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Friday, March 29, 2024

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जबरन धर्मांतरण को SC ने बताया गंभीर मुद्दा, कहा – राष्ट्रीय सुरक्षा और धार्मिक स्वतंत्रता प्रभावित

भाजपा के नेता और वरिष्ठ वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से जारी याचिका में कहा गया है कि भारत में धोखाधड़ी और धमकियों के जरिए जबरन धर्मांतरण हो रहा है. याचिका में दावा किया गया है कि केंद्र सरकार इससे उत्पन्न होने वाले खतरे को नियंत्रित करने में पूरी तरह से नाकाम रही है.

नई दिल्ली : भारत में जबरन धर्मांतरण के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तल्ख टिप्पणी की है. भाजपा के नेता और वरिष्ठ वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि जबरन धर्मांतरण का मुद्दा बेहद गंभीर है. पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि जबरन धर्मांतरण राष्ट्र की सुरक्षा और धर्म की स्वतंत्रता को प्रभावित करता है. इससे पहले, सर्वोच्च अदालत ने पिछले 24 सितंबर को सुनवाई दौरान जबरन धर्मांतरण के मुद्दे पर केंद्र सरकार और गृह मंत्रालय को नोटिस जारी करके जवाब मांगा था.

खतरे को नियंत्रित करने में केंद्र नाकाम

भाजपा के नेता और वरिष्ठ वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से जारी याचिका में कहा गया है कि भारत में धोखाधड़ी और धमकियों के जरिए जबरन धर्मांतरण हो रहा है. याचिका में दावा किया गया है कि केंद्र सरकार इससे उत्पन्न होने वाले खतरे को नियंत्रित करने में पूरी तरह से नाकाम रही है. वरिष्ठ वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने कहा कि देश का एक भी जिला ऐसा नहीं है, जो जबरन धर्मांतरण से मुक्त हो.

अपने ही देश में अल्पसंख्यक बनकर रह जाएंगे हिंदू

इसके साथ ही, याचिका में यह भी कहा गया है कि भारत में जल्द ही जबरन धर्मांतरण पर रोक नहीं लगाई गई, तो निकट भविष्य में हिंदू अपने ही देश में अल्पसंख्यक बनकर रह जाएंगे. इतना ही नहीं, अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका में भारत के विधि आयोग को एक रिपोर्ट तैयार करने और जबरन धर्मांतरण को नियंत्रित करने के लिए एक विधेयक लाने का निर्देश देने की मांग की गई है.

Also Read: हिमाचल प्रदेश: जबरन धर्मांतरण कराया तो 10 साल की सजा और दो लाख तक का जुर्माना, विधेयक पारित

इन राज्यों में बना धर्मांतरण के खिलाफ कानून

बता दें कि भारत में जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा और कर्नाटक आदि में कानून बनाए गए हैं. जिन राज्यों में जबरन धर्मांतरण के खिलाफ कानून बनाया गया है, उसमें ऐसे गतिविधियों को अंजाम देने पर कम से कम 10 साल की सजा का प्रावधान किया गया है. हालांकि, जिस समय देश के चार राज्यों में जबरन धर्मांतरण के खिलाफ कानून बनाया जा रहा था, उस समय राजनीतिक तौर पर काफी विरोध भी किया गया था.

कोर्ट ने केंद्र सरकार को चेताया

सुप्रीम कोर्ट ने जबरन धर्मांतरण को ‘बहुत गंभीर’ मुद्दा करार देते हुए सोमवार को केंद्र से कहा कि वह इसे रोकने के लिए कदम उठाए और इस दिशा में गंभीर प्रयास करे. अदालत ने चेताया कि यदि जबरन धर्मांतरण को नहीं रोका गया तो एक बहुत मुश्किल स्थिति पैदा होगी. जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि सरकार प्रलोभन के जरिए धर्मांतरण पर अंकुश लगाने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में बताए.

जवाबी हलफनामा दाखिल करे केंद्र

पीठ ने कहा कि यह एक बहुत ही गंभीर मामला है. केंद्र द्वारा जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए गंभीर प्रयास किए जाने चाहिए, अन्यथा बहुत मुश्किल स्थिति सामने आएगी. हमें बताएं कि आप क्या कार्रवाई करने का प्रस्ताव रखते हैं. आपको हस्तक्षेप करना होगा. अदालत ने कहा कि यह बेहद गंभीर मुद्दा है, जो राष्ट्र की सुरक्षा और धार्मिक स्वतंत्रता को प्रभावित करता है. इसलिए, बेहतर होगा कि केंद्र सरकार अपना रुख स्पष्ट करे और इस तरह के जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए आगे क्या कदम उठाए जा सकते हैं, इस पर जवाबी हलफनामा दाखिल करे.

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