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भारतीय धार्मिक स्थलों के धुएं से पिघल रहा है ग्लेशियर

लंदन: हिंदुओं के शवदाह, मुसलमानों के कब्रगाह और बौद्ध मठों से उठने वाले धुएं का भारतीय उपमहाद्वीप में ‘ग्लोबल वार्मिंग तथा हिमालयी ग्लेशियरों के पिघलने’ के लिए जिम्मेदार माने जाने वाले ग्रीनहाउस गैसों में एक चौथाई का योगदान है. एक नये अध्ययन में यह दावा किया गया है.अध्ययनकर्ताओं को लंबे समय से संदेह था कि […]

लंदन: हिंदुओं के शवदाह, मुसलमानों के कब्रगाह और बौद्ध मठों से उठने वाले धुएं का भारतीय उपमहाद्वीप में ‘ग्लोबल वार्मिंग तथा हिमालयी ग्लेशियरों के पिघलने’ के लिए जिम्मेदार माने जाने वाले ग्रीनहाउस गैसों में एक चौथाई का योगदान है.

एक नये अध्ययन में यह दावा किया गया है.अध्ययनकर्ताओं को लंबे समय से संदेह था कि भारत, नेपाल और दक्षिण एशिया में होने वाले धार्मिक संस्कार भूरे कार्बन के स्तर और ‘कालिख’ के लिए एक वजह हो सकते हैं जो क्षेत्र में वायु को प्रदूषित कर रहा है लेकिन समस्या को कम करने के लिए अभी तक थोड़ा काम ही किया गया है.

टेलीग्राफ में छपी एक खबर के मुताबिक अमेरिकी प्रांत नेवादा के डेजर्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट और छत्तीसगढ़ के पंडित रवि शंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के अध्ययनकर्ताओं के मुताबिक इसका प्रभाव काफी अधिक है. 2011 से 2012 के बीच अध्ययनकर्ताओं ने शादी समारोहों में जलाई जाने वाली आग, शवदाह, मंदिरों में और कब्रों पर जलाये जाने वाली अगरबत्तियों के उत्सजर्न को मापा. उन्होंने पाया कि आम की लकड़ियां, गोबर के उपले, कपरूर, पत्तियां और गोमूत्र को जलाया जाता है.

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