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Tawang Clash: 60 साल बाद भी LAC पर नहीं थम रहा विवाद? जानिए भारत के पास चीन को लेकर क्या है विशेष रणनीति!

Tawang Clash: तवांग सेक्टर में एलएसी के पास 9 दिसंबर को हुई झड़प को लेकर भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने संसद को बताया कि चीनी सैनिक सीमा में घुसपैठ की कोशिश कर रहे थे. भारतीय सैनिकों ने उसे रोका, जिसपर दोनों के बीच हाथापई हुई.

Tawang Clash: भारत और चीनी सैनिकों के बीच अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में एलएसी के पास 9 दिसंबर को एक बार फिर झड़प हुई है. भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने संसद को बताया कि चीनी सैनिक सीमा में घुसपैठ की कोशिश कर रहे थे. भारतीय सैनिकों ने उसे रोका, जिसपर दोनों के बीच हाथापई हुई. 1962 में भारत-चीन युद्ध विराम के बाद यह छठवीं बार है, जब दोनों देश के सैनिकों के बीच हिंसक टकराव हुआ है. बताते चलें कि 30 महीने पहले भी लद्दाख के गलवान में हिंसक झड़प हुई थी.

क्यों याद आ रहा है 60 साल पुराना युद्ध?

वर्ष 1962 के चीन-भारत युद्ध में रक्षा मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 4,126 सैनिक मारे गए. वहीं, कई जवान घायल हुए या फिर कार्रवाई में लापता हुए थे. जबकि, 3,968 चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) द्वारा बंदी बना लिए गए. तवांग के आसपास के क्षेत्र में भारतीय सैनिकों और पीएलए सैनिकों के बीच 9 दिसंबर की झड़प को 1962 में अरुणाचल प्रदेश (तब नॉर्थ-ईस्टर्न फ्रंटियर एजेंसी या एनईएफए के रूप में जाना जाता था) की स्थिति की याद दिलाता है. 20 अक्टूबर, 1962 से शुरू होकर, चीनी PLA 500 मील की दूरी पर तवांग और वालोंग दो अक्षों के साथ आगे बढ़ी और तीन सप्ताह में भयंकर लेकिन छिटपुट भारतीय प्रतिरोध पर काबू पा लिया. 21 नवंबर को चीन ने युद्धविराम की घोषणा की और पीएलए के सैनिक मैकमोहन रेखा से 20 किमी पीछे हट गए थे. भारतीय सेना ने अक्सर आखिरी आदमी और आखिरी गोली तक साहस और दृढ़ता के साथ लड़ाई लड़ी थी. लेकिन, उन्हें राजनीतिक शालीनता, दोषपूर्ण बुद्धि और सैन्य अक्षमता और कायरता के घातक संयोजन से निराश होना पड़ा.

1962 की पराजय की पुनरावृत्ति नहीं होगी?

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, साठ साल बाद हम इस तथ्य से आश्वस्त हो सकते हैं कि भारत और उसके सशस्त्र बलों ने एक लंबा सफर तय किया है और 1962 की पराजय की पुनरावृत्ति नहीं होगी. हालांकि, हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि इस अंतराल में चीन ने अभूतपूर्व आर्थिक, तकनीकी और सैन्य विकास देखा है तथा वैश्विक ध्रुव-स्थिति के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ प्रतिस्पर्धा की है. आज, चीनी खतरा हमारे सिर पर मंडरा रहा है और वास्तव में युद्ध में गए बिना उन्होंने 50,000-60,000 अतिरिक्त भारतीय सैनिकों की जवाबी कार्रवाई को मजबूर करके हम पर एक बड़ा आर्थिक बोझ लाद दिया है.

जानिए क्या है एक्सपर्ट की राय

एक्सपर्ट की मानें तो विश्लेषण इंगित करता है कि देश की कोविड के बाद की वित्तीय स्थिति और उदास जीडीपी विकास दर रक्षा व्यय में किसी भी महत्वपूर्ण वृद्धि की अनुमति नहीं देगी. वेतन और पेंशन मदों के तहत ऐसी देनदारियां हैं कि सशस्त्र बलों के आवश्यक आधुनिकीकरण और पुन: उपकरण का कार्य संभव नहीं है, भले ही रक्षा बजट को वर्तमान 2.1 प्रतिशत से बढ़ाकर सकल घरेलू उत्पाद का 2.5 प्रतिशत कर दिया जाए. अग्निपथ और सैन्य हार्डवेयर के आयात पर प्रतिबंध जैसी गलत-कल्पना और गलत समय वाली योजनाएं न तो पैसे बचाने वाली हैं और न ही तत्काल आत्मनिर्भरता पैदा करने वाली हैं. लेकिन, इस महत्वपूर्ण मोड़ पर वे युद्ध-प्रभावशीलता को नष्ट कर सकते हैं.

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Samir Kumar
Samir Kumar
More than 15 years of professional experience in the field of media industry after M.A. in Journalism From MCRPV Noida in 2005

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