप इंडीकेटर व्यापार चक्र के प्रभावों को कम करने के लिए 10 वर्ष के आधार पर आय को मुद्रास्फीति से समायोजित करता है. जबकि सामान्य ट्रेलिंग प्राइस अर्निंग्स मल्टीपल के व्यापार चक्र से प्रभावित होने की आशंका रहती है. ऐसे में मार्केट बूम और मार्केट गिरने की स्थिति का सही आंकलन नहीं हो पाता, यानी बाजार की सही तसवीर सामने नहीं आ पाती. अप्रैल तक उपलब्ध मुद्रास्फीति आंकड़ों के आधार पर केप इंडीकेटर हाल के महीनों में बढ़ता दिख रहा है.

संदीप बामजई
वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार

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