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झारखंड का एक गांव पोखरी कला, जिसकी कालीन उद्योग में थी अंतरराष्ट्रीय पहचान, दम तोड़ रहा बुनकरों का हुनर

Jharkhand News : कालीन उद्योग में अपनी अंतरराष्ट्रीय पहचान बना चुके लातेहार जिले के बरवाडीह प्रखंड के पोखरी कला गांव के बुनकरों का करीब 200 परिवार महाराष्ट्र के भिवंडी समेत अन्य राज्यों में पलायन को मजबूर है. कई हुनरमंद बुनकर फैक्ट्री में मजदूरी कर अपना और परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं.

Jharkhand News : कालीन उद्योग में अपनी अंतरराष्ट्रीय पहचान बना चुके लातेहार जिले के बरवाडीह प्रखंड के पोखरी कला गांव के बुनकरों का करीब 200 परिवार महाराष्ट्र के भिवंडी समेत अन्य राज्यों में पलायन को मजबूर है. कई हुनरमंद बुनकर फैक्ट्री में मजदूरी कर अपना और परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं. एक समय था, जब पोखरी में सैकड़ों की संख्या में बुनकर अपने इस पुस्तैनी कार्य को करते थे. तकरीबन हरेक घर के सामने हैंडलूम होता था, जहां बुनाई का काम चलता रहता था.

पलायन को हुए मजबूर

लातेहार के पोखरी कला के वस्त्र और कालीन इतनी ख्याति प्राप्त कर चुके थे कि झारखंड के अलावा देश के बड़े-बड़े शहरों में बेचे जाते थे. इस कारण यहां के बुनकरों की हालात काफी अच्छी थी. बुनकर समाज आत्मसम्मान का जीवन जी रहा था. वे किसी के मोहताज नहीं थे, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से रीजनल हैंडलूम सोसाइटी के द्वारा बुनकरों को कच्चा माल उपलब्ध कराना बंद कर दिया गया. इसके बाद सरकार ने इस क्षेत्र के लिए कोई विशेष ध्यान नहीं दिया. हालांकि सरकार के द्वारा बुनकरों के हित में एक से बढ़कर एक योजनाएं बनाई गयीं लेकिन वह कारगर नहीं हो सकीं. बुनकरों को काम मिलना बंद हो गया. इस कारण उनकी एक बहुत बड़ी आबादी आर्थिक तंगी झेलने लगी. बुनकरों को गांव छोड़कर रोजगार की तलाश में शहरों की ओर पलायन करना पड़ा.

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झारखंड के पहले गवर्नर प्रभात कुमार ने की थी तारीफ

झारखंड गठन होने के तुरंत बाद पहले गवर्नर प्रभात कुमार पोखरी कला पहुंचे थे और उन्होंने बुनकरों की जमकर तारीफ की थी. बुनकरों की आत्मनिर्भरता को देखकर काफी प्रभावित हुए थे. बुनाई के क्षेत्र में लोहा मनवाने वाले स्वर्गीय निजामुद्दीन मियां, स्वर्गीय शरीफ मियां ,दरबारी मियां, दारोगा मियां ,सहजन मियां सहित कई ऐसे शख्स थे, जिन्होंने बुनकर की दुनिया में लोहा मनवाया था. यहां के वस्त्र इतनी ख्याति प्राप्त कर चुके थे कि बेतला नेशनल पार्क घूमने आने वाले देसी-विदेशी पर्यटकों के अलावा कई फिल्मी सितारे और अन्य गणमान्य लोग भी पोखरी पहुंचते थे और वस्त्रों की खरीदारी करते थे.

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पूंजी के अभाव में महाजन की गिरफ्त में बुनकर

बुनकरों की दुर्दशा का एक प्रमुख कारण पूंजी का अभाव रहा. बुनकर हुनरमंद तो हैं, लेकिन उनके पास पैसा नहीं है. इस कारण वह न तो कच्चा माल ही खरीद पाते हैं और न ही उसे बाजार तक पहुंचा पाने में सक्षम हैं. कुछ वैसे बुनकर हैं जो पोखरी के अस्तित्व को बचाये हुए हैं लेकिन इनके समक्ष भी परेशानियों का जंजाल है. वर्तमान समय में करीब एक दर्जन बुनकर वैसे हैं जो बुनाई का काम कर रहे हैं, लेकिन पैसे के अभाव में महाजन की गिरफ्त में हैं. बुनकर सोबराती मियां, मोहम्मद हासिम, जियाउल हक शुकरूदीन मियां, इम्तियाज, रहीमउद्दीन, ऐबुल ने बताया कि उन्होंने पहले रीजनल हैंडलूम सोसायटी इरबा के द्वारा कच्चा माल दिया जाता था. जिसे तैयार करने के बाद फिर वस्त्र को उसे सौंप दिया जाता था, लेकिन फिलहाल उन्हें महाजन से ही सूता वगैरह दिया जाता है, जिसके बाद वह घर लाकर साड़ी, धोती, गमछा वगैरह तैयार करते हैं और फिर उसे उस महाजन को सौंप देते हैं. इसके बदले में उन्हें मजदूरी के एवज में कुछ पैसे मिल जाते हैं.

बुनकरों को नहीं मिला है आवास योजना का लाभ

पोखरी के कई ऐसे बुनकर हैं जो आज भी कच्चे खपरैल मकान में रहने को विवश हैं. बुनाई की कला में निपुण बुनकर किसी तरह अपना जीवन गुजार रहे हैं. पानी टपकते इन घरों में बरसात के दिनों में कपड़ा की बुनाई करना काफी मुश्किल है.

रिपोर्ट : संतोष कुमार, बेतला, लातेहार

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