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मलेरिया मुक्त हुआ श्रीलंका, भारत के लिए अभी सपना

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने श्रीलंका को मलेरिया-मुक्त देश घोषित कर दिया है. मालदीव के बाद दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र में श्रीलंका दूसरा ऐसा देश बन गया है. कुछ दशक पहले तक श्रीलंका की गिनती सर्वाधिक मलेरिया प्रभावित देशों में होती थी, लेकिन 1990 के दशक के आखिरी दौर में इससे समग्रता से निबटने के लिए मलेरिया-रोधी […]

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने श्रीलंका को मलेरिया-मुक्त देश घोषित कर दिया है. मालदीव के बाद दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र में श्रीलंका दूसरा ऐसा देश बन गया है. कुछ दशक पहले तक श्रीलंका की गिनती सर्वाधिक मलेरिया प्रभावित देशों में होती थी, लेकिन 1990 के दशक के आखिरी दौर में इससे समग्रता से निबटने के लिए मलेरिया-रोधी अभियान शुरू किया गया.
नतीजतन वर्ष 1999 में जहां इसके 2,64,549 मामले पाये गये, वहीं उसके बाद यह संख्या लगातार कम होती गयी और 2008 में हजार से भी नीचे आ गयी. अक्तूबर, 2012 के बाद से इसका एक भी मामला सामने नहीं आया है. श्रीलंका ने कैसे हासिल की यह उपलब्धि, भारत में क्या है मलेरिया की स्थिति और मलेरिया से जंग से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों के बीच ले जा रहा है आज का यह आलेख …
किसी उष्णकटबंधीय देश के लिए मलेरिया-मुक्त हो पाना आसान नहीं, लेकिन श्रीलंका ने ऐसा कर दिखाया है. इसके लिए बीते एक दशक में उसने अनेक रणनीतियां बनायीं और उसे समग्रता से कार्यान्वित किया. ‘मलेरिया जर्नल डॉट बायोमेड सेंट्रल’ के मुताबिक, श्रीलंका के स्वास्थ्य मंत्रालय ने वर्ष 2008 में ‘स्ट्रेटजिक प्लान फॉर एलिमिनेशन ऑफ मलेरिया’ लागू किया, जिसके बेहतर नतीजे सामने आये. इसमें सात स्तरों पर बनायी मलेरिया से मुक्ति की रणनीति-
– मलेरिया रोगियों और इसके वाहक परजीवियों को आरंभिक अवस्था में डायग्नोज व त्वरित इलाज करना.
– इंटीग्रेटेड वेक्टर मैनेजमेंट प्रोटोकॉल्स सिद्धांत आधारित चुनिंदा कंट्रोल मापकों को लागू करना.
– इसे फैलने से रोकने के लिए समय रहते अनुमान लगाना, आरंभिक अवस्था में पहचान करना और फैलने की दशा में तत्काल प्रभावी उपाय करना.
– देश में मलेरिया की स्थिति और मलेरिया नियंत्रण गतिविधियों का नियमित मूल्यांकन.
– सामुदायिक सहभागिता को बढ़ाना और प्रभावी व सतत मलेरिया नियंत्रण के लिए साझेदारी बनाना.
– मानव संसाधन विकास व कैपेसिटी बिल्डिंग को प्रोत्साहित करना.- ऑपरेशनल रिसर्च को बढ़ावा देना.
मलेरिया को ऐसे किया काबू
– वेब-आधारित निगरानी : बुखार के सभी मामलों की गहन जांच की जाती थी और उन्हें स्वास्थ्य मंत्रालय के मलेरिया-रोधी अभियान के साथ जोड़ा जाता था. मलेरिया प्रभावित देशों की यात्रा करनेवालों पर खास नजर रखी जाती थी, जिसमें मिशन से जुड़े सैन्यबल, प्रवासी, पर्यटक और तीर्थयात्री प्रमुखता से शामिल थे.
– सरकारी एजेंसियों के माध्यम से दवा आपूर्ति : सरकार ने मलेरिया-रोधी दवाओं की कीमतें कम की और सरकारी एजेंसियों के जरिये इसे जरूरतमंदों तक पहुंचाने की व्यवस्था की गयी.
– परजीवी-नियंत्रण रणनीति : 1990 के दशक में एएमसी ने परजीवी-नियंत्रण की रणनीति में बदलाव किया 1999 के बाद से मलेरिया तेजी से कम हुआ और 2008 के बाद इसके मामले हजार से भी कम पाये गये.
