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G-20 Summit से पहले नरेंद्र मोदी ने ऋण संकट पर कही बड़ी बात, जानें किसे बताया दुनिया के लिए सबसे बड़ी चिंता

नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत आगामी जी20 शिखर सम्मेलन में इस मुद्दे पर आम सहमति बनाने का प्रयास करेगा. ताकि इस संबंध में कर्ज से बोझ से दबी कम आय वाली अर्थव्यवस्थाओं की मदद के लिए एक ठोस रूपरेखा तैयार की जा सके.

भारत जी-20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी 9-10 सितंबर को कर रहा है. बैठक से ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) ने कहा है कि ऋण संकट दुनिया, खासकर विकासशील देशों के लिए बड़ी चिंता का विषय है. उन्होंने कहा कि भारत आगामी जी20 शिखर सम्मेलन में इस मुद्दे पर आम सहमति बनाने का प्रयास करेगा. ताकि इस संबंध में कर्ज से बोझ से दबी कम आय वाली अर्थव्यवस्थाओं की मदद के लिए एक ठोस रूपरेखा तैयार की जा सके. प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले सप्ताह एक विशेष साक्षात्कार में कहा कि भारत की अध्यक्षता में जी20 ने ऋण कमजोरियों से पैदा होने वाली वैश्विक चुनौतियों से निपटने पर काफी जोर दिया है. पीएम मोदी ने कहा कि ऋण संकट वास्तव में दुनिया, खासकर विकासशील देशों के लिए बड़ी चिंता का विषय है. विभिन्न देशों के नागरिक इस संबंध में सरकारों द्वारा लिए जा रहे फैसलों का अनुसरण कर रहे हैं. कुछ सराहनीय परिणाम भी आए हैं.

‘ऋण पुनर्गठन पर लगातार जोर दे रहा चीन’

नरेंद्र मोदी ने कहा कि सबसे पहली बात यह है कि जो देश ऋण संकट से गुजर रहे हैं या इससे गुजर चुके हैं, उन्होंने वित्तीय अनुशासन को अधिक महत्व देना शुरू कर दिया है. दूसरा, जिन्होंने कुछ देशों को ऋण संकट के कारण कठिन समय का सामना करते देखा है, वे उन्हीं गलत कदमों से बचने के लिए सचेत हैं. भारत ने अपनी जी20 अध्यक्षता के तहत बढ़ती ऋण समस्याओं का सामना करने वाले देशों की मदद के लिए ऋण पुनर्गठन पर लगातार जोर दिया है. चीन, जिसे दुनिया का सबसे बड़ा सरकारी ऋणदाता माना जाता है, वह ऋण पुनर्गठन के कुछ प्रस्तावों पर सहमत नहीं है. हालांकि, बड़ी संख्या में जी20 सदस्य देश कम आय वाले देशों को संकट से मुकाबला करने में मदद की वकालत कर रहे हैं. एक अनुमान के मुताबिक, 70 से अधिक कम आय वाले देशों पर कुल 326 अरब अमेरिकी डॉलर का कर्ज है.

श्रीलंका की जरूरतों के प्रति भी काफी संवेदनशील रहे: मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि जी20 के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों ने ऋण समाधान में अच्छी प्रगति को स्वीकार किया है. उन्होंने कहा कि हम कठिन समय के दौरान अपने मूल्यवान पड़ोसी श्रीलंका की जरूरतों के प्रति भी काफी संवेदनशील रहे हैं. उन्होंने कहा कि वैश्विक ऋण पुनर्गठन के प्रयासों में तेजी लाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ), विश्व बैंक और जी20 अध्यक्षता की एक संयुक्त पहल – ‘ग्लोबल सॉवरेन डेट राउंडटेबल’ की शुरुआत इस साल की गई थी. इससे प्रमुख हितधारकों के बीच संवाद मजबूत होगा और प्रभावी तरीके से ऋण संकट से निपटने में मदद मिलेगी. मोदी ने उम्मीद जताई कि इस समस्या पर विभिन्न देशों के लोगों के बीच बढ़ती जागरूकता यह सुनिश्चित करेगी कि ऐसी स्थिति बार-बार न पैदा हो.

आईएमएफ प्रमुख ने भी की ऋण पुनर्गठन की वकालत

जी20 शिखर सम्मेलन से पहले प्रधानमंत्री ने कहा कि हालांकि, इन मुद्दों के समाधान के लिए बहुत कुछ किया जा रहा है, और मुझे विश्वास है कि विभिन्न देशों के लोगों के बीच बढ़ती जागरूकता यह सुनिश्चित करेगी कि ऐसी स्थिति बार-बार न पैदा हो. आईएमएफ प्रमुख क्रिस्टालिना जॉर्जीवा ने जुलाई में कमजोर देशों के लिए तेजी से ऋण पुनर्गठन प्रक्रिया की वकालत की थी. भारत जी20 के वर्तमान अध्यक्ष के रूप में 9-10 सितंबर को शिखर सम्मेलन की मेजबानी कर रहा है.

ऊर्जा बदलाव के लिए विविधता पर दांव लगाना सबसे अच्छा विकल्प : प्रधानमंत्री मोदी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि ऊर्जा बदलाव में विविधता सबसे अच्छा विकल्प है और जब दुनिया जीवाश्म ईंधन से स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों मसलन सौर और हाइड्रोजन की ओर बदलाव के लिए काम कर रही है, कोई एक तरीका सभी चीजों का समाधान नहीं हो सकता. भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता है. भारत ने हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि ऊर्जा बदलाव न्यायसंगत और व्यवस्थित होना चाहिए और देशों को संसाधनों की उपलब्धता के आधार पर निर्णय लेने की पूरी छूट होनी चाहिए. जी-20 शिखर सम्मेलन से पहले यहां एक विशेष साक्षात्कार में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हमारा सिद्धांत सरल है – विविधता हमारे लिए सबसे अच्छा विकल्प है, चाहे वह समाज में हो या हमारे ऊर्जा के विभिन्न स्रोतों के संदर्भ में हो. उन्होंने कहा कि सभी चीजों के लिए एक जैसा समाधान नहीं हो सकता. विभिन्न देश जिन अलग-अलग रास्तों पर चल रहे हैं, उन्हें देखते हुए ऊर्जा बदलाव के लिए उनकी राह भी भिन्न होगी. कोयला, तेल और गैस की दुनिया में ऊर्जा उपभोग में लगभग दो-तिहाई हिस्सेदारी है. इसे रातोंरात नहीं बदला जा सकता. इन परिस्थितियों देखते हुए भारत आज की ऊर्जा प्रणाली में निवेश जारी रखने के पक्ष में है ताकि बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं की मांग को पूरा किया जा सके और इसमें कोई कमी न हो. इसी के साथ ऊर्जा बदलाव में निवेश का प्रवाह भी जारी रहना चाहिए.

(भाषा इनपुट के साथ)

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