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आंदोलन का चौथा दिन : थोक मंडियों पर पड़ने लगी अन्नदाताओं की हाय, सब्जियों में लगने लगी कीमतों की मिर्ची

इंदौर : देश भर में एक जून से जारी 10 दिवसीय किसान आंदोलन के चौथे दिन मध्यप्रदेश की वाणिज्यिक राजधानी इंदौर के थोक मंडियों में सोमवार को सब्जियों की आवक घटकर आधी रह गयी. इसी का नतीजा है कि यहां की थोक मंडियों में सब्जियों के भावों में औसतन 20 फीसदी का उछाल दर्ज किया […]

इंदौर : देश भर में एक जून से जारी 10 दिवसीय किसान आंदोलन के चौथे दिन मध्यप्रदेश की वाणिज्यिक राजधानी इंदौर के थोक मंडियों में सोमवार को सब्जियों की आवक घटकर आधी रह गयी. इसी का नतीजा है कि यहां की थोक मंडियों में सब्जियों के भावों में औसतन 20 फीसदी का उछाल दर्ज किया गया.

इसे भी पढ़ें : किसान आंदोलन का दूसरा दिन : 24 घंटे के दौरान मध्यप्रदेश में तीन अन्नदाताओं की मौत

इंदौर के देवी अहिल्याबाई होल्कर सब्जी मंडी के कारोबारी संघ के अध्यक्ष सुंदरदास माखीजा ने बताया कि आम दिनों के मुकाबले सोमवार को मंडी में 50 फीसदी माल ही आया. इससे टमाटर, भिंडी, करेला, हरी मिर्च और अन्य सब्जियों के दाम औसतन 20 फीसदी ज्यादा बोले गये. उन्होंने बताया कि सब्जियों का स्थानीय थोक बाजार आवक के मामले में उत्तरप्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र पर काफी हद तक निर्भर है, क्योंकि इंदौर के आस-पास के इलाकों में फिलहाल सब्जियों की पैदावार कम हो रही है.

माखीजा ने बताया कि किसान आंदोलन के शुरुआती तीन दिनों में स्थानीय मंडी में आवक के मुकाबले खरीदार घटने के कारण सब्जियों के भावों में गिरावट दर्ज की गयी थी. इसकी बड़ी वजह यह थी कि किसान आंदोलन से ऐन पहले खुदरा कारोबारियों और आम लोगों ने सब्जियों का पर्याप्त स्टॉक कर लिया था. उन्होंने कहा कि चूंकि कारोबारियों के गोदाम और आम लोगों के घरों में सब्जियों का स्टॉक अब कम हो चुका है. इसलिए उम्मीद है कि थोक बाजार में सब्जियों का कारोबार रफ्तार पकड़ेगा.

उन्होंने आंदोलन से जुड़े कृषक संगठनों ने किसानों से अपील की है कि वे 10 जून तक चलने वाले ‘ग्राम बंद’ के दौरान गांवों से शहरों को फल-सब्जियों और दूध की आपूर्ति रोक दें. हालांकि, मध्यप्रदेश में फिलहाल इस अपील का मिला-जुला असर नजर आ रहा है. अधिकारियों के मुताबिक, प्रदेश के कई स्थानों पर फल-सब्जियों और दूध लाने ले जाने के दौरान पुलिस सुरक्षा भी मुहैया कराई जा रही है, ताकि शहरों में इन जरूरी वस्तुओं की आपूर्ति प्रभावित न हो.

आंदोलन से जुड़े संगठनों की मांगों में यह भी शामिल है कि सरकार कृषि जिंसों के साथ फल-सब्जियों और दूध का ऐसा न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करे, जिससे किसानों को उत्पादन लागत का डेढ़ गुना यानी 50 फीसदी फायदा हो.

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