– हॉटलाइन सेवा : सरकार ने एंटी-मलेरिया कैंपेन (एएमसी) के तहत 24 घंटे संचालित होनेवाले हॉटलाइन शुरू की ताकि मलेरिया के मरीज को तत्काल निगरानी में रखा जा सके और उसका संक्रमण फैलने से रोका जा सके.
– स्वास्थ्य सेवाओं तक सभी की पहुंच : स्वास्थ्य सेवाओं तक सभी की आसान पहुंच कायम करने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत किया गया और साफ-सफाई पर ध्यान दिया गया. मच्छरों के ब्रीडिंग करनेवाले जगहों की तलाश की गयी और दूरदराज इलाकों में भी इसे सख्ती से लागू किया गया.
मोबाइल मलेरिया क्लीनिक की बड़ी भूमिका
श्रीलंका में एंटी-मलेरिया कैंपेन के डायरेक्टर डॉ रिसिंथा प्रेमरत्ने के मुताबिक, माेबाइल मलेरिया क्लीनिक के इस्तेमाल से मलेरिया के उच्च-संचारित इलाकों में इसके सक्रिय मामलों पर तत्काल काबू पाने में मदद मिली. इससे मलेरिया को समय रहते पहचानने और उनका इलाज मुमकिन हो सका. इसके अलावा इस मोबाइल मलेरिया क्लीनिक से परजीवियों के पनपने के इलाकों और उनके संचरण पर कारगर तरीके से नियंत्रण किया गया.
1999 में मलेरिया के ढाई लाख से अधिक मामले, 2012 के बाद एक भी नहीं
श्रीलंका के ग्रामीण उत्तरी जिले में इस अभियान के प्रमुख डॉ डब्ल्यू एम टी बी विजकून के हवाले से ‘बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन’ के तहत संचालित ‘इंपेशेंट ऑप्टिमिस्ट्स’ की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि एक बड़े स्प्रे अभियान के बाद 1963 में श्रीलंका में मलेरिया तकरीबन नियंत्रित हो चुका था और उस वर्ष इसके महज 17 मामले सामने आये थे. यह देश इस बीमारी से उबर चुका था और सभी यह सोच रहे थे कि अब इससे मुक्ति मिल जायेगी, लेकिन इसके बाद के तीन दशकों में गृह-युद्ध और हिंसा की चपेट में आने से एक बार फिर यहां मलेरिया बढ़ता गया और धीरे-धीरे अनियंत्रित हो गया. वर्ष 1999 में इसके 2,64,549 मामले पाये गये. लेकिन 1990 के दशक के आखिरी दौर में शुरू हुए मलेरिया-रोधी अभियान के चलते यह संख्या लगातार कम होती गयी और 2008 में हजार से भी नीचे आ गयी. अक्तूबर, 2012 के बाद से इसका एक भी मामला सामने नहीं आया है.
देश की प्राचीन राजधानी अनुराधापुर से करीब 60 किमी दूर ग्रामीण क्षेत्रों में डॉ विजकून 1980 और 90 के दशक में रोजाना 200 से ज्यादा मरीजों का इलाज करते थे. उस समय वहां 50 हजार की आबादी में वे ही एकमात्र डॉक्टर थे. ग्रामीण क्षेत्रों में निगरानी के लिए कार्यकर्ताओं की तैनाती की गयी, जो नेशनल सर्विलांस सिस्टम में इस बीमारी से संबंधित सभी जरूरी आंकड़े फीड करते थे.
भारत में 2030 तक मुक्ति का लक्ष्य
मोबाइल मलेरिया क्लीनिक की बड़ी भूमिका
श्रीलंका में एंटी-मलेरिया कैंपेन के डायरेक्टर डॉ रिसिंथा प्रेमरत्ने के मुताबिक, माेबाइल मलेरिया क्लीनिक के इस्तेमाल से मलेरिया के उच्च-संचारित इलाकों में इसके सक्रिय मामलों पर तत्काल काबू पाने में मदद मिली. इससे मलेरिया को समय रहते पहचानने और उनका इलाज मुमकिन हो सका. इसके अलावा इस मोबाइल मलेरिया क्लीनिक से परजीवियों के पनपने के इलाकों और उनके संचरण पर कारगर तरीके से नियंत्रण किया गया.
