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पीएम किसान सम्मान निधि योजना को जैविक खेती से जोड़ने की जरूरत

सुरेन्‍द्र किशोरराजनीतिक विश्‍लेषक प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत प्रति किसान परिवार को सालाना 6000 रुपये देने का प्रावधान है. यह राशि किश्तों में मिल भी रही है. यह योजना शुरू करते समय केंद्र सरकार ने कहा था कि समय के साथ इस राशि में बढ़ोतरी भी होगी. अब किसी भी बढ़ोतरी को जैविक […]

सुरेन्‍द्र किशोर
राजनीतिक विश्‍लेषक

प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत प्रति किसान परिवार को सालाना 6000 रुपये देने का प्रावधान है. यह राशि किश्तों में मिल भी रही है. यह योजना शुरू करते समय केंद्र सरकार ने कहा था कि समय के साथ इस राशि में बढ़ोतरी भी होगी. अब किसी भी बढ़ोतरी को जैविक खेती से जोड़ देने की जरूरत है. यानी, अब बढ़ी हुई राशि उन्हीं किसानों को मिले जो जैविक खेती करें. पूरी जमीन में नहीं, तो कम- से- कम उसके एक हिस्से में करें.

जैविक खेती समय की मांग
साठ के दशक में इस देश में रासायनिक खाद का चलन शुरू हुआ. तब अधिक फसल के कारण किसान खुश हुए, पर जानकार लोग इसके खतरे के प्रति लोगों को तभी आगाह भी करने लगे थे. खास कर वास्तविक गांधीवादी नेता किसानों को आगाह करने लगे. आजादी की लड़ाई के दौरान भी खुद महात्मा गांधी जैविक खेती के लिए किसानों से अपील करते थे. वे कंपोस्ट खाद पर बल देते थे, पर आजादी के बाद हमारी सरकार ने गांधी जी के इस पक्ष को भी नकार दिया.
नतीजतन रासायनिक खादों और कीटनाशक दवाओं से जल प्रदूषित हो रहा है. जहां -तहां फसलें जल जा रही हैं. वायु प्रदूषण में वृद्धि हो रही है. भूमि का तेजाबीकरण हो रहा है. इससे कैंसर का खतरा बढ़ रहा है. हाल के दिनों में लोगों में जैविक खेती के प्रति जागरूकता बढ़ी है, पर वह पर्याप्त नहीं है. इसे प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि से जोड़ने से शायद खेती के जैवीकरण की रफ्तार बढ़े.
स्मृति लोप या राजनीतिक जरूरत !
एनसीपी के प्रमुख शरद पवार ने बुधवार को कहा कि इंदिरा गांधी ने सेना के शौर्य का इस्तेमाल कभी वोट हासिल करने के लिए नहीं किया. पवार जी का यह कथन समकालीन इतिहास को झुठलाना है. 1971 में बांग्लादेश युद्ध में भारत ने पाक पर विजय हासिल की थी.उसके ठीक बाद बिहार सहित कई राज्यों में विधान सभाओं के चुनाव हुए थे.
यदि उस जीत का चुनाव में इस्तेमाल नहीं किया जाता, तो भी इंदिरा गांधी के दल को विधान सभाओंं में भारी जीत होती. फिर भी प्रधानमंत्री ने मतदाताओं के नाम से जो अपनी चिट्ठी जारी की उसके अनुसार,‘देशवासियों की एकता और उच्च आदर्शों के प्रति निष्ठा ने हमें युद्ध में जिताया. अब उसी लगन से हमें गरीबी हटानी है. इसके लिए हमें विभिन्न प्रदेशों में ऐसी स्थायी सरकारों की जरूरत है, जिनकी साझेदारी केंद्रीय सरकार के साथ हो सके.’ कांग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र में भी उसका जिक्र था.
एक और राजेंद्र नगर !
निर्माणाधीन दानापुर -खगौल आठ लेन सड़क के बाएं-दाएं एक और ‘राजेंद्र नगर’ या ‘लोहिया नगर’ तैयार हो रहा है. ये दोनों मोहल्ले जलजमाव के लिए जाने जाते हैं. दानापुर-खगौल रोड बुधवार को पांच घंटे जाम रहा. जलजमाव से मुक्ति के लिए शासन पर दबाव डालने के लिए लोग सड़क पर उतरे थे.
अभी तो वह इलाका पूरा विकसित नहीं हुआ है, तब तो यह हाल है. पूरा भर जायेगा तो पता नहीं क्या होगा. बहुत लंबा -चौड़ा इलाका है, पर सवाल है कि ऐसे इलाके बसाने और बसने से पहले लोगों ने जल निकासी के बारे में क्यों नहीं सोचा ? शासन को तो तभी आना पड़ता है जब पानी सिर से ऊपर चला जाए.पटना एम्स के पास भी ऐसी अव्यवस्थित बसावट एक दिन शासन के लिए सिरदर्द साबित होगी.
भूली-बिसरी याद
जय प्रकाश नारायण का अपने गांव सिताब दियारा से गहरा लगाव था. अमेरिका में पढ़े-लिखे जेपी 1977 में जब गांव गये तो वे भाव विह्वल हो गये थे. माइक पर ही रोने लगे. ‘गांव याद रहेगा,गांव के लोग याद रहेंगे,’ यह कहते -कहते जब जेपी भाव विह्वल हो गये, तो वहां उपस्थित चंद्रशेखर ने उनके हाथ से माइक ले ली और सभा समाप्ति की घोषणा कर दी. उस साल अपने जन्म दिन पर वे गांव गये थे.
गांव की वह उनकी अंतिम यात्रा साबित हुई. 1979 में जेपी का पटना में निधन हो गया. जेपी गांव जाने के लिए पहले से ही बेचैन थे, पर बीमार होने के कारण वे सड़क मार्ग से नहीं जा सकते थे. मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर बिहार सरकार के हेलीकाॅप्टर से जेपी को उनके गांव ले गये.
याद रहे कि सिताब दियारा में प्लेग फैल जाने के कारण जेपी के जन्म के तत्काल बाद उनके पिता हरसू दयाल उन्हें लेकर तीन किलोमीटर दूर स्थित गांव में जा बसे. साठ के दशक तक दोनों गांव बिहार के सारण जिले में ही थे, पर त्रिवेदी आयोग की सिफारिश के अनुसार जब परिसीमन हुआ, तो दूसरा गांव यानी जेपी नगर, उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में पड़ गया. दरअसल जेपी नगर को पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के प्रयास से विकसित किया गया. राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश भी सिताब दियारा के ही मूल निवासी हैं.
कोचिंग सेंटर में अग्निशमन
गत मई में सूरत में कोचिंग सेंटर में भीषण आग लग गयी. वहां आग बुझाने की समुचित व्यवस्था नहीं थी. नतीजतन 25 छात्रों की जानें चली गयीं. उस दर्दनाक घटना के बाद दिल्ली व पटना की सरकारों ने भी स्थानीय कोचिंग सेंटरों की जांच की थी. जांच में क्या पाया ? कितने केंद्रों पर अग्निशमन की समुचित व्यवस्था थी ? सरकारी प्रयास के बाद कितनों में इस दृष्टि से सुधार हुआ ?
और अंत में
कम- से- कम एक बात के लिए राहुल गांधी की सराहना तो होनी ही चाहिए. उन्होंने लोकसभा चुनाव में हार की जिम्मेदार ली. लाख गुहार के बावजूद उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष पद से अपना इस्तीफा वापस नहीं लिया.

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