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एआई से लैस मोबाइल एप से होगी आपके मानसिक अवस्था की पड़ताल

अमेरिका स्थित कोलोराडो यूनिवर्सिटी के शोधार्थियों ने एक ऐसा मोबाइल एप विकसित किया है, जो मनोरोगियों के मानिसक स्वास्थ्य का आकलन करने में सक्षम है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस यह एप बोलचाल पर आधारित (स्पीच बेस्ड) है. इस एप की मदद से मनोचिकित्सक मानसिक विकारों की बेहतर तरीके से पहचान कर पायेंगे. यह अध्ययन स्रिजोफ्रेनिया […]

अमेरिका स्थित कोलोराडो यूनिवर्सिटी के शोधार्थियों ने एक ऐसा मोबाइल एप विकसित किया है, जो मनोरोगियों के मानिसक स्वास्थ्य का आकलन करने में सक्षम है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस यह एप बोलचाल पर आधारित (स्पीच बेस्ड) है. इस एप की मदद से मनोचिकित्सक मानसिक विकारों की बेहतर तरीके से पहचान कर पायेंगे. यह अध्ययन स्रिजोफ्रेनिया बुलेटिन जर्नल में प्रकाशित हुआ है.

शोधार्थियों का कहना है कि रोगी की बातचीत के आधार पर उनका उपचार करना पुराना, व्यक्तिपरक और अविश्वसनीय है. इसलिए उन्होंने मशीन लर्निंग तकनीक विकसित की है जो हमारी वाणी (स्पीच) में रोज-रोज होनेवाले बदलावों की पहचान करेगा. रोज-रोज होनेवाले ये बदलाव मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट के संकेत होते हैं. उदाहरण के लिए, जब किसी वाक्य को बोलते हुए कोई तार्किक तरीका नहीं अपनाया जाये, तो यह स्थिति स्रिजोफ्रेनिया के गंभीर लक्षण का संकेत देती है.

वहीं हमारे बोलने के लहजे या गति में बदलाव सनक या अवसाद (मैनिया या डिप्रेशन) का संकेत हाे सकता है, जबकि स्मृति लोप होना संज्ञानात्मक और मनोरोग (कॉग्निटिव एंड मेंटल हेल्थ प्राॅब्लम) का लक्षण हो सकता है. इस शोध के सह-लेखक पीटर फोल्ज का कहना है कि रोगी की मानसिक अवस्था की पहचान में भाषा एक महत्वपूर्ण कारक है. मोबाइल डिवाइस और एआई के उपयोग से मरीजों में दिन-प्रतिदिन होनेवाले सूक्ष्म बदलावों का पता लगाया जा सकता है और उनकी निगरानी की जा सकती है.

ऐसे काम करेगा एप

अध्ययन में कहा गया है कि यह नया मोबाइल एप मरीजों से पांच से दस मिनट की श्रृंखला में कुछ प्रश्न पूछता है, जिसका जवाब उन्हें अपने मोबाइल के जरिये ही देना होता है. यह एप मरीजों से उनकी भावनात्मक अवस्था के बारे में सवाल करता है या उन्हें कोई लघु कथा सुनाने या किसी कहानी को सुनकर उसे दुहराने को कहता है. साथ ही यह रोगियों को टच एंड स्वाइप मोटर स्किल्स टेस्ट की श्रृंखला भी देता है. यह वाणी के नमूने का मूल्यांकरन करता है और फिर उसी मरीज व कई लोगों की वाणी के पिछले नमूने से उसकी तुलना करता है. इसके बाद वह मरीज की मानसिक अवस्था का आकलन करता है.

दौ सौ से अधिक लोग हुए परीक्षण में शामिल

इस अध्ययन के दौरान शोधार्थियों के कहने पर चिकित्सकों ने 225 लोगों की वाणी को सुना और उनका मूल्यांकन किया. अध्ययन में शामिल इन लोगों में आधे गंभीर मनोरोगी थे और आधे स्वस्थ थे. इस प्रयोग के बाद जब मशीन लर्निंग सिस्टम के परिणाम से इसकी तुलना की गयी तो कंप्यूटर के एआई मॉडल के परिणाम बहुत हद तक चिकित्सकों के अध्ययन से प्राप्त परिणामें के समान ही पाये गये.

हृदय रोगियों की जीवन प्रत्याशा को मापने का नया तकनीकी मॉडल

हार्ट फेलियर से निपटने के लिए कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक नया तकनीकी मॉडल विकसित किया है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस यह उपकरण दिल के मरीजों की जीवन प्रत्याशा का पूर्वानुमान लगा सकता है. इस उपकरण के जरिये हृदय रोगियों के बारे में चिकित्सकों को समय रहते कई महत्वपूर्ण जानकारी मिल सकती है. इसकी मदद से वे कई अग्रिम निर्णय लेने में सक्षम हो सकेंगे.

इस मॉडल को विकसित करने के लिए अनुसंधानकर्ताओं ने छह हजार हार्ट फेलियर मरीजों के डी-आइडेंटिफाइड (किसी की व्यक्तिगत पहचान को प्रकट होने से रोकने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली प्रक्रिया) इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ रिकॉर्ड डेटा का अध्ययन किया और एक मशीन लर्निंग एल्गोरिदम विकसित किया. एल्गोरिदम विकसित करने के लिए शोधार्थियों द्वारा आठ वैरिएबल्स के आधार पर एक रिस्क स्कोर तैयार किया गया. हार्ट फेलियर के मरीजों से एकत्र किये गये इन आठ वैरिएबल्स की पहचान से मृत्यु के निम्न और उच्च खतरे का निर्धारण होता है. इन वैरिएबल्स में हार्ट रिलैक्सेशन के दौरान ब्लड प्रेशर की स्थिति, खून में डब्ल्यूबीसी, हीमोग्लोबिन, प्लेटलेट्स और यूरिया व नाइट्रोजन की मात्रा एवं कीरेटिनिन के स्तर शामिल थे. इन वैरिएबल्स के अध्ययन से प्राप्त परिणामों के आधार पर विकसित किये गये इस नये तकनीकी मॉडल के जरिये दिल का मरीज कितने समय तक जीवित रह सकता है, इसका सटीक पूर्वानुमान लगाया जा सकता है.