भारत में ओड़िशा, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, त्रिपुरा और मेघालय जैसे पूर्वी, मध्य और पूर्वोत्तर राज्यों में मलेरिया के ज्यादा मामले सामने आते हैं. इन राज्यों में बड़ी आबादी पहाड़ी और वन्य क्षेत्रों में बसती है, जहां इसका जोखिम ज्यादा है. ‘विश्व मलेरिया रिपोर्ट’ के मुताबिक, मलेरिया के प्रमुख प्रकार ‘पी विवेक्स’ में वैश्विक हिस्सेदारी में 80 फीसदी से ज्यादा में केवल तीन देशों का योगदान है, जिनमें से एक भारत भी शामिल है.
‘नेशनल फ्रेमवर्क फॉर मलेरिया एलिमिनेशन इन इंडिया 2016-2030’ भारत में इसके लिए चरणबद्ध तौर पर काम हो रहा है. ‘नेशनल फ्रेमवर्क फॉर मलेरिया एलिमिनेशन इन इंडिया 2016-2030’ के तहत इसके लिए रोडमैप तैयार किया गया है, जिसमें 2030 तक देश को मलेरिया मुक्त करने की योजना बनायी गयी है. वर्ष-दर-वर्ष लक्ष्य इस प्रकार रखा गया है :
2022 तक 26 कम और मध्यम स्तर के प्रभावित इलाकों में इसे खत्म करना.
2024 तक सभी राज्यों में मलेरिया के मामलों को प्रति एक हजार की आबादी में एक से भी कम तक लाना.
2027 तक देश में मलेरिया का प्रसार बाधित करना, जिसमें सभी प्रभावित राज्यों को शामिल किया जायेगा.
2030 तक मलेरिया के प्रसार की व्यापक निगरानी करना, ताकि उन्मूलन किये जा चुके इलाकों में कहीं भी दोबारा से इसका फैलाव न हो और 2030 तक राष्ट्रीय स्तर पर देश को मलेरिया-मुक्त घोषित किया जा सके.
मलेरिया से मुक्ति की ओर दुनिया
– यूरोप को पिछले वर्ष मलेरिया-मुक्त घोषित किया जा चुका है.
– 33 देशों और क्षेत्रों को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने घोषित कर दिया है मलेरिया-मुक्त़
– छह अफ्रीकी देशों- अल्जीरिया, बोत्सवाना, केप वर्डे, कोमोरोस, दक्षिण अफ्रीका और स्वाजीलैंड- को 2020 तक घोषित किया जा सकता है मलेरिया-मुक्त.-तीन एशियाइ देशों- चीन, मलयेशिया और दक्षिण कोरिया समेत आठ लैटिन अमेरिकी देशों और सउदी अरब, ईरान, ओमान, भूटान और नेपाल ने भी 2020 तक का लक्ष्य रखा है़
भूटान भी मुक्ति की राह पर
भारत का एक अन्य पड़ोसी भूटान भी मलेरिया से मुक्ति की ओर तेजी से आगे बढ़ रहा है. भूटान के संबंधित चीफ प्रोग्राम ऑफिसर रिनजिन नामगे के हवाले से विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2000 में यहां इसके पांच हजार से ज्यादा मामले सामने आये थे, लेकिन 2014 में यहां केवल 19 मामले पाये गये.
नामगे कहते हैं, हाइ-रिस्कवाले सभी इलाकों में निगरानी बढ़ाते हुए मलेरिया के प्रत्येक मामलों की निर्दिष्ट नेशनल एजेंसी को रिपोर्ट भेजी जाती है, ताकि एक भी मामला छूट न पाये. साथ ही मलेरिया के सक्रिय पाये गये मामले में उसके एक किमी के दायरे में गहन जांच की जाती है. ऐसे इलाकों में प्रत्येक वर्ष घरों के भीतर तक स्प्रे किया जाता है. भारत के पश्चिम बंगाल और असम से सटे भूटान के सात दक्षिणी जिलों (सरपांग, सामत्से, चुखा, डेगाना, झेंगांग, पेमगाटशेल और समद्रुपजाेंखर) में इसका जोखिम सबसे ज्यादा है.
हेल्थ अपडेट
एंटीबायोटिक से एग्जीमा का जोखिम
दो वर्ष से कम उम्र के शिशुओं को एंटीबायोटिक देने से उनमें भविष्य में एग्जीमा विकसित होने का जोखिम पाया गया है. ‘डेली मेल’ के मुताबिक, शोधकर्ताओं ने इसके लिए यूरोप में करीब चार लाख लोगों पर शोध किया, जिन्हें नवजात अवस्था में ये दवाएं दी गयी थीं.
