वाशिंगटन : अमेरिका ने 1965 में कश्मीर मुद्दे पर भारत के उस रुख का समर्थन किया था कि कश्मीर में जनमत संग्रह नहीं होना चाहिए. उस समय के अमेरिकी दस्तावेजों को सार्वजनिक किए जाने से यह खुलासा हुआ है. 1965 के भारत-पाक युद्ध के चरम पर पहुंचने के साथ तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन को पत्र लिखकर बताया था कि भारत सरकार बिना किसी शर्त के संघर्ष विराम पर राजी होने के लिए तैयार है.
उन्होंने 16 सितंबर, 1965 की तारीख वाले अपने पत्र में कश्मीर में जनमत संग्रह की बात को खारिज करते हुए कहा था कि इससे जुड़ा 1948 का संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव अब स्वीकार्य नहीं है. शास्त्री के इस पत्र से पहले तत्कालीन पाकिस्तानी विदेश मंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने अमेरिकी नेतृत्व से कहा था कि पाकिस्तान एक राष्ट्र के तौर पर हर तरह का अपमान सहने के लिए तैयार है लेकिन कश्मीर पर अपना दावा नहीं छोड़ेगा.
भारतीय बल जिस दिन पाकिस्तान में घुसे थे उस दिन पाकिस्तान स्थित तत्कालीन अमेरिकी राजदूत वाल्टर पैट्रिक मैक्कोनॉटी तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान और विदेश मंत्री भुट्टो से मिले थे जो अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से कश्मीर में जनमत संग्रह कराने को लेकर भरोसा चाहते थे. बातचीत के दौरान अमेरिकी राजदूत ने उनसे कहा था कि इस युद्ध के लिए पाकिस्तान जिम्मेदार है क्योंकि उसने कश्मीर में अपने सुरक्षा बल भेजे और साम्यवादी चीन के खिलाफ इस्तेमाल के लिए दिए गए अमेरिकी हथियारों का इस्तेमाल भारत के खिलाफ किया.