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भयावह विषमता

हमारे देश की आबादी के सबसे धनी एक फीसदी हिस्से के पास कुल राष्ट्रीय संपत्ति का 53 फीसदी मालिकाना है. सबसे धनी पांच फीसदी आबादी के पास 68.6 और सबसे धनी 10 फीसदी के पास 76.3 फीसदी संपत्ति है. इसे ऐसे भी कहा जा सकता है कि देश की कुल संपत्ति में 90 फीसदी आबादी […]

हमारे देश की आबादी के सबसे धनी एक फीसदी हिस्से के पास कुल राष्ट्रीय संपत्ति का 53 फीसदी मालिकाना है. सबसे धनी पांच फीसदी आबादी के पास 68.6 और सबसे धनी 10 फीसदी के पास 76.3 फीसदी संपत्ति है. इसे ऐसे भी कहा जा सकता है कि देश की कुल संपत्ति में 90 फीसदी आबादी का हिस्सा 27.7 फीसदी है. देश के सबसे गरीब लोगों की आधी आबादी के पास मात्र 4.1 फीसदी की हिस्सेदारी है.

अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में कार्यरत संस्था क्रेडिट स्विस द्वारा जारी अध्ययन ने यह भी रेखांकित किया है कि पिछले 15 वर्षों में भारत की संपत्ति में 2.284 ट्रिलियन डॉलर की वृद्धि हुई है. इस बढ़त का 61 फीसदी देश के सर्वाधिक धनी एक फीसदी लोगों के हिस्से में गया है. इसमें सबसे धनी 10 फीसदी आबादी का हिस्सा 81 फीसदी है और शेष 90 फीसदी भारतीयों के हाथ बचा-खुचा ही आ सका है. इस स्थिति की तुलना में अमेरिकियों में सबसे धनी एक फीसदी के पास उस देश की कुल संपत्ति का 37.3 फीसदी ही है, पर रूस में यह हिस्सा 70 फीसदी से अधिक है. विषमता का वैश्विक स्तर लगभग भारत के बराबर है. पिछले वर्ष ऑक्सफैम ने जानकारी दी थी कि दुनिया के सबसे धनी 85 लोगों के पास सबसे गरीब 3.5 अरब लोगों के बराबर धन है.

ये आंकड़े स्पष्ट रूप से इंगित करते हैं कि मौजूदा आर्थिक मॉडल संपत्ति के समान बंटवारे और जनसंख्या के बहुत बड़े हिस्से की आमदनी बढ़ाने में असफल रहा है. पूंजी-निर्माण और संग्रहण की प्रक्रिया कुछ लोगों के हाथों में केंद्रित हो गयी है. इस वर्ष अर्थशास्त्र के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार जीतनेवाले प्रोफेसर एंगस डीटन ने भारत में गरीबी और कुपोषण तथा अन्य स्वास्थ्य-संबंधी समस्याओं का विस्तृत अध्ययन किया है. उनका मानना है कि राज्य की क्षमता का अभाव दुनियाभर में गरीबी और वंचना के बड़े कारणों में से एक है.

नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री जोसेफ स्टिग्लिज के अनुसार, मौजूदा परिस्थिति संपत्ति के असमान वितरण के कारण पैदा हुई है तथा विषमता के कारण सामान्य आवश्यकताओं और गरीबी निवारण पर धन खर्च करने की प्रक्रिया बाधित हुई है. इस विषमता का असर राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक स्तर पर भी पड़ा है. रिटेल स्टोर चलानेवाली वाॅलमार्ट के छह मालिकों के पास 145 अरब डॉलर की संपत्ति है, जो 18 लाख मध्यवर्गीय अमेरिकी परिवारों की संपत्ति के बराबर है.

उल्लेखनीय है कि वाॅलमार्ट स्वयं किसी वस्तु का उत्पादन नहीं करती है. उसका काम विपणन का है. यही हाल इ-कॉमर्स और आइटी कंपनियों का भी है. कंप्यूटर कंपनी एप्पल का 203 बिलियन का नगदी भंडार यूरो जोन के 26 बैंकों की परिसंपत्तियों से अधिक है. विश्वभर में इस तरह की अनेक कंपनियां हैं, जो विचार और नियंत्रण के माध्यम में भारी मात्रा में धनार्जन कर रही हैं.

इस संदर्भ में यह भी उल्लेखनीय है कि उत्पादन में कमी, बाजार में मंदी, अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव आदि का नुकसान मध्यवर्गीय और गरीब तबकों को उठाना पड़ता है. भारत समेत दुनिया के अन्य देशों के नीति-निर्माताओं तथा अर्थव्यवस्था के सिद्धांतकारों और शोधार्थियों के सामने आर्थिक विषमता के समाधान की महती चुनौती है. धनी तबका अपने हितों की रक्षा और स्वार्थों की पूर्ति के लिए राजनीति के क्षेत्र में अपने प्रभाव का विस्तार करता है.

सरकारें उन्हें जनता की कीमत पर कई तरह की छूटें और सहूलियतें मुहैया कराती हैं. ऑक्सफैम का आकलन है कि यदि दुनिया के तमाम खरबपतियों पर डेढ़ फीसदी का अतिरिक्त कर लगा दिया जाये, तो गरीब देशों में हर बच्चे को स्कूल भेजा जा सकता है और बीमारों का इलाज किया जा सकता है. इससे करीब 2.30 करोड़ जानें बचायी जा सकती हैं.

अगर भारत में विषमता को बढ़ने से रोक लिया जाये, तो 2019 तक नौ करोड़ लोगों की अत्यधिक गरीबी दूर की जा सकती है. यदि विषमता को 36 फीसदी कम कर दिया जाये, तो हमारे देश से अत्यधिक गरीबी खत्म हो सकती है. जैसा कि स्टिग्लिज ने कहा है कि सबसे धनी एक फीसदी आबादी की नियति बाकी 99 फीसदी की नियति से जुड़ी हुई है. विषमता व्यापक असंतोष का कारण बन रही है. अगर इस संदर्भ में सकारात्मक कदम नहीं उठाये गये, तो समाज खतरनाक अस्थिरता की दिशा में जाने के लिए अभिशप्त होगा.

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