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Christmas 2021: सफेद खच्चर पर सवार होकर 1930 में गुमला पहुंचे थे फादर डिकाइजर, ऐसे की थी बनारी चर्च की स्थापना

Jharkhand News: फादर डिकाइजर ने बनारी लाइनटोली गांव में संत जोसेफ चर्च की 1932 में स्थापना की थी, ताकि क्षेत्र के लोगों को शिक्षित कर अंधविश्वास से बाहर निकालते हुए उन्हें जागरूक किया जा सके.

Jharkhand News: झारखंड के गुमला जिले के बिशुनपुर प्रखंड के बनारी स्थित रोमन कैथोलिक चर्च आस्था व विश्वास का प्रतीक है. इस चर्च में ख्रीस्तियों को साक्षात प्रभु का अहसास होता है. बनारी चर्च की स्थापना 1932 में की गयी थी. यह चर्च प्रखंड के सबसे पुराने चर्च में से एक है. सर्वप्रथम फादर डिकाइजर 1930 के आसपास सफेद खच्चर पर सवार होकर बनारी पहुंचे थे. बताया जाता है कि उस वक्त ईसाई समाज के लोगों की जनसंख्या नहीं के बराबर थी. क्षेत्र आदिवासी बहुल था. जहां अंधविश्वास व अशिक्षा चारों ओर पांव पसारे हुए थे. क्षेत्र में न तो डॉक्टर थे. न ही समाज को शिक्षित कर विकास की ओर अग्रसर करने के लिए शिक्षक थे. फादर डिकाइजर ने बनारी लाइनटोली गांव में संत जोसेफ चर्च की 1932 में स्थापना की थी, ताकि क्षेत्र के लोगों को शिक्षित कर अंधविश्वास से बाहर निकालते हुए उन्हें जागरूक किया जा सके.

फादर जस्टिन कुजूर ने कहा कि मसीही विश्वासियों की संख्या बढ़ने लगी और 1932 में बनाये गये चर्च का हॉल छोटा पड़ने लगा. जिसको देखते हुए 1993 में परिसर में एक नये चर्च बनाया गया. जिसमें विश्वासी प्रार्थना में शामिल होते हैं. परिसर में मिडिल स्कूल व हाईस्कूल की भी स्थापना चर्च द्वारा की गयी है. जहां आज 700 छात्र-छात्राएं शिक्षा ग्रहण करते हैं. हॉस्पिटल भी बनाया गया है. जहां क्षेत्र के लोग अपना इलाज कराने पहुंचते हैं. फादर जस्टिन कुजूर बताते हैं कि चर्च की स्थापना के 89 साल गुजरने के बाद भी मसीही समाज के लोगों का इस चर्च के प्रति अपार श्रद्धा व विश्वास है. उन्होंने बताया कि प्रभु यीशु के जन्म दिवस को यीशु के बताये मार्गों पर चलने की प्रेरणा लेने के साथ खुशियों को मिलकर बांटेंगे. उन्होंने कहा कि बनारी पारिस से 480 मसीही परिवार जुड़े हैं. क्रिसमस के दिन दूर-दूर से लोग यहां आकर प्रार्थना में शरीक होते हैं.

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बनारी के 76 वर्षीय फ्रांसिस बेक बताते हैं कि जिस जगह पर चर्च की स्थापना की गयी है. स्थापना से पूर्व उस जगह पर जंगल झाड़ी था. यहां बाघ, भालू आते थे. चर्च की स्थापना के बाद चर्च के द्वारा मिट्टी के घर में विद्यालय का भी संचालन किया जाता था. धीरे-धीरे समाज के लोग शिक्षित हुए. चर्च बनने के बाद 1962 में एक बार हम सभी चर्च में प्रार्थना कर रहे थे. तब इतनी तेज आंधी और तूफान आया कि चर्च की छत उजड़ गयी. इस घटना में फादर फिलन को चोट पहुंची थी. पारिस परिसर में 1993 में नया चर्च बनाया गया था.

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रिपोर्ट: बसंत साहू

Prabhat Khabar Digital Desk
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