वाशिंगटन : ओबामा प्रशासन के एक शीर्ष अमेरिकी सांसद ने सलाह दी है कि अफगानिस्तान में सेना के अतिरिक्त उपकरणों को कचरे में फेंकने के बजाय उन्हें भारत और उज्बेकिस्तान जैसे मित्र देशों को बेच देना चाहिए.
हाल ही में ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ में छपे एक लेख में कहा गया था कि अफगानिस्तान में अरबों डालर की कीमत के सैन्य उपकरणों को निपटाने के लिए अमेरिका ने अनुबंधित मजदूर नियुक्त किए हैं. इस खबर से हैरान न्यूयॉर्क के कांग्रेस सदस्य डाना रोहरबचर ने अमेरिका के विदेश मंत्री जॉन कैरी को एक पत्र लिखा कि अमेरिका को पूरी तरह सही सैन्य उपकरणों को बर्बाद नहीं करना चाहिए.
रोहरबचर ने अपने पत्र में कल लिखा, ‘‘उज्बेकिस्तान और भारत में हमारे ऐसे सहयोगी और मित्र हैं, जिनकी सुरक्षा को लेकर अपनी वास्तविक चिंताएं हैं और ये लोग इन उपकरणों का अच्छा इस्तेमाल कर सकते हैं. उन्हें ये उपकरण खरीदने और उनके साथ मिलने वाला प्रशिक्षण भी लेना चाहिए. यह हम दोनों के लिए ही फायदेमंद होगा. अमेरिकी करदाताओं के लिए यह पूरी तरह उपयुक्त है और हमारे राष्ट्रीय हित में भी है. इससे उन देशों की मदद होगी, जिन्हें वर्ष 2014 से इस्लामी चरमपंथ बढ़ने का खतरा है.’’
यूरोप, यूरेशिया और उभरते खतरों जैसे विदेशी मामलों की उपसमिति के प्रमुख रोहरबेचर ने कहा, ‘‘हमें इस क्षेत्र में अपने सहयोगियों की बात सुननी चाहिए. उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में कई वर्षों तक हमारा साथ दिया. यह असम्मानजनक है कि अब हम उन्हें इस तरह नजरअंदाज कर रहे हैं.’’ उन्होंने कहा, ‘‘इससे जनता को यही लगेगा कि हमारा वहां से हटना गैरजिम्मेदाराना तरीके से हो रहा है.’’
मीडिया में आई खबरों के अनुसार, अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना हटाने की तैयारियां चल रही हैं और जिन सैन्य उपकरणों को देश से बाहर ले जाने में परिवहन का खर्च बहुत ज्यादा आ रहा है, उन्हें नष्ट किया जा रहा है.
ऐसी खबरें हैं कि रक्षा मंत्रलय अब तक 17 करोड़ पाउंड की कीमत वाले वाहनों और अन्य सैन्य उपकरणों को नष्ट कर चुका है. इसमें बारुद रोधी सशस्त्र ट्रक भी शामिल हैं.
वाशिंगटन पोस्ट के लेख में लिखा गया कि जो अतिरिक्त उपकरण नष्ट किए जा रहे हैं, वे बहुत कीमती हैं. 19 जून 2013 को आए इस लेख में इन्हें ‘गोल्ड डस्ट’ यानी ‘स्वर्ण धूल’ कहा गया. कुछ का आकलन है कि इनकी कीमत सात अरब डॉलर है.