यानी हार्ट फेलियर से उस मरीज की मृत्यु कितने समय में हो सकती है, यह बताने में यह मॉडल सक्षम है. हालांकि शोधार्थियों का कहना है कि अभी इस तकनीकी मॉडल का बड़े समूहों पर कई सारे परीक्षण करना बाकि है. उसके बाद ही इसे सही तरीके से वैद्य ठहराया जा सकेगा.

आईबीएम की मौसम पूर्वानुमान प्रणाली

तकनीकी कंपनी आईबीएम नयी मौसम पूर्वानुमान प्रणाली लॉन्च करने की योजना बना रही है. कंपनी का कहना है कि यह नयी प्रणाली इस बात का अनुमान लाने में सक्षम होगी कि 12 घंटे बाद मौसम कौन सा करवट लेनेवाला है. इस प्रणाली के जरिये दुनिया के उन भागों पर नजर रखी जायेगी जो मौसम संबंधी विस्तृत जानकारी हासिल करने में अभी भी पीछे हैं. कंपनी का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण होनेवाले मौसमी बदलाव आज हमारे लिए बेहद गंभीर चुनाैती बनते जा रहे हैं, ऐसे में संक्षिप्त और तेज गति से मौसम की पूर्वसूचना बहुत जरूरी हो गयी है.

हर घंटे अपडेट होगी

आईबीएम ग्राफ

यह प्रणाली आईबीएम ग्राफ (द ग्लोबल हाई-रिजोल्यूशन एटमॉस्फेरिक फोरकास्टिंग सिस्टम) के नाम से जानी जायेगी. आईबीएम ग्राफ सुपरकंप्यूटर पर रन करेगी और विस्तृत व उच्च गुणवत्ता वाले मौसम पूर्वानुमानों से हमें रू-ब-रू करायेगी. पूर्व में इस तरह का संक्षिप्त पूर्वानुमान अमेरिका, जापान और कुछ यूरोपीय देशों में ही उपलब्ध था.

लेकिन आईबीएम, अपनी इस नयी पूर्वानुमान प्रणाली के जरिये एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के इलाकों से मौसम संबंधी आकंड़ों को उपलब्ध करायेगी. इन महाद्वीपों के कई इलाके जलवायु परिवर्तन से सर्वाधिक प्रभावित हैं. कंपनी का कहना है कि वर्तमान में वैश्विक मौसम पूर्वानुमान का जो मॉडल है, वह 10 से 15 वर्ग किलोमीटर के इलाके को अपने दायरे में लेता है और प्रति छह या 12 घंटे पर अपडेट होता है. जबकि आईबीएम का सिस्टम इन मॉडल से तीन वर्ग किलोमीटर कम के इलाकाें के मौसम पूर्वानुमान के बारे में बतायेगा और हर घंटे अपडेट होगा.

भारतीय किसानों के लिए फायदेमंद

इस संबंध में आईबीएम की सहायक कंपनी, द वेदर के प्रमुख कैमरॉन क्लेटॉन का कहना है कि यह विस्तृत पूर्वानुमान भारत या केन्या जैसे विश्व के कुछ क्षेत्रों के किसानों के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता हैं. जैसे इस प्रणाली से प्राप्त उच्च रिजोल्यूशन मौसम डेटा की मदद से किसान असमय होनेवाली बारिश का अनुमान लगा सकेंगे और फसलों को रोपने या उनकी कटाई के लिए बेहतर योजना बना सकेंगे.

गूगल का सिंगल बोर्ड कंप्यूटर

गूगल, आसुस के साथ मिलकर एक सिंगल बोर्ड कंप्यूटर पर काम कर रहा है. इस कंप्यूटर का नाम टिंकर बोर्ड रखा गया है. इस कंप्यूटर का आकार क्रेडिट कार्ड जितना होने का अनुमान है. आसुस इन कंप्यूटर्स की पहली खेप आज जापान में होने वाले इंटरनेट ऑफ थिंग्स टेक्नोलॉजी कॉन्फ्रेंस में प्रदर्शित कर सकता है. इस कंप्यूटर को मुख्य रूप से एआई एप्स चलाने के लिए विकसित किया जा रहा है.

आनंद टेक की रिपोर्ट के मुताबिक, इसके दो वेरियंट टिंकर एज टी और टिंकर एज आर लॉन्च किये जा सकते हैं. माना जा रहा है कि टिंकर एज टी एनएक्सपी आई.एमएक्स8एम पर आधारित है और इसमें एज टीपीयू चिप लगा है, जो टेंसरफ्लो लाइट को एक्सलरेट करता है. जबकि टिंकर एज आर में रॉकचिप आरके3399 प्रो प्रोसेसर लगा है जो 4के मशीन लर्निंग के लिए एनपीयू के साथ आयेगा. आसुस के मुताबिक, यह डिवाइस कम पावर कंज्यूम करेगा और इसकी क्षमता भी काफी बेहतर होगी. यह एआई प्रोसेसिंग के लिए रियल टाइम में इमेज लेने में सक्षम है. यह लोगों को और कमरे में रखी वस्तुओं की पहचान भी कर सकता है. इसमें वाइड-एंगल लेंस व 187 डिग्री के व्यूइंग एंगल के साथ एक छोटा कैमरा भी लगा है.

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