इन लोगों में त्वचा की एलर्जी के मामलों में 41 फीसदी से ज्यादा जोखिम पाया गया. साथ ही इनमें फीवर होने का जोखिम भी ज्यादा देखा गया. शोधकर्ताओं का मानना है कि शैशवावस्था में एंटीबायोटिक देने से आंत में मौजूद प्राकृतिक बैक्टीरिया भी नष्ट हो जाते हैं, लिहाजा उनका इम्यून सिस्टम जर्म्स को खत्म करने में असफल रहता है.
लंदन में आयोजित यूरोपियन रेस्पिरेटरी सोसायटी कांग्रेस में शोधकर्ताओं ने इसके आंकड़े प्रस्तुत करते हुए कहा कि इसमें अनेक अध्ययनों के नतीजे शामिल किये गये हैं. नीदरलैंड की यूट्रेंच यूनिवर्सिटी के डॉक्टर फरीबा अहमदीजार का कहना है कि जिस बच्चे को जितना ज्यादा एंटीबायोटिक का डोज दिया गया था, उसमें इसका जोखिम उतना ज्यादा पाया गया. यहां तक कि कुछ लोगों को एग्जीमा से दर्द भी झेलना पड़ता है.
न्यू रिसर्च : विटामिन डी पिल से अस्थमा का खतरा कम
वि टामिन डी पिल सप्लीमेंट्स से अस्थमा के गंभीर अटैक का खतरा कम हो सकता है. डेली मेल के मुताबिक, ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने अस्थमा के लिए पिल के प्रारूप में डिजाइनर ड्रग का उल्लेख किया है, जो फेफड़ों में ज्वलनशीलता को कम करता है और इसके हमलावर वायरसों से भी बचाता है. इस संबंध में करीब 1,100 मरीजों पर किये गये परीक्षण के आधार पर पाया गया कि विटामिन डी सप्लीमेंट दिये गये लोगों में सामान्य मेडिकेशन के मुकाबले गंभीर अस्थमा अटैक का खतरा छह फीसदी से कम होकर महज तीन फीसदी तक रह गया.
लंदन के क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों ने इसकी समीक्षा की और पाया कि इसका इस्तेमाल करनेवालों को अस्थमा के लिए अस्पताल जाकर इलाज करने की जरूरत नहीं होती थी. अब तक इसका कोई साइड इफेक्ट सामने नहीं आया है. प्रोफेसर एड्रियन मार्टिन्यू का कहना है कि विटामिन डी या सनशाइन विटामिन शरीर में हड्डियों को मजबूती प्रदान करने के अलावा कम-से-कम 35 अन्य उतकों ओर सफेद रक्त कोशिकाओं को विकसित होने में मदद करता है. साथ ही यह अन्य बीमारियों के खिलाफ भी प्रतिरोधी क्षमता को मजबूत करता है.
फ्यूचर ड्रग : कैंसर की नयी दवा को अमेरिकी मंजूरी
वे नीटोक्लेक्स नामक कैंसर की नयी दवा को अमेरिका के फूड एंड ड्रग एसोसिएशन ने मंजूरी दे दी है. फिलहाल इसे क्रोनिक लिंफोटिक ल्यूकेमिया से मरीजों के इलाज के लिए इसे मंजूर किया गया है.
हालिया क्लीनिकल ट्रायल में इसके 80 फीसदी मरीजों का वेनीटोक्लेक्स से इलाज कामयाब पाया गया है. पूर्व में ऑस्ट्रेलिया में पिल के प्रारूप में विकसित किया गया था और कुछ मरीजों पर इसका परीक्षण किया गया. ज्यादातर ने साइड इफेक्ट के बारे में नहीं बताया है. इस शोध में शामिल रहे रॉबर्ट ओब्लाक का कहना है कि यह अनोखी दवा शरीर के प्रभावित हिस्से में खराब कोशिकाओं को नष्ट करती है, तो पहले के मुकाबले बेहतर महसूस होता है.
इसके दूसरे चरण के परीक्षण में 18 वर्ष से अधिक उम्र के 107 मरीजों को शामिल किया गया, जिन्हें अब तक एक ही प्रकार का इलाज मुहैया कराया जा रहा था. अमेरिका, कनाडा, यूके, जर्मनी, पोलैंड और ऑस्ट्रेलिया के 31 केंद्रों पर इसका परीक्षण किया गया, जहां मरीजों से हासिल नतीजे सफल रहे हैं.

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